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Special : भरतपुर के 'बेर' ने बढ़ाया मुंह का स्वाद...किसानों के भी खिले चेहरे

भरतपुर में एक ऐसा गांव है, जहां के किसानों की मेहनत ने 'बेर' का स्वाद बढ़ा दिया है. खास बात ये भी है, कि एक किसान की कामयाबी से दूसरे किसान भी प्रभावित हुए और अब करीब 150 किसान बेर के बाग लगा रहे हैं. यही वजह है, कि इस गांव को अब लोग 'बेर ग्राम' के नाम से ही जानते हैं.

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भरतपुर की गुणी बेर
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Published : Jan 29, 2020, 12:27 PM IST

भरतपुर. यूं तो हर एक गांव की कोई ना कोई पहचान होती है, लेकिन भरतपुर में एक ऐसा गांव है, जो बेर ग्राम के नाम से मशहूर है. इस गांव में किसान परंपरगत खेती छोड़कर बेर की बागवानी कर रहे हैं. पहले इस गांव में नदी का पानी खारा होने की वजह से किसान कोई भी फसल नहीं उगा सकते थे, लेकिन एक किसान की 26 साल पहले की गई पहल ने गांव के किसानों की तकदीर बदल दी. आज यहां के किसानों की झोली मुनाफे से भर रही है.

भरतपुर का बेर ग्राम

भरतपुर से 20 किलोमीटर दूर एक गांव है चिकसाना, जो अब धीरे-धीरे बेर ग्राम के रूप में चर्चित होने लगा है. इतना ही नहीं जिले में बेर की कुल पैदावार में से 90 प्रतिशत पैदावार अकेले इसी गांव में होती है. इस गांव के 150 किसान परंपरागत खेती छोड़कर बेर की खेती कर रहे हैं. गांव में करीब 26 साल पहले एक किसान ने शुरुआत की, जो आज पूरे गांव के किसानों के लिए नजीर बन गई है.

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बेर ग्राम से मशहूर चिकसाना

1 किसान की पहल, आज 150 किसान जुड़े

कृषि विभाग के प्रोजेक्ट डायरेक्टर (आत्मा) योगेश शर्मा ने बताया, कि चिकसाना गांव के किसान लाखन सिंह ने साल 1994 में सबसे पहले बेर का बाग लगाया. जब उसका मुनाफा देखा तो दूसरे किसान भी बेर की बागवानी की तरफ कदम बढ़ाते गए. आज की तारीख में गांव के करीब 150 किसान बेर की बागवानी से जुड़े हुए हैं. इतना ही नहीं गांव की करीब 700 बीघा जमीन पर बेर के बाग लगे हुए हैं.

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भरतपुर की गुणी बेर

एक बीघा में 1 लाख तक मुनाफा

बेर की खेती करनेवाले किसान लाखन सिंह ने बताया, कि परंपरागत खेती में बहुत ही कम मुनाफा होता है. वहीं बेर की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद सौदा है. 1 बीघा खेत में बेर के बगीचे से करीब 50 हजार से 1 लाख रुपए तक हर साल मुनाफा हो जाता है. यदि किसी ने 5 बीघा जमीन में भी बेर के बगीचे लगा रखे हैं तो एक द्वितीय श्रेणी के कर्मचारी के बराबर उसकी आय हो जाती है.

इसलिए बढ़ा बेर की तरफ रुझान

कृषि विभाग के सहायक निदेशक (बागवानी) जनक राज मीणा और कृषि पर्यवेक्षक रमेश सिंह ने बताया, कि पहले चिकसाना गांव के पास एक नदी थी, जिसका पानी खारा था. खारे पानी की वजह से गांव में दूसरी खाद्यान्न फसलें नहीं होती थीं. ऐसे में यहां के किसानों ने अपने खेतों में बेर के बाग लगाना शुरू कर दिया. बेर के पौधे की खास बात यह है, कि वह खारे पानी में काफी अच्छी पैदा देता है. यही वजह है, कि चिकसाना की बेर का स्वाद अपनी अलग पहचान रखता है.

जिले के किसानों से कलेक्टर की अपील

राष्ट्रीय बागवानी मिशन के जिला कलेक्टर नथमल डिडेल ने जिले के किसानों से परंपरागत खेती के बजाय प्रगतिशील खेती की तरफ कदम बढ़ाने की अपील की है. उन्होंने बताया, कि आज की जरूरतों को देखते हुए किसान को परंपरागत खेती से पर्याप्त मुनाफा नहीं मिल पाता है. ऐसे में प्रगतिशील खेती कर किसान अच्छा आर्थिक मुनाफा कमा कर समृद्ध बन सकता है.

  • एक हेक्टेयर में बेर के 278 पौधे लग सकते हैं.
  • एक पौधे पर प्रति वर्ष 80 किलो बेर की पैदावार होती है.
  • एक किलो बेर 30 से 60 रूपए तक बिकता है.
  • बेर में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं मिनरल्स.

सहायक निदेशक जनक राज मीणा ने बताया, कि बेर के फल में कई औषधीय गुण भी होते हैं. बेर में प्रचुर मात्रा में विटामिन ए, विटामिन सी, पोटेशियम और कैल्शियम पाया जाता है. यदि बेर का नियमित सेवन किया जाए तो यह कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है. बेर के सेवन से दांत और हड्डी के रोगों में लाभ मिलता है. साथ ही पाचन क्रिया भी सही रहती है.

भरतपुर. यूं तो हर एक गांव की कोई ना कोई पहचान होती है, लेकिन भरतपुर में एक ऐसा गांव है, जो बेर ग्राम के नाम से मशहूर है. इस गांव में किसान परंपरगत खेती छोड़कर बेर की बागवानी कर रहे हैं. पहले इस गांव में नदी का पानी खारा होने की वजह से किसान कोई भी फसल नहीं उगा सकते थे, लेकिन एक किसान की 26 साल पहले की गई पहल ने गांव के किसानों की तकदीर बदल दी. आज यहां के किसानों की झोली मुनाफे से भर रही है.

भरतपुर का बेर ग्राम

भरतपुर से 20 किलोमीटर दूर एक गांव है चिकसाना, जो अब धीरे-धीरे बेर ग्राम के रूप में चर्चित होने लगा है. इतना ही नहीं जिले में बेर की कुल पैदावार में से 90 प्रतिशत पैदावार अकेले इसी गांव में होती है. इस गांव के 150 किसान परंपरागत खेती छोड़कर बेर की खेती कर रहे हैं. गांव में करीब 26 साल पहले एक किसान ने शुरुआत की, जो आज पूरे गांव के किसानों के लिए नजीर बन गई है.

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बेर ग्राम से मशहूर चिकसाना

1 किसान की पहल, आज 150 किसान जुड़े

कृषि विभाग के प्रोजेक्ट डायरेक्टर (आत्मा) योगेश शर्मा ने बताया, कि चिकसाना गांव के किसान लाखन सिंह ने साल 1994 में सबसे पहले बेर का बाग लगाया. जब उसका मुनाफा देखा तो दूसरे किसान भी बेर की बागवानी की तरफ कदम बढ़ाते गए. आज की तारीख में गांव के करीब 150 किसान बेर की बागवानी से जुड़े हुए हैं. इतना ही नहीं गांव की करीब 700 बीघा जमीन पर बेर के बाग लगे हुए हैं.

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भरतपुर की गुणी बेर

एक बीघा में 1 लाख तक मुनाफा

बेर की खेती करनेवाले किसान लाखन सिंह ने बताया, कि परंपरागत खेती में बहुत ही कम मुनाफा होता है. वहीं बेर की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद सौदा है. 1 बीघा खेत में बेर के बगीचे से करीब 50 हजार से 1 लाख रुपए तक हर साल मुनाफा हो जाता है. यदि किसी ने 5 बीघा जमीन में भी बेर के बगीचे लगा रखे हैं तो एक द्वितीय श्रेणी के कर्मचारी के बराबर उसकी आय हो जाती है.

इसलिए बढ़ा बेर की तरफ रुझान

कृषि विभाग के सहायक निदेशक (बागवानी) जनक राज मीणा और कृषि पर्यवेक्षक रमेश सिंह ने बताया, कि पहले चिकसाना गांव के पास एक नदी थी, जिसका पानी खारा था. खारे पानी की वजह से गांव में दूसरी खाद्यान्न फसलें नहीं होती थीं. ऐसे में यहां के किसानों ने अपने खेतों में बेर के बाग लगाना शुरू कर दिया. बेर के पौधे की खास बात यह है, कि वह खारे पानी में काफी अच्छी पैदा देता है. यही वजह है, कि चिकसाना की बेर का स्वाद अपनी अलग पहचान रखता है.

जिले के किसानों से कलेक्टर की अपील

राष्ट्रीय बागवानी मिशन के जिला कलेक्टर नथमल डिडेल ने जिले के किसानों से परंपरागत खेती के बजाय प्रगतिशील खेती की तरफ कदम बढ़ाने की अपील की है. उन्होंने बताया, कि आज की जरूरतों को देखते हुए किसान को परंपरागत खेती से पर्याप्त मुनाफा नहीं मिल पाता है. ऐसे में प्रगतिशील खेती कर किसान अच्छा आर्थिक मुनाफा कमा कर समृद्ध बन सकता है.

  • एक हेक्टेयर में बेर के 278 पौधे लग सकते हैं.
  • एक पौधे पर प्रति वर्ष 80 किलो बेर की पैदावार होती है.
  • एक किलो बेर 30 से 60 रूपए तक बिकता है.
  • बेर में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं मिनरल्स.

सहायक निदेशक जनक राज मीणा ने बताया, कि बेर के फल में कई औषधीय गुण भी होते हैं. बेर में प्रचुर मात्रा में विटामिन ए, विटामिन सी, पोटेशियम और कैल्शियम पाया जाता है. यदि बेर का नियमित सेवन किया जाए तो यह कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है. बेर के सेवन से दांत और हड्डी के रोगों में लाभ मिलता है. साथ ही पाचन क्रिया भी सही रहती है.

Intro:भरतपुर.
यूं तो हर किसी गांव की कोई ना कोई पहचान होती है लेकिन भरतपुर का यह गांव यहां पैदा होने वाले बेर के फल से पहचाना जाता है। भरतपुर शहर से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गांव में करीब 150 किसान बेर की बागवानी से जुड़े हैं। यही वजह है कि इस गांव का नाम चिकसाना होने के बावजूद अब धीरे-धीरे बेर ग्राम के रूप में चर्चित होने लगा है। इतना ही नहीं भरतपुर जिले में बेर कुल पैदावार में से 90% पैदावार अकेले इसी गांव में होती है। गांव में करीब 26 साल पहले एक किसान द्वारा की गई शुरुआत आज पूरे गांव के किसानों के लिए नजीर बन गई, जिसे अब सभी किसान अपना रहे हैं और यह बेर अब किसानों की झोली भर रहा है।


Body:एक किसान ने की थी शुरुआत, आज 150 किसान जुड़े
कृषि विभाग के प्रोजेक्ट डायरेक्टर ( आत्मा) योगेश शर्मा ने बताया कि चिकसाना गांव के किसान लाखन सिंह ने वर्ष 1994 में सबसे पहले बेर का बाग लगाया। जब उसका मुनाफा देखा तो अन्य किसान भी बेर की बागवानी की तरफ कदम बढ़ाते गए और आज की तारीख में गांव के करीब डेढ़ सौ किसान बेर की बागवानी से जुड़े हुए हैं। इतना ही नहीं गांव की करीब 700 बीघा जमीन पर बेर के बाग लगे हुए हैं।

एक बीघा में 1 लाख तक मुनाफा
किसान लाखन सिंह ने बताया कि जहां एक परंपरागत खेती में बहुत ही कम मुनाफा होता है वही बेर की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद सौदा है। उन्होंने बताया कि 1 बीघा खेत में बेर के बगीचे से करीब 50 हजार से 1 लाख रुपए तक का प्रतिवर्ष मुनाफा हो जाता है। यदि किसी के सामने 5 बीघा जमीन में भी बेर के बगीचे लगा रखे हैं तो एक द्वितीय श्रेणी के कर्मचारी के बराबर उसकी आए हो जाती है।

इसलिए बढ़ा बेर की तरफ रुझान
कृषि विभाग के सहायक निदेशक (बागवानी) जनक राज मीणा और कृषि पर्यवेक्षक रमेश सिंह ने बताया कि पहले चिकसाना गांव के पास एक नदी थी जिसका पानी खारा था। खारे पानी की वजह से गांव में अन्य खाद्यान्न फसलें नहीं होती थी ऐसे में यहां के किसानों ने अपने खेतों में बेर के बाग लगाना शुरू कर दिया। बेर के पौधे की खासियत है कि वह खारे पानी में काफी अच्छी पैदा देता है। यही वजह है कि चिकसाना का बेर स्वाद के मामले में अपनी अलग पहचान रखता है।

जिले के किसानों से कलेक्टर की अपील
राष्ट्रीय बागवानी मिशन के जिलाध्यक्ष एवं जिला कलेक्टर नथमल डिडेल ने जिले के किसानों से परंपरागत खेती के बजाय प्रगतिशील खेती की तरफ कदम बढ़ाने की अपील की है। उन्होंने बताया कि आज की जरूरतों को देखते हुए किसान को परंपरागत खेती से पर्याप्त मुनाफा नहीं मिल पाता। ऐसे में प्रगतिशील खेती कर किसान अच्छा आर्थिक मुनाफा कमा कर समृद्ध बन सकता है।

फैक्ट
एक हेक्टेयर में बेर के 278 पौधे
एक पौधे पर प्रतिवर्ष 80 किलो बेर की पैदावार होती है
एक किलो बेर 30 से 60 रुपए तक में बिकता है


Conclusion:ये हैं बेर के औषधीय गुण
सहायक निदेशक जनक राज मीणा ने बताया कि बेर फल केकई औषधीय गुण भी होते हैं। बेर में प्रचुर मात्रा में विटामिन ए, विटामिन सी, पोटेशियमऔर कैल्शियम पाया जाता है। यदि बेर का नियमित सेवन किया जाए तो यह कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है। बेर के सेवन से दांत और हड्डी के रोगों में लाभ मिलता है। साथ पाचनक्रिया भी सही रहती है।

बाईट1- लाखन सिंह, किसान, चिकसाना/बेर ग्राम( सफेद कुर्ता, गले में तौलिया)
बाईट2- डालचंद शर्मा, किसान ( सफेद कुर्ता)
बाईट3- नथमल डिडेल, जिला कलेक्टर ( डार्क ब्लू ब्लेज़र)
बाईट4- योगेश शर्मा, पीडी(आत्मा), कृषि विभाग (काली जैकेट)
बाईट5- जनकराज मीना, सहायक निदेशक (बागवानी), कृषि विभाग (ग्रे जर्सी)

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