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Special : रेतीले धोरों में किसानों की आय का मजबूत विकल्प बन रही खजूर की खेती - Rajasthan Latest News

कभी पानी की कमी और खारे पानी की समस्या के चलते राजस्थान खेती के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता था, लेकिन अब बदलाव का समय दिखने लगा है. खजूर की खेती आय के नए विकल्प के तौर पर देखी जाने लगी है. देखिए बीकानेर से ये रिपोर्ट...

khajoor farming in Bikaner
खजूर की खेती से बढ़ रही किसानों की आय
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Published : Feb 19, 2023, 11:57 AM IST

खजूर की खेती से बढ़ रही किसानों की आय

बीकानेर. स्वास्थ्यवर्धक फल के रूप में खजूर को पहचान मिली है. खासतौर से सर्दियों में खजूर का सेवन स्वास्थ्य के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. खजूर शुष्क जलवायु में खेती किए जाने वाला प्राचीनतम फलदार वृक्ष है. माना जाता है कि मानव सभ्यता के सबसे पुराने खेती योग्य फलों में से एक खजूर है. मूलत: फारस की खाड़ी से इसकी उत्पत्ति हुई, लेकिन अब खजूर रेतीले धोरों वाले राजस्थान में भी खेती का एक मजबूत विकल्प बन रहा है.

किसानों की मदद : स्वामी केशवानन्द राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने खजूर पर अनुसंधान के लिए खजूर अनुसंधान केन्द्र स्थापित किया. अनुसंधान केंद्र से जुड़े अजय प्रताप कहते हैं कि यहां पर खजूर अनुसंधान केन्द्र में ना सिर्फ अलग अलग किस्मों का पश्चिमी राजस्थान की भोगौलिक अनुसार खेती के लिए चयन जाता है, बल्कि अलग-अलग किस्मों का संग्रहण और उनका नियमित परीक्षण और रखरखाव के साथ ही संग्रह, जांच परीक्षण तथा रखरखाव करना. खजूर का उत्पादन बढ़ाने हेतु तकनीक विकसित करना. स्वामी केशवानंद कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र पारीक कहते हैं किपश्चिमी राजस्थान में खजूर की खेती को बढ़ावा देने को लेकर भी किसानों को अपडेट किया जाता है.

53 तरह की किस्म : खजूर अनुसंधान केंद्र से जुड़े अजय प्रताप कहते हैं कि वर्तमान में खजूर अनुसंधान केंद्र में 53 किस्म के खजूर के पौधे लगाए हुए हैं. इसके साथ ही टिशू कल्चर की तकनीक से भी पौधों को तैयार किया जाता है और किसानों को यह पौधे विक्रय किए जाते हैं, ताकि वे खजूर की खेती का विकल्प चुनते हुए इससे आय अर्जित कर सके. पिछले साल तक जहां इस अनुसंधान केंद्र में खजूर की 34 किस्म थी. वहीं, अब यह संख्या 53 तक पहुंच गई है. अजय प्रताप कहते हैं कि इस इलाके में हलावी, बरही, खुनेजी, मेडजूल किस्म का उत्पादन क्षमता ज्यादा है और इसका लाभ किसानों को ज्यादा मिलता है.

पढ़ें: आधुनिक खेती से बढ़ी अलवर के किसानों की आय, जानें क्यों किसान छोड़ रहे परंपरागत खेती

कृषि वैज्ञानिक के शोध में दावा : कृषि वैज्ञानिक के शोध में दावा किया जाता है कि दक्षिण इराक में इसकी खेती 4000 वर्ष पूर्व हुई. वहीं, हमारे देश में मोहनजोदड़ो की खुदाई में इसके 2000 वर्ष खेती होने के प्रमाण मिले हैं. बीकानेर के पूर्व शासक महाराजा गंगा सिंह ने अपने शासन काल में भी इसके कुछ बाग लगाए गए.

3 से 5 साल में फसल : दरअसल, खजूर की खेती में वे ही लोग सफल हो पाते हैं जो धैर्य के साथ काम करते हैं. क्योंकि एक बार पौधा लगाने के बाद में इसके रखरखाव करना पड़ता है और करीब 3 साल बाद में पहली बार खजूर का पौधा फल देता है. अमूमन इसमें कई बार चार और पांच साल भी लग जाते हैं. जब पूरा पेड़ बन कर पूरी मात्रा में फल मिलता है.

क्यों मुफीद है पश्चिमी राजस्थान ? कृषि वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र पारीक कहते हैं कि गर्म मौसम और खारा पानी खजूर की खेती के लिए अनुकूल वातावरण है. खजूर के ऊपरी भाग में जितनी गर्मी मिलती है, उतना ही फल मीठा होता है और हमारे यहां का गर्मी का मौसम इसके लिए अनुकूल है.

खाने के अलावा और भी कई बना सकते उत्पाद : खजूर अनुसंधान से जुड़े डॉ. प्रियंका कुमावत कहती हैं कि खजूर खाने में फल के रूप में पसंदीदा है, लेकिन दूसरे फलों की तरह इसका भी कई और विकल्प के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है. जिसमें अचार, मुरब्बा और जैम बनाया जा सकता है.

पढ़ें: Hydroponics Technique : बिना मिट्टी के उगाएं सब्जियां, कम लागत से छत या बालकनी में कर सकेंगे खेती

हजारों हेक्टर में होने लगी है खेती : वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र पारीक कहते हैं कि अब खजूर की खेती एक बेहतर विकल्प के रूप में पश्चिमी राजस्थान दिखने लगी है और आने वाले दिनों में इसमें और संभावनाएं हैं. वह कहते हैं कि अब हजारों हेक्टेयर में खजूर की खेती होने लग गई है, साथ ही सरकार की ओर से भी इसको लेकर सब्सिडी इसको बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं. साथ ही किसान की आमदनी के लिए भी यह एक मुफीद विकल्प है.

अनुसंधान केंद्र करता है किसानों की मदद : खजूर अनुसंधान केंद्र से जुड़े अजय प्रताप कहते हैं कि हमारे यहां किसानों को पूरी तकनीक के साथ कम लागत में पौधे उपलब्ध करवाए जाते हैं और टिशू कल्चर के पौधे भी उन्हें उपलब्ध कराए जाते हैं. इसके बारे में उन्हें हर समय जरूरत पड़ने पर अपडेट भी किया जाता है, साथ ही उनकी खेती में मदद करने का प्रयास भी किया जाता है.

दो बार लगा सकते हैं पौधे : अजय प्रताप कहते हैं कि साल में दो बार खजूर के पौधे लगाए जा सकते हैं, जिनमें जून और फरवरी माह में इनके पौधा लगाने का समय सही माना जाता है. क्योंकि इस वक्त मौसम में जरूरत के मुताबिक गर्मी होती है. फरवरी के बाद गर्मी का सीजन शुरू हो जाता है जो कि पौधे को विकसित करने के लिए बेहतर माना जाता है.

कैदी करते रखरखाव : खजूर अनुसंधान केंद्र में खुली जेल के कैदी इन 53 किस्म के लगाए गए अलग-अलग पौधों और पेड़ की रखरखाव कटिंग फल निकालना पानी देना सहित सारे काम करते हैं.

खजूर की खेती से बढ़ रही किसानों की आय

बीकानेर. स्वास्थ्यवर्धक फल के रूप में खजूर को पहचान मिली है. खासतौर से सर्दियों में खजूर का सेवन स्वास्थ्य के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. खजूर शुष्क जलवायु में खेती किए जाने वाला प्राचीनतम फलदार वृक्ष है. माना जाता है कि मानव सभ्यता के सबसे पुराने खेती योग्य फलों में से एक खजूर है. मूलत: फारस की खाड़ी से इसकी उत्पत्ति हुई, लेकिन अब खजूर रेतीले धोरों वाले राजस्थान में भी खेती का एक मजबूत विकल्प बन रहा है.

किसानों की मदद : स्वामी केशवानन्द राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने खजूर पर अनुसंधान के लिए खजूर अनुसंधान केन्द्र स्थापित किया. अनुसंधान केंद्र से जुड़े अजय प्रताप कहते हैं कि यहां पर खजूर अनुसंधान केन्द्र में ना सिर्फ अलग अलग किस्मों का पश्चिमी राजस्थान की भोगौलिक अनुसार खेती के लिए चयन जाता है, बल्कि अलग-अलग किस्मों का संग्रहण और उनका नियमित परीक्षण और रखरखाव के साथ ही संग्रह, जांच परीक्षण तथा रखरखाव करना. खजूर का उत्पादन बढ़ाने हेतु तकनीक विकसित करना. स्वामी केशवानंद कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र पारीक कहते हैं किपश्चिमी राजस्थान में खजूर की खेती को बढ़ावा देने को लेकर भी किसानों को अपडेट किया जाता है.

53 तरह की किस्म : खजूर अनुसंधान केंद्र से जुड़े अजय प्रताप कहते हैं कि वर्तमान में खजूर अनुसंधान केंद्र में 53 किस्म के खजूर के पौधे लगाए हुए हैं. इसके साथ ही टिशू कल्चर की तकनीक से भी पौधों को तैयार किया जाता है और किसानों को यह पौधे विक्रय किए जाते हैं, ताकि वे खजूर की खेती का विकल्प चुनते हुए इससे आय अर्जित कर सके. पिछले साल तक जहां इस अनुसंधान केंद्र में खजूर की 34 किस्म थी. वहीं, अब यह संख्या 53 तक पहुंच गई है. अजय प्रताप कहते हैं कि इस इलाके में हलावी, बरही, खुनेजी, मेडजूल किस्म का उत्पादन क्षमता ज्यादा है और इसका लाभ किसानों को ज्यादा मिलता है.

पढ़ें: आधुनिक खेती से बढ़ी अलवर के किसानों की आय, जानें क्यों किसान छोड़ रहे परंपरागत खेती

कृषि वैज्ञानिक के शोध में दावा : कृषि वैज्ञानिक के शोध में दावा किया जाता है कि दक्षिण इराक में इसकी खेती 4000 वर्ष पूर्व हुई. वहीं, हमारे देश में मोहनजोदड़ो की खुदाई में इसके 2000 वर्ष खेती होने के प्रमाण मिले हैं. बीकानेर के पूर्व शासक महाराजा गंगा सिंह ने अपने शासन काल में भी इसके कुछ बाग लगाए गए.

3 से 5 साल में फसल : दरअसल, खजूर की खेती में वे ही लोग सफल हो पाते हैं जो धैर्य के साथ काम करते हैं. क्योंकि एक बार पौधा लगाने के बाद में इसके रखरखाव करना पड़ता है और करीब 3 साल बाद में पहली बार खजूर का पौधा फल देता है. अमूमन इसमें कई बार चार और पांच साल भी लग जाते हैं. जब पूरा पेड़ बन कर पूरी मात्रा में फल मिलता है.

क्यों मुफीद है पश्चिमी राजस्थान ? कृषि वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र पारीक कहते हैं कि गर्म मौसम और खारा पानी खजूर की खेती के लिए अनुकूल वातावरण है. खजूर के ऊपरी भाग में जितनी गर्मी मिलती है, उतना ही फल मीठा होता है और हमारे यहां का गर्मी का मौसम इसके लिए अनुकूल है.

खाने के अलावा और भी कई बना सकते उत्पाद : खजूर अनुसंधान से जुड़े डॉ. प्रियंका कुमावत कहती हैं कि खजूर खाने में फल के रूप में पसंदीदा है, लेकिन दूसरे फलों की तरह इसका भी कई और विकल्प के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है. जिसमें अचार, मुरब्बा और जैम बनाया जा सकता है.

पढ़ें: Hydroponics Technique : बिना मिट्टी के उगाएं सब्जियां, कम लागत से छत या बालकनी में कर सकेंगे खेती

हजारों हेक्टर में होने लगी है खेती : वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र पारीक कहते हैं कि अब खजूर की खेती एक बेहतर विकल्प के रूप में पश्चिमी राजस्थान दिखने लगी है और आने वाले दिनों में इसमें और संभावनाएं हैं. वह कहते हैं कि अब हजारों हेक्टेयर में खजूर की खेती होने लग गई है, साथ ही सरकार की ओर से भी इसको लेकर सब्सिडी इसको बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं. साथ ही किसान की आमदनी के लिए भी यह एक मुफीद विकल्प है.

अनुसंधान केंद्र करता है किसानों की मदद : खजूर अनुसंधान केंद्र से जुड़े अजय प्रताप कहते हैं कि हमारे यहां किसानों को पूरी तकनीक के साथ कम लागत में पौधे उपलब्ध करवाए जाते हैं और टिशू कल्चर के पौधे भी उन्हें उपलब्ध कराए जाते हैं. इसके बारे में उन्हें हर समय जरूरत पड़ने पर अपडेट भी किया जाता है, साथ ही उनकी खेती में मदद करने का प्रयास भी किया जाता है.

दो बार लगा सकते हैं पौधे : अजय प्रताप कहते हैं कि साल में दो बार खजूर के पौधे लगाए जा सकते हैं, जिनमें जून और फरवरी माह में इनके पौधा लगाने का समय सही माना जाता है. क्योंकि इस वक्त मौसम में जरूरत के मुताबिक गर्मी होती है. फरवरी के बाद गर्मी का सीजन शुरू हो जाता है जो कि पौधे को विकसित करने के लिए बेहतर माना जाता है.

कैदी करते रखरखाव : खजूर अनुसंधान केंद्र में खुली जेल के कैदी इन 53 किस्म के लगाए गए अलग-अलग पौधों और पेड़ की रखरखाव कटिंग फल निकालना पानी देना सहित सारे काम करते हैं.

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