बीकानेर. भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी सृष्टि के कर्ता निर्गुण ब्रह्माजी का व्रत किया जाता है इसलिए इसे अनन्त चतुर्दशी का व्रत कहते हैं. पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू इस दिन का महात्म्य बताते हुए कहते हैं कि'अनंत' यह कालरूप भगवान श्रीकृष्ण का नाम है. जैसा कि अनंत कथा के 'अनंत इत्यहं पार्थ मम कथं निबोध इन वचनों से सिद्ध है. सूर्योदय से 6 घड़ी चतुर्दशी जिस दिन हो उस दिन यह व्रत करना चाहिए, यह मुख्य पक्ष है. ऐसा न हो तो उदय से 4 घड़ी चतुर्दशी हो तभी हो इसी को मानना चाहिए. वास्तव में यह समुंद्र स्थित शेषसायी भगवान विष्णु की पूजा है.
क्या है व्रत का विधान : किराडू कहते हैं कि इस व्रत की पूजा दोपहर को की जाती है. व्रतकर्त्ता स्नान करके कलश की स्थापना करके उस पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में कुश से निर्मित अनन्त की स्थापना की जाती है. इसके निकट कुमकुम, केसर रंजित चौदह गाठों वाला 'अनंत' रखकर कुश के अनंत की वंदना करके उसमें भगवान विष्णु का आह्वान करना चाहिए. तत्पश्चात् अनंत देव का पुनः ध्यान करके शुद्ध अनंत को अपनी के दाहिनी भुजा पर बांधना चाहिए. यह डोरा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत फलदायक माना जाता है. यह व्रत-धन-पुत्रादि की कामना से किया जाता है. इस दिन नवीन सूत्र के अनंत को धारण करके पुराने का त्याग कर देना चाहिए. इस व्रत का पालन कर ब्राह्मणों को दान करें. अनंत की चौदह गाठें लोकों की प्रतीक है. उनमें अनंत भगवान विद्यमान हैं.
ऐसे करें पूजा अर्चना : इस दिन केवल एक बार बिना नमक वाले भोजन करने की प्रथा है. पूजन के बाद घृत का संक्षिप्त हवन भी किया जाता है. उसके बाद अनंत देव का स्मरण करते हुए मंत्रोच्चारण के साथ शुद्ध अनंत को अपनी दाहिनी भुजा में बाँधनी चाहिए. किराडू कहते है कि प्रातः काल नित्यकर्म से निवृत्त होकर सर्वप्रथम निम्न संकल्प करें ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकशर्मा (वर्मा गुप्तो वा) अहं कृतस्य अनन्तव्रतस्य साङ्गता सिद्ध्यर्थ अनन्तपूजनं अनन्तकथाश्रवणञ्च करिष्ये. ऐसा संकल्प कर संभव हो तो नदी तट पर भूमि को गोबर से लीपकर वहां चांदी, तांबा या मिट्टी का कलश स्थापित कर उस पर विष्णुमूर्ति के साथ चौदह गांठवाला डोरा रखकर उसकी यथाविधि ॐ अनन्ताय नमः इस नाम मंत्र के साथ योग्य पंडित के सानिध्य में पूजा करनी चाहिए. अनंत की कथा सुनकर डोरा धारण करें. अनन्त का डोरा शुद्ध सूत से बना हुआ चौदह गांठवाला होना चाहिए. यह डोरा भगवान् विष्णु की प्रसन्न करनेवाला तथा अनन्त फलदायक माना गया है. यह व्रत धन-पुत्रादि की कामना से किया जाता है. इस दिन नवीन सूत्र के अनंत को धारण करके पुराने को त्याग देना चाहिए.
इन मंत्रोच्चारण के साथ करें अनंत को धारण : अनन्त संसारमहासमुद्रे मग्नं समभ्युद्धर वासुदेव । 'अनन्तरूपे विनियोजयस्व ह्यनन्तसूत्राय नमो नमस्ते ॥
पौराणिक कथा : अनंत चतुदर्शी व्रत की कथा एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया. यज्ञमंडप का निर्माण सुन्दर तो था ही अद्भुत भी था. उसमें जल में स्थल तथा स्थल में जल भ्रंति होती थी. उस यज्ञ मंडप में घूमते हुए दुर्योधन एक तालाब में स्थल के भ्रम में गिर गए. भीमसेन तथा द्रौपदी ने "अंधों की संतान अंधी" कहकर उनका उपहास किया. इससे दुर्योधन चिढ़ गया और उसके मन में द्वेष पैदा हो गया. उसने बदला लेने के विचार से पांडवों को बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ा. वन में रहते हुए पांडव अनेक कष्ट सहते रहे. एक दिन वन में युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से अपना दुःख कहा तथा दुःख को दूर करने का उपाय पूछा. श्री ने कहा, "हे युधिष्टिर ! तुम विधिपूर्वक अनंत कृष्ण भगवान का व्रत करो. इससे तुम्हारा सारा संकट दूर हो जाएगा. तुम्हारा गया हुआ राज्य भी मिलेगा. युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया और उसको मनवांछित फल की प्राप्ति हुई.