कामां (भरतपुर). क्षेत्र का ब्रज क्षेत्र जो भगवान श्री कृष्ण की कीड़ास्थलीय है. यहां हर साल गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर अलग-अलग सभी मंदिरों और गुरु आश्रम में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था, लेकिन इस बार कोरोना महामारी को देखते हुए यहां कोई भी कार्यक्रम किसी भी मंदिर या धार्मिक स्थल पर आयोजित नहीं किया जा रहा है.
वहीं ब्रज में हर साल गुरु पूर्णिमा पर देश-विदेशों सहित दूरदराज से शिष्य अपने गुरुओं के पास आशीर्वाद लेने के लिए भी आते थे. ऐसे में कोरोना संक्रमण के वजह से ऐसा पहली बार हुआ है, जब शिष्य अपने गुरुओं के पास नहीं पहुंचे हैं.
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हरि कृपा पीठाधीश्वर हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने हरि कृपा आश्रम में "गुरु पूर्णिमा" के पावन अवसर कहा कि गुरु शिष्य का नाता साधारण नाता नहीं अपितु परम आत्मिक, परम अध्यात्मिक और परम पवित्र नाता है, लेकिन दुर्भाग्यवश उच्च नाता आज अंधे और बहरे का नाता नजर आ रहा है.
वह गुरु अंधा है जो शिष्य की कमियां नहीं देखता. यदि देखता है तो उन्हें बताता नहीं, तुच्छ स्वार्थों के कारण और वह शिष्य बहरा है जो गुरु के उपदेश को सुनता नहीं. यदि सुनता है तो समझकर बनकर उसे जीवन में उतारता. यद्यपि गुरु का बहुत ही उच्च स्थान है, यदि यह कह दिया जाए कि गुरु ही ब्रह्मा (सद्गुणों को उत्पन्न करने वाला), गुरु ही विष्णु (उपदेशों के द्वारा उन सद्गुणों का पालन करने वाला), गुरु ही शंकर (जो कि दुर्गुणों और विकारों का संहार करने वाला) है.
परम ब्रह्म परमात्मा का पृथ्वी पर देहधारी स्वरूप है सद्गुरु, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. यदि यह भी कह दिया जाए कि ब्रह्मा, विष्णु, शंकर बिना गुरु के भवसागर से पार नहीं हो सकते,तो अतिशयोक्ति नहीं, लेकिन उच्च पद रखने वाला गुरु यदि शिष्य को उसकी वास्तविकता से अवगत नहीं कराता, उसके संदेह, अज्ञान का निवारण नहीं करता, कथनी और करनी के अंतर को मिटाकर उपदेश नहीं करता, मात्र उसका धन हरण करता है, ऐसा गुरु अपने शिष्यों को नरक की यात्नाओं से क्या बचाएगा, वह तो स्वयं ही नर्क गामी होगा.
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उन्होंने कहा कि जिस सतगुरु की सेवा करके राम, कृष्ण अवतारों ने भी उसकी महिमा को प्रतिस्थापित किया है. उस गुरु की महिमा को करने की सामर्थ्य हमारी नहीं हो सकती, लेकिन इतना तो अवश्य कह सकते हैं कि शिष्य को, गुरु को एक मानव नहीं मानव रूप में साक्षात परमात्मा का स्वरूप समझे, गुरु स्वयं को भगवान ना समझ बैठे. शिष्य अपना तन, मन, धन सब सद्गुरु के चरणो में अर्पण कर दें, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि गुरु सब कुछ लेकर चलता बने.
जो शिष्य के धन, संपत्ति पर ही नजर रखता है, वह गुरु कहलाने लायक भी नहीं हो सकता. आजकल दुर्भाग्यवश और कथित गुरुओं की ही बाढ़ आ गई है. हम सभी सद्गुरु के बताए रास्ते पर चलें, हम गुरुओं की पूजा करते हैं, लेकिन उनकी सबसे बड़ी और सच्ची सेवा पूजा उस शिष्य ने की है, जो उनके बताए रास्ते पर चलते हैं. हम अधिकांशत संतों, गुरुओं, अवतारों और ग्रंथों को मानते हैं, लेकिन उनकी नहीं मानते.
संत, गुरु या प्रभु का मिलना सौभाग्य की बात है, लेकिन उनकी मानना हमें परम सौभाग्यशाली बना देगा. अच्छे डॉक्टर का मिलना रोगी के लिए सौभाग्य की बात है, लेकिन यदि वह रोग से निवृत्ति पूर्ण स्वास्थ्य चाहता है, तो डॉक्टर ने जो दवा दी है उसका उपयोग करें. वह उसके बताए परहेज के अनुसार चले, तभी वह ठीक होगा.
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दुग्ध अभिषेक और आरती का आयोजन
स्वामी हरी चैतन्य महाप्रभु महाराज ने तीर्थराज विमल कुंड का दुग्धाभिषेक करके आरती की और वृक्षारोपण भी किया. इस बार कोरोना संकटकाल के कारण केंद्र और राज्य सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए हरि कृपा आश्रम में कोई भी सामूहिक कार्यक्रम का आयोजन नहीं हुआ.