भीलवाड़ा. प्रदेश सबसे पहले कोरोना का 'कहर' कपड़ा नगरी भीलवाड़ा में बरपा था. पूरे विश्व में कोरोना की मार हर वर्ग के व्यक्ति ने झेली है, लेकिन इसकी खासी मार त्यौहारों के सीजन में काम करने वाले प्रवासी लोगों पर कुछ ज्यादा ही पड़ी है.
बाहरी जिलों से भीलवाड़ा में आकर हस्तनिर्मित सजावट के सामान की बिक्री करने वाले लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. इस बार कोविड-19 के चलते इनकी आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. आलम यह है कि उन्होंने पिछली बार के मुकाबले इस बार आधे से भी कम हस्तनिर्मित माल बनाया है. बावजूद इसके अब यह माल भी बिकना मुश्किल हो रहा है.
बता दें कि पिछले दस दिनों से यह प्रवासी लोग भीलवाड़ा-चित्तौड़-राजमार्ग पर ही अपने अस्थाई आवास बनाकर हस्तनिर्मित सामान की बिक्री करने में जुटे हुए हैं, लेकिन अब तक इन लोगों का एक भी समान नहीं बिक पाया है. जिसके चलते इनके सामने दाल-रोटी के भी लाले पड़े गए हैं.
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जहां पिछले साल ये लोग 40 हजार रुपये का माल बनाए थे, वहीं इन्होंने इस बार सिर्फ 15 हजार रुपये का माल बनाया है जो बमुश्किल बिक रहा है. प्रवासी रवि मिरासी का कहना है कि वह हर साल अलग-अलग जिले और शहर में हस्तनिर्मित ट्रक, ट्रैक्टर और बस, टेम्पो घर के डेकोरेशन का सामान बेचने के लिए आते हैं. जिसकी वजह से इनका पूरा परिवार इसी कार्य पर निर्भर रहता है. वहीं, इस बार कोरोना की वजह से इनका धंधा बिल्कुल चौपट हो चुका है.