भरतपुर. कोरोना संक्रमण ने देश की शिक्षण व्यवस्था की दिशा बदल दी है. अब देशभर में शिक्षा स्वास्थ्य आधारित हो रही है. साथ ही देश के विश्वविद्यालयों को ज्यादा रोजगार परक पाठ्यक्रम शुरू करने की जरूरत है. इतना ही नहीं देश के महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के स्तर को सुधारने के लिए जहां NAAC के नियमों में शिथिलता की जरूरत है. वहीं, UGC के नियमों में स्थायित्व की आवश्यकता है. देश की शिक्षा व्यवस्था को लेकर ईटीवी भारत के साथ महाराजा सूरजमल बृज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आर.के.एस धाकरे ने विशेष बातचीत की.
स्वास्थ्य आधारित हो गई शिक्षा
कुलपति प्रो. धाकरे ने एक सवाल के जवाब में कहा कि कोरोना संक्रमण के चलते शिक्षा के क्षेत्र में एक बदलाव देखने को मिला. अब शिक्षा की दिशा ही बदल गई है. शिक्षा का ध्यान अब बेसिक चीजों से हटकर शिक्षा स्वास्थ्य केंद्रित हो गई है. साथ ही शिक्षा अब ज्यादा रोजगार परक हो गई है और ऑनलाइन शिक्षा की बात भी होने लगी है. प्रो. धाकरे ने कहा कि महाराजा सूरजमल बृज विश्वविद्यालय का यह प्रयास रहेगा कि भरतपुर और धौलपुर के विद्यार्थियों के लिए फार्मेसी, फिजियोथेरेपी, टेलिमेडिसिन और पैरा मेडिकल क्षेत्र का पाठ्यक्रम ज्यादा से ज्यादा लाए जाएं.
विश्वविद्यालयों की वर्ल्ड रैंकिंग सुधारने के प्रयास
प्रो. धाकरे ने कहा कि विश्वविद्यालयों कि वर्ल्ड रैंकिंग के क्राइटेरिया भारत के क्लासिफिकेशन में कहीं फिट नहीं बैठते. ऐसे में अब मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से देश के निजी विश्वविद्यालयों को विश्व के टॉप विश्वविद्यालयों के साथ MOU करने के ऑफर दिए जा रहे हैं. प्रो. धाकरे ने बताया कि गत वर्ष विश्वविद्यालयों की वर्ल्ड रैंकिंग के बाद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने अपने उच्च अधिकारियों के साथ बैठक की और उसमें भारतीय विश्वविद्यालयों की रैंकिंग को लेकर नए क्राइटेरिया तैयार करने को लेकर चर्चा की गई.
UGC के नियमों में स्थायित्व की जरूरत
एक सवाल के जवाब में कुलपति प्रोफेसर धाकरे ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग समय-समय पर व्याख्याता और प्रोफेसर पद की पात्रता की शर्तों में बदलाव करता रहता है. इससे अभ्यर्थियों को काफी परेशानी का सामना भी करना पड़ता है. कई योग्य अभ्यर्थी चाहते हुए भी कॉलेज व्याख्याता के लिए आवेदन नहीं कर पाते और दौड़ से बाहर हो जाते हैं. प्रो. धाकरे ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों में कम से कम 10 साल तक कोई बदलाव नहीं होना चाहिए. 10 साल के लिए इनमें स्थायित्व आना जरूरी है.
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NAAC के नियमों में शिथिलता की जरूरत
कुलपति धाकरे कहा कि राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NAAC) के नियम काफी कड़े हैं. बीते 3 साल में तो नियम और भी सख्त कर दिए गए हैं. जबकि, देश के महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की जमीनी हकीकत कुछ और है. महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों में विद्यार्थी तो पर्याप्त हैं. लेकिन, पढ़ाने वाले स्टाफ की काफी कमी है. ऐसे में NAAC के निरीक्षण के समय विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों की ग्रेडिंग में यह काफी नकारात्मक पक्ष सामने आता है, जिसकी वजह से उनकी ना तो ग्रेडिंग अच्छी हो पाती है और ना ही UGC की तरफ से विकास के लिए बेहतर ग्रांट मिल पाती है. महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की दशा सुधारने के लिए NAAC के नियमों में शिथिलता के साथ ही राज्य सरकारों का सहयोग बेहद जरूरी है.
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प्रो. धाकरे ने बताया कि महाराजा सूरजमल बृज विश्वविद्यालय की रेजिडेंशियल विंग अभी बहुत कमजोर है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग या फिर रूसा से अनुदान लेने के लिए हमें 12-बी का स्टेटस लेना होगा. उसके लिए यहां एक मजबूत रेजिडेंशियल विंग, लाइब्रेरी, कंप्यूटर लैब स्थापित करनी होगी. साथ ही विश्वविद्यालय में ऐसे एक्सक्लूसिव पाठ्यक्रम संचालित करने होंगे, जिनको पढ़ने के लिए संभाग के साथ ही अन्य राज्यों के विद्यार्थी यहां पर पहुंचे.