भरतपुर. आमतौर पर शिवालयों में काले पत्थर से निर्मित शिवलिंग के दर्शन होते हैं, लेकिन भरतपुर के लोहागढ़ दुर्ग के किनारे एक ऐसा प्राचीन शिवलिंग है, जिस पर भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप उत्कीर्ण किया गया है. अर्धांगेश्वर शिव मंदिर में विराजमान यह शिवलिंग करीब 300 वर्ष या इससे भी प्राचीन बताया जाता है. बलुआ पत्थर से निर्मित यह शिवलिंग अलौकिक है. श्रवण मास में इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. मान्यता है कि अर्धांगेश्वर महादेव के पूजन से दांपत्य जीवन में सुख शांति और खुशहाली आती है.
खुदाई के दौरान निकला था शिवलिंग : सुजान गंगा नहर के किनारे अर्धांगेश्वर शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग के बारे में मंदिर के पुजारी प्रेमी शर्मा ने बताया कि यह रियासतकालीन शिवलिंग है. इसके बारे में कहीं कोई आधिकारिक जानकारी तो नहीं है, लेकिन बताया जाता है कि रियासतकाल में खुदाई के दौरान यह शिवलिंग निकला था. तब से इसे स्वयंभू शिवलिंग कहा जाता है.
शिव और पार्वती के आधे-आधे चेहरे : पीले बलुआ पत्थर से निर्मित करीब 4 फीट ऊंचे शिवलिंग के शीर्ष भाग पर शिव और पार्वती के आधे-आधे चेहरे उकेरे गए हैं. भगवान शिव को मूंछ और जटाओं के साथ और मां पार्वती को नथवेशर रूप में दर्शाया गया है. शिवलिंग के शीर्ष भाग पर एक मंत्र भी उत्कीर्ण है, जो संभवतः प्राचीन भाषा में है, जिसे पढ़ पाना मुश्किल है. शीर्ष पर शेषनाग भी प्रदर्शित है.
दांपत्य जीवन में खुशहाली : पुजारी प्रेमी शर्मा ने बताया कि यूं तो मंदिर में हर दिन श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है, लेकिन श्रावण मास में मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. शास्त्रों में मान्यता है कि यदि भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप की आराधना की जाए तो जीवन से ऋण, रोग, दरिद्रता, पाप, भय और शोक आदि दोष दूर हो जाते हैं. साथ ही जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है.