बीकानेर. सनातन धर्म में भगवान शिव को देवाधिदेव कहा जाता है. भगवान शिव की विशेष कृपा के लिए सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा होती है. इसके अलावा साप्ताहिक दिन में सोमवार और तिथि में प्रदोष व्रत का महत्व शिवपुराण में बताया गया है. शिवपुराण में प्रदोष व्रत की महिमा बताई गई है.
क्या है प्रदोष : प्रदोष का मतलब संध्या समय जो कि सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और 45 मिनट बाद होता है. वैसे तो यह तिथि के हिसाब से होता है, लेकिन इसका भी अलग-अलग वार के हिसाब से महत्त्व शास्त्रों में बतलाया गया है. इस बार वैशाख मास का अंतिम प्रदोष व्रत बुधवार को है. यदि कोई बुधवार और प्रदोष दोनों व्रत करता है तो दोनों व्रतों का पुण्य फल करने वाले को प्राप्त होगा.
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क्या है बुध प्रदोष : बुधवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को सौम्य प्रदोष, सौम्यवारा प्रदोष, बुध प्रदोष भी कहते हैं. बुध प्रदोष व्रत करने से बुद्धि में वृद्धि होती है. वैसे तो किसी भी पूजा में गणेश जी की सबसे पहले आराधना की जाती है, लेकिन बुध प्रदोष में ऐसा करना और अधिक फलदायी है. इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना की जाती है. बुधवार को प्रदोष व्रत करने से बुध गृह के कारण परेशानी या वाणी दोष दूर होता है.
ऐसे करें प्रदोष पूजा : ब्रह्म मुहूर्त में शिव पूजा कर व्रत करते हुए प्रदोषकाल भगवान शिवजी की पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव के गायत्री मंत्र, शिवमंत्र का जप और ज्योर्तिलिंग उच्चारण और संभव हो तो रुद्रीपाठ करना चाहिए.
इन मंत्रों के साथ अभिषेक : भगवानशिव का मंत्रउच्चारण करते हुए अभिषेक करना चाहिए.
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ नमः शिवाय की का 108 बार जाप करना चाहिए.
द्वादश ज्योर्तिलिंग नाम :
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।।