भरतपुर. भारत के इतिहास के अजेय योद्धा महाराजा सूरजमल अपने शौर्य, पराक्रम, रणनीति और शरणागत वत्सल के लिए पूरे देश-दुनिया में जाने जाते हैं. अपने जीवनकाल में महाराजा सूरजमल ने 80 युद्ध लड़े और सभी युद्धों में उन्हें विजय हासिल हुई. मुगल, मराठा, अंग्रेज कोई भी उन्हें पराजित नहीं कर सका. इतना ही नहीं महाराजा ने भरतपुर की धरा पर एक ऐसे अभेद्य दुर्ग का निर्माण किया, जिसे लोहागढ़ के नाम से जाना गया और उसे कोई जीत नहीं पाया. भरतपुर आज ऐसे वीर पराक्रमी महाराजा सूरजमल की 316वीं जयंती मना रहा है.
शाकाहारी और कृष्ण भक्त थे - इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि महाराजा सूरजमल का जन्म राजा बदन सिंह की रानी देवकी के गर्भ से 13 फरवरी 1707 को डीग के महलों में हुआ.महाराजा सूरजमल वीर पराक्रमी राजा थे. रामवीर वर्मा ने बताया कि महाराजा सूरजमल की कद काठी बहुत ही मजबूत थी. साढ़े 7 फ़ीट ऊंचाई वाले महाराजा सूरजमल दोनों हाथों से तलवार चलाने में माहिर थे. बताते हैं हर दिन महाराजा सूरजमल 5 किलो दूध और आधा किलो घी का सेवन करते थे. शुद्ध, सात्विक, शाकाहारी भोजन करते थे. उन्होंने अपने जीवन काल में कभी भी मांसाहार का प्रयोग नहीं किया. महाराजा सूरजमल भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे.
80 युद्ध लड़े और सभी जीते - इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि महाराजा सूरजमल ने अपने जीवनकाल में कुल 80 युद्ध लड़े थे और वो सभी युद्धों में विजयी रहे थे. उनके पराक्रम और कुशल रणनीति के चलते मुगल, मराठा और अंग्रेज तक उनका लोहा मानते थे. यहां तक कि मराठों ने तो महाराजा सूरजमल से युद्ध में सहायता भी मांगी थी. जिसके प्रमाण इतिहास के पन्नों में भी मिलते हैं.
दोनों हाथों से चलाते थे तलवार - इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि महाराजा सूरजमल इतने कुशल योद्धा थे कि वो घोड़े पर सवार होकर दोनों हाथों से तलवार चलाते थे. उन्होंने बताया कि जब जयपुर के राजकुमार ईश्वरी सिंह और माधो सिंह के बीच राजगद्दी को लेकर युद्ध हुआ तो महाराजा सूरजमल ने ईश्वर सिंह की तरफ से युद्ध लड़ा था. बगरू में माधो सिंह की तरफ से आठ राज्यों की सेना से उन्होंने युद्ध लड़ा था.
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उस समय राजकुमार सूरजमल ने पराक्रम दिखाते हुए ईश्वरी सिंह को जीत दिलाई थी. युद्ध के मैदान में राजकुमार सूरजमल घोड़े की लगाम को दांतों से पकड़कर दोनों हाथों से तलवार चला रहे थे और यह पूरा दृश्य एक राजकुमारी महल के ऊपर से देख रही थी. तभी उन्होंने पूछा कि यह वीर योद्धा कौन है तो उनके राजकवि ने बताया कि ये भरतपुर के राजकुमार सूरजमल हैं. तब राजकवि ने राजकुमारी के सामने राजकुमार सूरजमल की कुछ इस तरह से प्रशंसा की थी.
''नहीं जाटनी ने सही, व्यर्थ प्रसव की पीर।
जन्मा उसके गर्भ से, सूरजमल सा वीर।।"
शरणागत वत्सल थे सूरजमल - इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि जब पानीपत के युद्ध में मराठा सेना पूरी तरह से पराजित हो गई तो महाराजा सूरजमल ने पराजित मराठा सेना को अपने डीग, कुम्हेर और भरतपुर के किले में शरण दी थी. मराठा सेना और सेनानायक सदाशिवराव भाऊ के परिवार को छह माह तक अपने यहां सुरक्षित रखा. यहां तक कि अहमद शाह अब्दाली ने महाराजा सूरजमल को पराजित सेना को सौंपने की धमकी भी दी. लेकिन महाराजा सूरजमल ने शरण में आई मराठा सेना को सौंपने से मना कर दिया था.
इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि महाराजा सूरजमल ने अपने जीवनकाल में कुल 80 युद्ध लड़े थे और सभी युद्ध उन्होंने जीते थे. वर्मा ने बताया कि उनकी सियासी जीवन की शुरुआत महज 14 साल की उम्र हो गई थी. 25 दिसंबर, 1763 को महाराजा सूरजमल दिल्ली के इमाद नजीबुद्दौला से युद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे.