भीलवाड़ा. वस्त्रनगरी भीलवाड़ा शहर में असुरक्षित टैटू का बढ़ता चलन देखने को मिल रहा है. छोटे-छोटे ग्रामीण इलाकों और मेलों तथा सड़कों पर एक ही निडिल से सैकड़ों लोगों के टैटू मनाए जा रहे है. जो पूरी तरह से असुरक्षित है. राजस्थान की पुरानी प्रथा के अनुसार हमारे समाज में गोदना का चलन बहुत पुराने समय से चला आ रहा है. राजस्थान में यह पहले के समय में बहादुरी का चिन्ह माना जाता था. टैटू खास योद्धाओं और सेनापतियों के बनाये जाते थे.
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पहले यह बहुत सुरक्षित तरीके से होता था. लेकिन अब विदेशी तरीके से शरीर पर लोग टैटू बनवाने लगे है. जो बेहद असुरक्षित है यह मशीनों को स्टेरलाइजर करते है. साथ ही इसको साफ भी नहीं करते. एक ही नीडल होती है जो चमड़ी के भीतर तक रंग को पहुंचाती है इसकी वजह से शरीर पर आकृति बनती है लेकिन एक ही नीडल अलग-अलग लोगों के शरीर में जाने से वायरस और बैक्टीरिया एक शरीर से दूसरे शरीर तक आसानी से पहुंच जाते है. इसको साफ भी नहीं करते. टैटू बनाने वाले लोगों को इन सब की जानकारी होती है. लेकिन पैसे कमाने के चक्कर में असुरक्षित तरीके से सैकड़ों लोगों के टैटू बना रहे है. और इन पर किसी की रोकथाम नही.
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देश में विभिन्न जनजातीय समुदायों और ग्रामीण इलाकों में टैटू को "गोदना" के नाम से भी जाना जाता है. नीले रंग की स्याही से बनाए जाने वाला गोदना समाज में कभी परंपरा और समृद्धि का पर्याय माना जाता था. तरह-तरह के रंगों से चित्रकारी आज फैशन का पर्याय बन गई है. टैटू कहलाने वाली यह कला अब केवल जनजातीय समुदाय तक ही सीमित नहीं रही अब यह बॉलीवुड-हॉलीवुड तक पहुंच चुका है.
आज के समय में टैटू दो प्रकार के होते है "स्थाई और अस्थाई" लोग शौक से स्थाई टैटू बनवा लेते है. परन्तु फिर कुछ समय बाद हटाने के लिए आते है. फिर उस टैटू को हटाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है. पूरा काम त्वचा संबंधित होता है और एक बार फिर संक्रमण का खतरा होता है. अस्थाई टैटू मेहंदी या अन्य ऐसे रंगों से बनाए जाते है. जो कुछ दिनों बाद खुद ही मिट जाते है. ऐसे टैटू बनवाना ही बेहतर होता है.