बीकानेर. कोरोना महामारी से जनजीवन आर्थिक और शारीरिक रूप से बुरी तरह प्रभावित हुआ है. सदियों से चली आ रही परंपराओं और शादी-विवाह जैसे आयोजनों पर भी कोरोना ने जबरदस्त प्रभाव डाला है. इसी कड़ी में शादी-विवाह जैसे मांगलिक आयोजनों में दी जाने वाली निमंत्रण पत्रिका का व्यापार भी कोरोना की जद में है. शादी में 100 लोगों के शामिल होने के कोरोना नियमों के चलते आयोजक निमंत्रण पत्रिका नहीं छपवा रहा है. ऐसे में निमंत्रण पत्रिका के कारोबार से जुड़े लोग आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं.
दरअसल, शादी और मांगलिक आयोजन में अपने परिचित, रिश्तेदार, दोस्तों, सगे-संबंधियों को बुलाने के लिए निमंत्रण पत्रिका भेजने का रिवाज है. हर मांगलिक आयोजन में व्यक्ति अपने संपर्क के हिसाब से निमंत्रण पत्रिका छपवाता है. आमतौर पर 200 से लेकर 2000 निमंत्रण पत्रिका एक आयोजन के लिए छपती है, लेकिन कोरोना में स्थिति बदतर है. कोरोना के शुरुआती दौर में जहां शादियां निरस्त हो गई थी, तो वहीं अनलॉक के बाद फिर से शादी मांगलिक आयोजन शुरू हुए. लेकिन, सरकार ने हर आयोजन में अधिकतम व्यक्तियों की उपस्थिति की गाइडलाइन जारी कर दी.
ऐसे में हर व्यक्ति अपनी नजदीकी रिश्तेदारों के अलावा किसी को भी निमंत्रण नहीं दे पा रहा. जब निमंत्रण ही नहीं, तो निमंत्रण पत्रिका के छपवाने का कोई काम नहीं. अब केवल शादी के ऑफिशियल रिकॉर्ड की औपचारिकता के लिए निमंत्रण पत्रिका की जरूरत पड़ रही है. व्यक्ति 20 से ज्यादा निमंत्रण पत्रिका नहीं छपवा रहा है. जिसके चलते वेडिंग कार्ड की इंडस्ट्री बुरी तरह से प्रभावित हुई है और इंडस्ट्री को भी खासा नुकसान पहुंचा है.
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महज 21 कार्ड की छपवाई
शादी के निमंत्रण कार्ड खरीदने आए जय गोपाल पुरोहित कहते हैं कि पूर्व में घर में हुए आयोजनों में बड़ी संख्या में लोगों को बुलाया था और निमंत्रण कार्ड छप गए थे, लेकिन अब सरकार की गाइडलाइन है. ऐसे में महज 21 कार्ड ही छपवाने हैं. वेडिंग कार्ड इंडस्ट्री से जुड़े अरुण स्वामी कहते हैं कि बिजनेस 10 फीसदी से भी नीचे रह गया है. पहले लॉकडाउन के चलते शादियां स्थगित हो गई और अब 50 फीसदी लोग स्थिति सामान्य होने के बाद शादी करने की बात कह रहे हैं. जो लोग अभी शादियां कर रहे हैं, वह वेडिंग कार्ड को केवल जरूरी रिकॉर्ड के मुताबिक ही छपवा रहे हैं.
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लाखों में सिमटा बिजनेस
एक अनुमान के मुताबिक, बीकानेर में सालाना एक करोड़ से ज्यादा का वेडिंग कार्ड का कारोबार होता है, जो अब कुछ लाख रुपये तक ही सीमित रह गया है. ऐसे में हालात विकट होते जा रहे हैं. स्वामी कहते हैं कि हालात इतने खराब है कि इस साल में उन्होंने किसी भी तरह के कोई भी नए कार्ड की वैरायटी की खरीद नहीं की. प्रिंटिंग व्यवसाय से जुड़े आनंद पारीक कहते हैं कि हालात बहुत विकट है. पहले जितने लोग काम करते थे, उनकी अब जरूरत नहीं है. क्योंकि व्यापार ही नहीं रहा और अब अकेले ही खुद ही काम कर रहे हैं. शादी के कार्ड कि अधिकतर संख्या 20 के आसपास रहती है. लेकिन, प्रिंटिंग के लिए जो लागत खर्च आती है उतनी भी नहीं निकल पाती है और लोग भी उसको देने से हिचकते हैं. अब यह धंधा फायदे का नहीं, बल्कि घाटे का सौदा बनता जा रहा है.