भीलवाड़ा. होली के 13 दिन बाद मनाया जाने वाला महापर्व आज भी अपनी अहमियत बनाए हुए हैं. परम्परागत ढंग से आज भी भीलवाड़ा स्थित गुलमंडी सराफा बाजार क्षेत्र में शहर के विभिन्न स्थानों में रह रहे जीनगर समाज के स्त्री-पुरुष ढोल और गाजे-बाजे के साथ पहुंचते हैं.इस दिन महिलाएं सूती साड़ियों को गूंधकर कर कोड़े बना लेती है. वहां रखे पानी वह रंग से भरे कड़ाव के पास खड़ी हो जाती है. पुरुष कड़ाव से पानी की डोलची भरकर महिलाओं पर फेंकते हैं और महिलाएं उन्हें कोड़े से मारती है.
कड़ाव पर जिसका कब्जा हो जाता है वही इसमें विजेता होता है.वहीं महिला पवन देवी जीनगर ने कहा कि साल भर हमें इस त्यौहार का इंतजार रहता है. यह परम्परा हमारे बुजुर्ग मनाते थे और अब हम इसे आगे बढ़ा रहे हैं इसमें महिलाएं और पुरुष दोनों मिलकर इस होली को खेलते हैं. इसके बाद शाम को स्नेह भोज का आयोजन किया जाता है. वहीं पूर्व महामंत्री नंदकिशोर जीनगर कहते हैं कि लगभग 2 सदी पहले हमारे बुजुर्गों ने सोचा था कि महिलाओं का सशक्तिकरण के लिए कोई पर्व मनाया जाए.
तभी से होली के 13 दिन बाद कोड़ा मार होली का आयोजन किया जा रहा है और इस त्यौहार को हम आज तक निभा रहे हैं. इस दिन महिलाएं हम पर प्यार भरे कोड़े बरसाती है. तो हम उन पर प्यार के रंग का पानी डालते हैं. इसके बाद पूरा समाज एक सामूहिक भोज का आयोजन भी करता है. जिससे कि समाज में एकता कायम रहे .कोडामार होली में नवविवाहित युवक- युवतियां भी होली खेलते नजर आते है.