भरतपुर. देश सेवा का जज्बा उसकी रगों में लहू बनकर दौड़ता था. परिवार से पहले देश को मानता था. सवा तीन साल पहले देश के लिए प्राण न्योछावर करने वाले सैनिक सौरभ कटारा के दिल में देशभक्ति का जज्बा कुछ इस कदर था कि शादी के तीन दिन बाद ही अपनी नई नवेली दुल्हन को घर पर छोड़कर देश की सेवा के लिए निकल पड़ा था. शादी के केवल 16 दिन बाद ही उसके बलिदान की खबर आयी. लेकिन आज सौरभ कटारा को शहीद का सम्मान दिलाने के लिए वीरांगना पूनम और पूर्व सैनिक पिता दर दर की ठोकर खा रहे हैं. शायद ही कोई दरवाजा शेष होगा जिसे उसके पिता ने नहींं खटखटाया होगा. बीते तीन सालों से वीरांगना और पिता को सिर्फ आश्वासन मिल रहा है पर बेटा को शहीद का सम्मान नहीं.
अब नहीं मान रहे शहीद
सैनिक सौरभ कटारा के पिता नरेश कटारा ने बताया कि पहले सभी सैनिक अधिकारी और नेता आश्वासन देते रहे कि सौरभ कटारा को शहीद का दर्जा दिया जाएगा. साथ ही उसे मिलने वाली सभी सहायता भी दी जाएंगी. लेकिन अब रक्षा मंत्रालय सौरभ कटारा को शहीद मानने से ही इनकार कर रहा है.
फिजिकल और बैटल कैजुअल्टी!
पिता नरेश कटारा ने बताया कि उनके बेटा सौरभ कटारा ने कुपवाड़ा में ड्यूटी के दौरान हुए ब्लास्ट में देश के लिए जान गंवाई थी. लेकिन रक्षा मंत्रालय अब उसे फिजिकल कैजुअल्टी मानकर शहीद का दर्जा देने से मुकर रहा है. रक्षा मंत्रालय बैटल कैजुअल्टी को ही शहीद का दर्जा देता है. भरतपुर के पूर्व जिला सैनिक कल्याण बोर्ड अधिकारी कर्नल केवीएस ठैनुआ का कहना है कि नियमानुसार रक्षा मंत्रालय उसी को बैटल कैजुअल्टी मानता है जब कोई सैनिक युद्ध के दौरान या दुश्मन से लड़ते हुए मारा जाता है. अन्य तरह के मामलों में फिजिकल कैजुअल्टी मानी जाती है. फिजिकल कैजुअल्टी में रक्षा मंत्रालय ने शहीद को दी जाने वाली सहायता का कोई प्रावधान नहीं है.
सभी नेताओं का दरवाजा खटखटाया
सैनिक सौरभ कटारा के पिता नरेश कटारा ने बताया कि उन्होंने भी लंबे समय तक देश की सेवा की थी. उनके बेटे ने देश के लिए प्राण न्योछावर कर दिए. लेकिन अब सरकार उसे शहीद मानने से ही इनकार कर रही है. उन्होंने अपने बेटे को शहीद का सम्मान दिलाने के लिए रक्षा मंत्रालय से लेकर प्रदेश के राज्यपाल और मंत्रियों तक गुहार लगाई. हर जगह से उन्हें आश्वासन तो मिला लेकिन बेटे को शहीद का सम्मान नहीं मिला.
शहादत पर दोहरा व्यवहार
पिता नरेश कटारा का कहना है कि प्रदेश सरकार सड़क दुर्घटना और हत्या के मामलों में तो परिजनों को मोटी सहायता दे देती है. लेकिन देश के लिए प्राण न्योछावर करने वाले मेरे बेटे की वीरांगना को सवा 3 साल बाद भी एक रुपए की आर्थिक सहायता नहीं दी गई. उनका कहना है कि सीडीएस जनरल बिपिन रावत की दुर्घटना में मौत के समय उनके कमांडो भी मारे गए थे. उन सभी को तो शहीद का दर्जा देते हुए सभी लाभ दिए गए, लेकिन उनके बेटे की शहादत पर दोहरा व्यवहार किया गया.
13 दिन की सुहागिन
गौर है कि जिले के रूपवास क्षेत्र के बरौली ब्राह्मण गांव निवासी सौरभ कटारा की 8 दिसंबर 2019 को पूनम के साथ शादी हुई थी. उसके तीन दिन बाद ही वो ड्यूटी पर लौट गया था. सौरभ कटारा जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में हुए बम विस्फोट में घायल हो गए थे. 24 दिसंबर 2019 को उपचार के दौरान आर्मी अस्पताल में शहीद हो गए थे. शादी के महज 16 दिन बाद ही सौरभ कटारा ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. तब से अब तक शहीद सौरभ के पूर्व सैनिक पिता, माता और वीरांगना शहादत के सम्मान के लिए सरकार व नेताओं के चक्कर लगा रहे हैं. बुजुर्गावस्था में पिता नरेश कटारा अपने बेटे के सम्मान के लिए दर दर भटक रहे हैं. रो रोकर पिता नरेश कटारा की एक आंख की रोशनी भी धुंधली पड़ गई है, उधर वीरांगना पूनम का तो मानो संसार ही उजड़ गया है.