भरतपुर. यूं तो हर एक गांव की कोई ना कोई पहचान होती है, लेकिन भरतपुर में एक ऐसा गांव है, जो बेर ग्राम के नाम से मशहूर है. इस गांव में किसान परंपरगत खेती छोड़कर बेर की बागवानी कर रहे हैं. पहले इस गांव में नदी का पानी खारा होने की वजह से किसान कोई भी फसल नहीं उगा सकते थे, लेकिन एक किसान की 26 साल पहले की गई पहल ने गांव के किसानों की तकदीर बदल दी. आज यहां के किसानों की झोली मुनाफे से भर रही है.
भरतपुर से 20 किलोमीटर दूर एक गांव है चिकसाना, जो अब धीरे-धीरे बेर ग्राम के रूप में चर्चित होने लगा है. इतना ही नहीं जिले में बेर की कुल पैदावार में से 90 प्रतिशत पैदावार अकेले इसी गांव में होती है. इस गांव के 150 किसान परंपरागत खेती छोड़कर बेर की खेती कर रहे हैं. गांव में करीब 26 साल पहले एक किसान ने शुरुआत की, जो आज पूरे गांव के किसानों के लिए नजीर बन गई है.
1 किसान की पहल, आज 150 किसान जुड़े
कृषि विभाग के प्रोजेक्ट डायरेक्टर (आत्मा) योगेश शर्मा ने बताया, कि चिकसाना गांव के किसान लाखन सिंह ने साल 1994 में सबसे पहले बेर का बाग लगाया. जब उसका मुनाफा देखा तो दूसरे किसान भी बेर की बागवानी की तरफ कदम बढ़ाते गए. आज की तारीख में गांव के करीब 150 किसान बेर की बागवानी से जुड़े हुए हैं. इतना ही नहीं गांव की करीब 700 बीघा जमीन पर बेर के बाग लगे हुए हैं.
एक बीघा में 1 लाख तक मुनाफा
बेर की खेती करनेवाले किसान लाखन सिंह ने बताया, कि परंपरागत खेती में बहुत ही कम मुनाफा होता है. वहीं बेर की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद सौदा है. 1 बीघा खेत में बेर के बगीचे से करीब 50 हजार से 1 लाख रुपए तक हर साल मुनाफा हो जाता है. यदि किसी ने 5 बीघा जमीन में भी बेर के बगीचे लगा रखे हैं तो एक द्वितीय श्रेणी के कर्मचारी के बराबर उसकी आय हो जाती है.
इसलिए बढ़ा बेर की तरफ रुझान
कृषि विभाग के सहायक निदेशक (बागवानी) जनक राज मीणा और कृषि पर्यवेक्षक रमेश सिंह ने बताया, कि पहले चिकसाना गांव के पास एक नदी थी, जिसका पानी खारा था. खारे पानी की वजह से गांव में दूसरी खाद्यान्न फसलें नहीं होती थीं. ऐसे में यहां के किसानों ने अपने खेतों में बेर के बाग लगाना शुरू कर दिया. बेर के पौधे की खास बात यह है, कि वह खारे पानी में काफी अच्छी पैदा देता है. यही वजह है, कि चिकसाना की बेर का स्वाद अपनी अलग पहचान रखता है.
जिले के किसानों से कलेक्टर की अपील
राष्ट्रीय बागवानी मिशन के जिला कलेक्टर नथमल डिडेल ने जिले के किसानों से परंपरागत खेती के बजाय प्रगतिशील खेती की तरफ कदम बढ़ाने की अपील की है. उन्होंने बताया, कि आज की जरूरतों को देखते हुए किसान को परंपरागत खेती से पर्याप्त मुनाफा नहीं मिल पाता है. ऐसे में प्रगतिशील खेती कर किसान अच्छा आर्थिक मुनाफा कमा कर समृद्ध बन सकता है.
- एक हेक्टेयर में बेर के 278 पौधे लग सकते हैं.
- एक पौधे पर प्रति वर्ष 80 किलो बेर की पैदावार होती है.
- एक किलो बेर 30 से 60 रूपए तक बिकता है.
- बेर में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं मिनरल्स.
सहायक निदेशक जनक राज मीणा ने बताया, कि बेर के फल में कई औषधीय गुण भी होते हैं. बेर में प्रचुर मात्रा में विटामिन ए, विटामिन सी, पोटेशियम और कैल्शियम पाया जाता है. यदि बेर का नियमित सेवन किया जाए तो यह कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है. बेर के सेवन से दांत और हड्डी के रोगों में लाभ मिलता है. साथ ही पाचन क्रिया भी सही रहती है.