बीकानेर. कहा जाता है कि बीकानेर परंपराओं को निभाने वाला शहर है. त्योहार चाहे कोई सा भी हो, लेकिन इस शहर की बात ही निराली है. यहां एक अलग ही संस्कृति और परंपरा देखने को मिलती है. सदियों से ऐसी परंपराओं को यहां के लोग निभाते आ रहे हैं. दीपावली के अवसर पर शहर में एक ऐसी ही परंपरा बारहगुवाड़ चौक में पिछले 200 से अधिक सालों से निभाई जा रही है. स्थानीय भाषा में इसे बनाटी खेल के नाम से जाना जाता है.
यह है इस खेल का इतिहास : इस आयोजन से जुड़े ईसर छंगाणी कहते हैं कि करीब 200 साल पहले तत्कालीन समाज के बुजुर्गों ने इसको शुरू किया. इसका उद्देश्य यह था कि दीपावली के एक दिन पहले रात को लोग इस बहाने एकत्र हो. यह आयोजन स्नेह मिलन जैसा हो और सभी में प्रेम बना रहे. यह परंपरा आज तक अनवरत जारी है.
क्या है बनाटी खेल ? : छंगाणी कहते हैं कि बनाटी बनाना भी सामान्य नहीं है. यह भी एक कला है, क्योंकि बांस की लकड़ी के दोनों छोर पर बांधे जाने वाले सूत का संतुलन रखना पड़ता है. लकड़ी के दोनों तरफ सूत के कोड़े बनाए जाते हैं और उसे दो दिन तक तेल में भिगोकर रखा जाता है. जले हुए डीजल तेल में दो दिन तक इसे भिगोते है.
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करीब 8 किलो होता है वजन : छंगाणी कहते हैं कि बनाटी में करीब 8 से 10 किलो वजन होता है. उसे जलती मशाल के रूप में हाथ से घुमाने के साथ ही सिर के ऊपर और पैरों के नीचे से ले जाना आसान नहीं है. आने वाली पीढ़ी इस खेल में रुचि ले इसके लिए मोहल्ले के करीब 50-60 युवाओं को एक सप्ताह पहले से प्रशिक्षण दिया जाता है. मोहल्ले के बुजुर्ग युवाओं को इसके लिए तैयार करते हैं. यह खेल सामंजस्य और शारीरिक दक्षता को प्रदर्शित करता है.
'बुजुर्गों के सानिध्य में हम लोग इस खेल का प्रदर्शन करते हैं. हमारा यह दायित्व है कि पूर्वजों की ओर से शुरू की गई इस परंपरा का आगे भी प्रसार हो और परंपरा कायम रहे. इसके लिए हम इसमें सक्रिय रहते हैं.' - नवदीप छंगाणी (स्थानीय युवा