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असुरक्षित टैटू का बढ़ रहा है चलन, त्वचा को पहुंचा रहा नुकसान

यूं तो आधुनिक युग में टैटू बनवाना किसी फैशन से कम नहीं है. परंतु क्या आप यह बात जानते है कि मेलों और सड़कों पर असुरक्षित तरीके से बनाए जा रहे टैटू आपके लिए बीमारी का कारण भी बन सकते है. छोटे-छोटे ग्रामीण इलाकों और मेलों में एक ही निडिल से सैकड़ों लोगों के शरीर पर टैटू बनवाया जाता है. जो कि शरीर के लिए काफी नुकसान दायक होता है.

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Published : Sep 14, 2019, 1:39 PM IST

भीलवाड़ा. वस्त्रनगरी भीलवाड़ा शहर में असुरक्षित टैटू का बढ़ता चलन देखने को मिल रहा है. छोटे-छोटे ग्रामीण इलाकों और मेलों तथा सड़कों पर एक ही निडिल से सैकड़ों लोगों के टैटू मनाए जा रहे है. जो पूरी तरह से असुरक्षित है. राजस्थान की पुरानी प्रथा के अनुसार हमारे समाज में गोदना का चलन बहुत पुराने समय से चला आ रहा है. राजस्थान में यह पहले के समय में बहादुरी का चिन्ह माना जाता था. टैटू खास योद्धाओं और सेनापतियों के बनाये जाते थे.

यह भी पढ़ें- भीलवाड़ा शहर में रिमझिम बारिश का दौर हुआ शुरू, लोगों को गर्मी से मिली राहत

पहले यह बहुत सुरक्षित तरीके से होता था. लेकिन अब विदेशी तरीके से शरीर पर लोग टैटू बनवाने लगे है. जो बेहद असुरक्षित है यह मशीनों को स्टेरलाइजर करते है. साथ ही इसको साफ भी नहीं करते. एक ही नीडल होती है जो चमड़ी के भीतर तक रंग को पहुंचाती है इसकी वजह से शरीर पर आकृति बनती है लेकिन एक ही नीडल अलग-अलग लोगों के शरीर में जाने से वायरस और बैक्टीरिया एक शरीर से दूसरे शरीर तक आसानी से पहुंच जाते है. इसको साफ भी नहीं करते. टैटू बनाने वाले लोगों को इन सब की जानकारी होती है. लेकिन पैसे कमाने के चक्कर में असुरक्षित तरीके से सैकड़ों लोगों के टैटू बना रहे है. और इन पर किसी की रोकथाम नही.

यह भी पढ़ें- भीलवाड़ा: महात्मा गांधी की 150वीं जयंती को लेकर जिला कलेक्ट्रेट सभागार में बैठ

देश में विभिन्न जनजातीय समुदायों और ग्रामीण इलाकों में टैटू को "गोदना" के नाम से भी जाना जाता है. नीले रंग की स्याही से बनाए जाने वाला गोदना समाज में कभी परंपरा और समृद्धि का पर्याय माना जाता था. तरह-तरह के रंगों से चित्रकारी आज फैशन का पर्याय बन गई है. टैटू कहलाने वाली यह कला अब केवल जनजातीय समुदाय तक ही सीमित नहीं रही अब यह बॉलीवुड-हॉलीवुड तक पहुंच चुका है.

आज के समय में टैटू दो प्रकार के होते है "स्थाई और अस्थाई" लोग शौक से स्थाई टैटू बनवा लेते है. परन्तु फिर कुछ समय बाद हटाने के लिए आते है. फिर उस टैटू को हटाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है. पूरा काम त्वचा संबंधित होता है और एक बार फिर संक्रमण का खतरा होता है. अस्थाई टैटू मेहंदी या अन्य ऐसे रंगों से बनाए जाते है. जो कुछ दिनों बाद खुद ही मिट जाते है. ऐसे टैटू बनवाना ही बेहतर होता है.

भीलवाड़ा. वस्त्रनगरी भीलवाड़ा शहर में असुरक्षित टैटू का बढ़ता चलन देखने को मिल रहा है. छोटे-छोटे ग्रामीण इलाकों और मेलों तथा सड़कों पर एक ही निडिल से सैकड़ों लोगों के टैटू मनाए जा रहे है. जो पूरी तरह से असुरक्षित है. राजस्थान की पुरानी प्रथा के अनुसार हमारे समाज में गोदना का चलन बहुत पुराने समय से चला आ रहा है. राजस्थान में यह पहले के समय में बहादुरी का चिन्ह माना जाता था. टैटू खास योद्धाओं और सेनापतियों के बनाये जाते थे.

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पहले यह बहुत सुरक्षित तरीके से होता था. लेकिन अब विदेशी तरीके से शरीर पर लोग टैटू बनवाने लगे है. जो बेहद असुरक्षित है यह मशीनों को स्टेरलाइजर करते है. साथ ही इसको साफ भी नहीं करते. एक ही नीडल होती है जो चमड़ी के भीतर तक रंग को पहुंचाती है इसकी वजह से शरीर पर आकृति बनती है लेकिन एक ही नीडल अलग-अलग लोगों के शरीर में जाने से वायरस और बैक्टीरिया एक शरीर से दूसरे शरीर तक आसानी से पहुंच जाते है. इसको साफ भी नहीं करते. टैटू बनाने वाले लोगों को इन सब की जानकारी होती है. लेकिन पैसे कमाने के चक्कर में असुरक्षित तरीके से सैकड़ों लोगों के टैटू बना रहे है. और इन पर किसी की रोकथाम नही.

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देश में विभिन्न जनजातीय समुदायों और ग्रामीण इलाकों में टैटू को "गोदना" के नाम से भी जाना जाता है. नीले रंग की स्याही से बनाए जाने वाला गोदना समाज में कभी परंपरा और समृद्धि का पर्याय माना जाता था. तरह-तरह के रंगों से चित्रकारी आज फैशन का पर्याय बन गई है. टैटू कहलाने वाली यह कला अब केवल जनजातीय समुदाय तक ही सीमित नहीं रही अब यह बॉलीवुड-हॉलीवुड तक पहुंच चुका है.

आज के समय में टैटू दो प्रकार के होते है "स्थाई और अस्थाई" लोग शौक से स्थाई टैटू बनवा लेते है. परन्तु फिर कुछ समय बाद हटाने के लिए आते है. फिर उस टैटू को हटाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है. पूरा काम त्वचा संबंधित होता है और एक बार फिर संक्रमण का खतरा होता है. अस्थाई टैटू मेहंदी या अन्य ऐसे रंगों से बनाए जाते है. जो कुछ दिनों बाद खुद ही मिट जाते है. ऐसे टैटू बनवाना ही बेहतर होता है.

Intro:

भीलवाड़ा - यूं तो आधुनिक युग में टैटू बनाना है किसी फैशन से कम नहीं है परंतु क्या आप यह बात जानते हैं कि मैंलो और सड़कों पर असुरक्षित तरीके से बनाए जा रहे टैटू आपके लिए बीमारी का कारण भी बन सकते हैं ।

जी हां हम बात कर रहे हैं जिले में असुरक्षित तरीके से टैटू बनाने का चलन जो तेजी से बढ़ रहा है छोटे-छोटे ग्रामीण इलाकों और मेलों में एक ही निरल से सैकड़ों लोगों के शरीर पर टैटू बनवाया जाता है जो कि शरीर के लिए काफी नुकसान दायक होता है





Body:

वस्त्रनगरी भीलवाड़ा शहर में असुरक्षित टैटू का बढ़ता चलन देखने को मिल रहा है छोटे-छोटे ग्रामीण इलाकों और मेलों , सड़कों पर एक ही नीडल से सैकड़ों लोगों के टैटू मनाए जा रहे हैं जो पूरी तरह से असुरक्षित है । राजस्थान की पुरानी प्रथा के अनुसार हमारे समाज में गोदना का चलन बहुत पुराने समय से चला आ रहा है । राजस्थान में पहले के समय में बहादुरी का चिन्ह माना जाता था टैटू खास योद्धाओं और सेनापतियों के बनाये जाते थे । पहले यह बहुत सुरक्षित तरीके से होता था । लेकिन अब विदेशी तरीके से शरीर पर लोग टैटू बनवाने लगे हैं जो बेहद असुरक्षित है यह मशीनों को स्टेरलाइजर करते हैं साथ ही इसको साफ भी नहीं करते एक एक ही नीडल होती है जो चमड़ी के भीतर तक रंग को पहुंचाती है इसकी वजह से शरीर पर आकृति बनती है लेकिन एक ही नीडल अलग-अलग लोगों के शरीर में जाने से वायरस और बैक्टीरिया एक शरीर से दूसरे शरीर तक आसानी से पहुंच जाते हैं इसको साफ भी नहीं करते ।


टैटू बनाने वाले लोगों को इन सब की जानकारी होती है लेकिन पैसे कमाने के चक्कर में असुरक्षित तरीके से सैकड़ों लोगों के टैटू बना रहे हैं और इन पर किसी का रोकथाम नहीं वही इस पर टैटू बनाने वाले कालूराम का कहना है कि मैं यह टैटू बनाने का कार्य पिछले कई वर्षों से करता रहा हूं मेरे दादा परदादा भी यही काम करते थे और मैं भी यही कार्य कर रहा हूं रोज के हमारे पास 2 - 4 हजार के ग्राहक आ जाते हैं परंतु कुछ दिन ऐसे भी दिन आ जाते हैं जिसमें हमें खुद के पैसे से चाय पीनी पड़ती है

जब हमने इस बारे में चिकित्सकों की राय लेनी चाही तो भीलवाड़ा आर सी एच ओ डॉ सीपी गोस्वामी का कहना है कि मेलों और सड़कों पर जो टैटू वाले असुरक्षित तरीके से टैटू बनाते हैं और इसको साफ भी नहीं करते। एक ही नीडल से सैकड़ों लोगों के टैटू बनाने के कारण जो एक नीडल अलग-अलग लोगों के शरीर में जाने से वायरस और बैक्टीरिया एक शरीर से दूसरे शरीर तक आसानी से पहुंच जाते हैं इसके चलते चर्म रोग और एचआईवी के साथी कई चमड़ी से संबंधित कुष्ठरोग , हेपेटाइटिस बीमारी होने का खतरा हो सकता है इसलिए टैटू हमेशा जानकार और कुशल व्यक्ति से बनवाना चाहिए । इसके लिए इस्तेमाल की जाने वाली स्याही भी कई बार संक्रमण का कारण बन जाती है । वही गोस्वामी में यह भी कहा कि टैटू बनाते समय त्वचा की कोशिकाएं टैटू की सुई से कभी इस तरह क्षतिग्रस्त जाती है कि लंबे समय तक इलाज करवाना पड़ता है । कई लोगों की त्वचा अत्यंत संवेदनशील होती है ऐसे लोगों को टैटू नहीं बनवाना चाहिए । इससे बचने के लिए लोगों को जागरूक होना चाहिए ताकि वह इन रोगों बच सकें इसकी रोकथाम के लिए इन टैटू सेंटर और टैटू बनाने वालों पर लाइसेंस जारी करना चाहिए और इन्फेक्शन टीम बैठानी चाहिए।




देश में विभिन्न जनजातीय समुदायों और ग्रामीण इलाकों में टैटू को " गोदना "के नाम से भी जाना जाता है नीले रंग की स्याही से बनाए जाने वाला गोदना समाज में कभी परंपरा और समृद्धि का पर्याय माना जाता था । तरह-तरह के रंगों से चित्रकारी आज फैशन का पर्याय बन गई है टैटू कहलाने वाली यह कला अब केवल जनजातीय समुदाय तक ही सीमित नहीं रही अब यह बॉलीवुड - हॉलीवुड तक पहुंच चुका है ।

टैटू के प्रकार

आज के समय में टैटू दो प्रकार के होते हैं " स्थाई और अस्थाई " लोग शोक से स्थाई टैटू बनवा लेते हैं परन्तु फिर कुछ समय बाद हटाने के लिए आते हैं फिर उस टैटू को हटाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है । पूरा काम त्वचा संबंधित होता है और एक बार फिर संक्रमण का खतरा होता है अस्थाई टैटू मेहंदी या अन्य ऐसे रंगों से बनाए जाते हैं जो कुछ दिनों बाद खुद ही मिट जाते हैं ऐसे टैटू बनवाना ही बेहतर होता है।








Conclusion:

बाइट - कालूराम टैटू बनाने वाला व्यक्ति

डॉ सीपी गोस्वामी , आर सी एच ओ ,भीलवाड़ा
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