भरतपुर. रियासतकाल में शिकारगाह के रूप में पहचान रखने वाला केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान आज दुनियाभर में विश्व विरासत के रूप में जाना जाता है. बीते 22 साल में यह घना कई अच्छे-बुरे दौर से गुजरा. जल संकट हुआ तो विश्व विरासत के दर्जे पर खतरा मंडराने लगा, लेकिन फिर भी घना ने हर साल भरतपुर की झोली भरी. यहां हर साल 350 से अधिक प्रजाति के हजारों पक्षी ही प्रवास पर नहीं आते हैं, बल्कि इन्हें देखने के लिए लाखों की संख्या में देसी-विदेशी पर्यटक भी यहां पहुंचते हैं. इन्हीं पर्यटकों से भरतपुर को हर वर्ष करोड़ों रुपए की आय होती है.
22 साल में 26 लाख से अधिक पर्यटक : डीएफओ मानस सिंह ने बताया कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में विभिन्न प्रजाति के पक्षियों का दीदार करने के लिए हर वर्ष लाखों की संख्या में देसी-विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं. वर्ष 2000-2001 से 2021-2022 तक घना में करीब 26 लाख 49 हजार से अधिक पर्यटक आ चुके हैं. इनमें से करीब 20% पर्यटक विदेशी हैं. इन 22 साल के दौरान देसी-विदेशी पर्यटकों से घना प्रशासन को करीब 28 करोड़ की राजस्व आय हुई है.
भरतपुर को हर वर्ष 80 करोड़ की आय : उन्होंने बताया कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान आने वाले पर्यटकों से घना प्रशासन के साथ ही पूरे भरतपुर की इकोनॉमी जुड़ी हुई है. घना को जहां टिकट के माध्यम से आय होती है वहीं यहां के पर्यटन व्यवसाय को भी जबर्दस्त आय होती है. पर्यटन व्यवसायियों की मानें तो हर वर्ष पर्यटन सीजन में पर्यटन व्यवसाय को 80 करोड़ तक की आय होती है. ऐसे में घना भरतपुर की आर्थिक रीढ़ साबित हो रहा है.
घना ने झेले कई दंश : उन्होंने बताया कि केवलादेव ने 22 साल में कई दंश भी झेले हैं. लंबे समय से घना जल संकट झेल रहा है, जिसका दुष्परिणाम यह हुआ की साइबेरियन सारस के साथ ही कई प्रजाति के पक्षियों ने यहां से मुंह मोड़ लिया. वहीं, पांचना बांध का पानी नहीं मिलने की वजह से यहां की जैव विविधता को भी काफी नुकसान झेलना पड़ा है. इसके बाद कोरोना काल में यहां के पर्यटन व्यवसाय को करीब दो से तीन साल तक भारी नुकसान झेलना पड़ा.
घना में ये प्रजातियां हैं : बता दें कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान अपनी जैव विविधता के लिए दुनिया भर में विख्यात है. उद्यान में 350 से अधिक प्रजाति के प्रवासी पक्षी सर्दियों में प्रवास करते हैं. 28.73 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले उद्यान में 57 प्रजाति की मछलियां, 34 प्रजाति के स्तनधारी जीव, करीब 9 प्रजाति के कछुए, 80 प्रजाति की तितलियां और 14 प्रजाति के मेंढक मिलते हैं. यहां पक्षियों और जैव विविधता को निहारने के लिए हर वर्ष हजारों, लाखों की संख्या में देसी विदेशी पर्यटक आते हैं.