भीलवाड़ा. जिले के बड़ी हरणी गांव में पर्यावरण बचाने की अनूठी पहल की जाती है. जहां पौराणिक काल से ही एक छोटे से विवाद और होली के दिन लगी आग के बाद ग्रामीण लकड़ियों और कंडों से होली नहीं जलाकर पर्यावरण बचाने के लिए चांदी की होली की पूजा करते है.
एक छोटे से विवाद और होली के दिन लगी आग ने जिले के बड़ी हरणी गांव में होली की परम्परा को बदलकर एक नया रूप ही दे दिया. अब इस गांव में ग्रामीण लकडियों और कण्डों की होली ना जलाकर चांदी की होली की पूजा करते है. एक ओर जहां पूरे देश में होलिका दहन किया जाता है. वहीं, एक गांव बड़ी हरणी ऐसा भी है जहां पर्यावरण को बचाने के लिए चांदी की होली की पूजा की जाती हैं.
यहां ग्रामीण पिछले 80 से अधिक सालों से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुचाने के लिए चांदी की होली बनाकर उसकी पूजा करते हैं. उसके बाद उसे गांव के ही मन्दिर में ले जाकर वहां भजन किर्तन करते हैं.
गांव के पण्डित गोपाल लाल शर्मा कहते हैं कि वृक्ष नहीं काटने से जहां पर्यावरण संरक्षण होता है, वहीं आग लगने और आपसी झगडों की संभावना भी खत्म हो जाती है. लोगों के चन्दे से बनायी गई चांदी की होली को होली के दिन चारभुजा के मन्दिर से ठाट-बाट गाजे-बाजे के साथ होलिका दहन स्थल पर ले जाकर पूजा कर वापस मन्दिर में लाकर रख देते हैं.
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क्षेत्रवासी रामेश्वर जाट कहते हैं कि हमारे गांव के लोग इस परम्परा का न केवल समर्थन करते है, बल्कि लोगों से अपील करते है कि वे भी इस परम्परा को आगे बढाए. इस होली से कोई हादसा भी नहीं होता और पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है.