बीकानेर. कभी बीकानेर पूर्व विधानसभा सीट का अधिकांश इलाका कोलायत विधानसभा में होता था, लेकिन साल 2008 में हुए परिसीमन के बाद बीकानेर पश्चिम के कुछ भाग और कोलायत विधानसभा को मिलाकर नई सीट बीकानेर पूर्व के रूप में अस्तित्व में आई. इस सीट पर एक बार फिर से भाजपा ने सिद्धि कुमारी को टिकट दिया है तो कांग्रेस ने नए चेहरे यशपाल गहलोत पर दांव खेला है.
ये है इस सीट का सियासी इतिहास : भाजपा ने 2008 में इस नई सीट पर नए चेहरे के रूप में बीकानेर रियासत के पूर्व राजपरिवार की सदस्य सिद्धि कुमारी को मैदान में उतारा. वहीं, कांग्रेस ने अल्पसंख्यक चेहरे के रूप में डॉ. तनवीर मालावत को मैदान में उतारा था, लेकिन गैर राजनीतिक चेहरा होने के बाद भी भाजपा की सिद्धि कुमारी के लिए मुकाबला एक तरफा रहा. वहीं, दूसरी बार भाजपा से फिर सिद्धि कुमारी मैदान में थीं तो कांग्रेस ने अचानक भाजपा से बगावत करन वाले गोपाल गहलोत को टिकट दिया, लेकिन एक बार फिर मुकाबला एकतरफा ही नजर आया और सिद्धि कुमारी करीब 31000 वोटों के मार्जिन से चुनाव जीत गईं.
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तीसरी बार कांग्रेस ने यहां बड़ा दांव खेला और नोखा से चुनाव लड़ने वाले कन्हैयालाल झंवर को बीकानेर लाकर चुनाव लड़ाया. हालांकि टिकट की घोषणा ऐन वक्त पर हुई थी, इसलिए कन्हैयालाल झंवर को प्रचार के लिए ज्यादा समय नहीं मिला. इसके बावजूद उनसे सिद्धि कुमारी को एक कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा और दो चुनाव में जो जीत का अंतर 30,000 से ज्यादा का था, वह इस बार महज 7000 पर ही सिमट गया. इस बार भाजपा ने चौथी बार सिद्धि कुमारी पर भरोसा जताया है तो वहीं कांग्रेस ने अपने शहर अध्यक्ष यशपाल गहलोत को टिकट दिया है. दोनों ही उम्मीदवार युवा हैं.
सिद्धि कुमारी की मजबूती और कमजोरी : चौथी बार चुनाव लड़ रहीं सिद्धि कुमारी के लिए यह चुनाव नया नहीं है. उन्हें अपनी कमजोरी और मजबूती दोनों पता हैं. शायद यही कारण है कि भी इस चुनाव में वो पिछले चुनाव के मुकाबले ज्यादा एक्टिव मोड में नजर आ रहीं हैं. जातीय समीकरण और पार्टी के लिए तीन बार मिली जीत से बने माहौल का मनोवैज्ञानिक असर सिद्धि कुमारी के लिए मजबूती है. साथ ही निर्विवाद चेहरे के रूप में पार्टी में उनकी पहचान है और कभी भी किसी तरह की जिला संगठन की गुटबाजी में उनका नाम नहीं आया. वहीं, कार्यकर्ताओं के साथ सीधे संवाद से कई बार दूरी और क्षेत्र में उनकी कम सक्रियता कमजोरी है, जिसको लेकर टिकट वितरण के दौरान उनकी पार्टी के नेताओं की ओर से भी इस बात को आलाकमान तक पहुंचाया गया था. उनके लिए राहत की बात है कि जिला संगठन पदाधिकारी पूरी तरह से साथ है. जिन लोगों ने चुनाव में टिकट मांगा और एकबारगी नाराजगी जताई, वे लोग भी सिद्धि कुमारी के साथ आ गए हैं और प्रचार में भी नजर आते हैं.
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यशपाल की कमजोरी और मजबूती : यशपाल पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. संगठन के तौर पर उन्हें कई चुनाव लड़ने का अनुभव हो सकता है, लेकिन खुद के लिए पहली बार चुनाव लड़ना और उसे मैनेज करना यशपाल के लिए एक बड़ी चुनौती है. यहां भी कांग्रेस से टिकट की मांग करने वाले कई दावेदार यशपाल का साथ देते नजर आ रहे हैं. यशपाल खुद बीकानेर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से आते हैं और बीकानेर पूर्व विधानसभा क्षेत्र में टिकट मांगने को लेकर उनकी सक्रियता थी, लेकिन धरातल पर जिला संगठन के मुखिया के तौर पर ही वे सक्रिय रहे. चुनाव लड़ने के लिहाज से उनकी क्षेत्र में जनता के बीच सक्रियता कम दिखी. संगठन स्तर पर भाजपा कार्यकर्ताओं के मुकाबले कांग्रेस के कार्यकर्ता इतने सक्रिय नजर नहीं आ रहे हैं. कांग्रेस समर्थित एक निर्दलीय प्रत्याशी के रालोपा से खड़ा होना भी एक चुनौती है. भाजपा प्रत्याशी सिद्धि कुमारी की क्षेत्र में सक्रियता कम होने को लेकर माहौल अभी तक कांग्रेस नहीं बना पाई है. क्षेत्र में सीवर लाइन, सूरसागर झील, नाली-सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के विस्तार को लेकर दोनों ही दल और प्रत्याशी वोट मांगते नजर आ रहे हैं. हालांकि जातीय समीकरण दोनों ही प्रत्याशियों के लिए मुफीद है लेकिन इनमें से जो उनका साथ पाएगा उसके लिए जीत की राह आसान होती जाएगी.