बीकानेर. नवरात्र के तीसरे दिन भगवती देवी दुर्गा के मां चंद्रघंटा के स्वरूप की पूजा होती है. देवी के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा का महत्व काफी खास है . इनकी पूजा करने से जातक को पूजा अर्चना से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है. माता चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्रमा का दृश्य है और इसी कारण मां के इस स्वरूप को चंद्रघंटा नाम मिला.
माता चंद्र घंटा के अवतार से जुड़ी कथा
पञ्चांगकर्ता पंडित राजेन्द्र किराडू ने बताया कि देवासुर संग्राम में भी देवता जीतने में विफल होते हैं. इस वक्त भगवती देवी दुर्गा के अलग अलग अवतारों में मां चंद्रघंटा का अवतार हुआ. नवरात्र के समय महिषासुर के साथ युद्ध के समय मां चंद्रघंटा के रूप में अवतरित हुई थीं. बता दें कि मां चंद्रघंटा को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, इंद्र ने अपना घंटा, सूर्य ने तेज और तलवार और सिंह प्रदान किए.
खीर मालपुआ का भोग, मंदार के पुष्प करें अर्पित
पञ्चांगकर्ता पंडित राजेन्द्र किराडू ने बताया कि मां दुर्गा की पूजा में मालपुआ और खीर अतिप्रिय बतलाया गया है और इसी का भोग लगाया जाना चाहिए. वे कहते हैं कि मां चंद्रघंटा की पूजा आराधना में देशी गाय का दूध का अर्पण करने से भी मां अति प्रसन्न होती है. इसके अलावा माता चंद्रघंटा की पूजा में सभी प्रकार के पुष्प अर्पित किए जाते हैं लेकिन मंदार के पुष्प अर्पण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
शारीरिक कष्ट व दुःख दूर
जो लोग बीमारी या किसी अन्य कारण से शारीरिक रूप से कष्ट भोग रहे है और पीड़ा से गुजर रहे हैं उन्हें मां चंद्रघंटा की पूजा करने से इसका लाभ मिलता है. कहते हैं माता जातक को जटिल रोगों की पीड़ा को हर लेती हैं.
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