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नीलाम्भेश्वर मंदिर में 40 साल से जल रही है अखंड ज्योति...1000 पंडितों ने कराई थी शिवलिंग की स्थापाना - Rajasthan hindi news

श्रावण मास भगवान भोलेनाथ को काफी प्रिय है. इस मास में श्रद्धालु भी शिवालयों (Nilambheshwar temple in Bharatpur) में जाकर पूजा-अर्चना के जरिए भगवान शंकर से खुशहाली की प्रार्थना करते हैं. ऐसे ही एक आस्था का केंद्र भरतपुर का नीलाम्भेश्वर शिव मंदिर है. इस मंदिर में पिछले 40 साल से अखंड ज्योति जल रही है.

Nilambheshwar temple in Bharatpur
नीलाम्भेश्वर मंदिर में 40 साल से जल रही है अखंड ज्योति
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Published : Jul 17, 2022, 6:02 AM IST

भरतपुर. श्रावण मास में हर तरफ शिवालयों में बम बम भोले और हर-हर महादेव के जयकारे गूंज रहे हैं. छोटे-बड़े सभी मंदिरों में इस माह में भगवान भोलेनाथ की विशेष-पूजा अर्चना का दौर जारी. इसी कड़ी में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 21 पर शहर के सेवर क्षेत्र में स्थित श्री नीलाम्भेश्वर शिव मंदिर भी भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है. इस मंदिर की स्थापना 40 वर्ष पूर्व हुई थी.

स्थापना के लिए बनारस से 100 पंडित यहां पहुंचे थे और करीब 1000 पंडितों ने मंत्रोच्चार (Nilambheshwar temple in Bharatpur) के साथ 11 फीट ऊंचे शिवलिंग की स्थापना कराई थी. भगवान शिव की महत्ता वाले श्रावण मास में भरतपुर के इस शिव मंदिर के इतिहास की अनूठी गाथा आज हम आपके लिए लाए हैं.

भक्तों के आस्था का केंद्र भरतपुर का नीलाम्भेश्वर शिव मंदिर

सवा करोड़ की प्रतिमाः मंदिर के पुजारी पंडित शिवहरी वशिष्ठ ने बताया कि करीब 40 वर्ष पूर्व डालमिया डेयरी फैक्ट्री प्रबंधन की ओर से मूर्ति स्थापना के साथ इस मंदिर का निर्माण कराया गया था. पंडित शिवहरि वशिष्ठ ने बताया कि उस समय ये मूर्तियां दक्षिण भारत के महाबलीपुरम से मंगाई गई थी. उस समय इनकी कीमत करीब सवा करोड़ रुपए थी. मंदिर में स्थापित शिवलिंग की ऊंचाई करीब 11 फ़ीट है, जिसका करीब 7 फीट भाग जमीन के अंदर है.

1 हजार पंडितों ने कराई स्थापनाः पंडित शिवहरि ने बताया कि उस समय वो बनारस विश्वविद्यालय में व्याख्याता के रूप में कार्यरत थे. सूचना मिलने पर वो बनारस से 100 पंडितों को लेकर यहां पहुंचे. कुल करीब 1 हजार पंडित यहां एकत्रित हुए और पूरे विधिविधान के साथ मंत्रोच्चार कर मूर्तियों की स्थापना कराई थी. स्थापना में एक सप्ताह का समय लगा था और सवा लाख लोगों को भोजन प्रसादी कराई गई.

पढ़ें. शिवपुरी धाम की अनूठी छवि...स्वास्तिक संरचना में स्थापित हैं 525 शिवलिंग...मिलता है 12 ज्योतिर्लिंग का फल

साक्षात्कार से पुजारी का चयनः पंडित शिव हरी वशिष्ठ ने बताया कि मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा के बाद मंदिर में पूजा पाठ के लिए डालमिया फैक्ट्री प्रबंधन की ओर से पुजारी रखने की प्रक्रिया शुरू हुई. इसके लिए स्थापना के अवसर पर मौजूद सभी 1000 पंडितों का साक्षात्कार लिया गया. उनमें से पंडित शिवहरि का चयन किया गया. तब से पंडित शिवहरि वशिष्ठ लगातार मंदिर में पूजा पाठ की व्यवस्था संभाल रहे हैं.

40 साल से अखंड दीपकः पंडित शिवहरि ने बताया कि मूर्ति स्थापना के साथ ही यहां पर अखंड दीपक प्रज्ज्वलित किया गया. तब से लगातार यह दीपक प्रज्ज्वलित है. कभी भी इस दीपक को बुझने नहीं दिया गया. जब तक डालमिया फैक्ट्री की तरफ से दीपक के लिए प्रति माह एक पीपा घी (15 किलो का टिन) भेजा जाता था. जब फैक्ट्री का संचालन बंद हो गया तो भक्तों और श्रद्धालुओं की ओर से इस दीपक के लिए घी उपलब्ध कराया जाता है.

पंडित शिव हरी वशिष्ठ ने बताया कि मंदिर की विशेष महत्ता है. यहां पर हर दिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. श्रावण मास में और महाशिवरात्रि के अवसर पर सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु यहां पर दर्शन करने, जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक करने आते हैं. मान्यता है कि श्रद्धालु सच्चे मन से नीलाम्भेश्वर महादेव जो भी मांगते हैं वो पूरा होता है.

भरतपुर. श्रावण मास में हर तरफ शिवालयों में बम बम भोले और हर-हर महादेव के जयकारे गूंज रहे हैं. छोटे-बड़े सभी मंदिरों में इस माह में भगवान भोलेनाथ की विशेष-पूजा अर्चना का दौर जारी. इसी कड़ी में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 21 पर शहर के सेवर क्षेत्र में स्थित श्री नीलाम्भेश्वर शिव मंदिर भी भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है. इस मंदिर की स्थापना 40 वर्ष पूर्व हुई थी.

स्थापना के लिए बनारस से 100 पंडित यहां पहुंचे थे और करीब 1000 पंडितों ने मंत्रोच्चार (Nilambheshwar temple in Bharatpur) के साथ 11 फीट ऊंचे शिवलिंग की स्थापना कराई थी. भगवान शिव की महत्ता वाले श्रावण मास में भरतपुर के इस शिव मंदिर के इतिहास की अनूठी गाथा आज हम आपके लिए लाए हैं.

भक्तों के आस्था का केंद्र भरतपुर का नीलाम्भेश्वर शिव मंदिर

सवा करोड़ की प्रतिमाः मंदिर के पुजारी पंडित शिवहरी वशिष्ठ ने बताया कि करीब 40 वर्ष पूर्व डालमिया डेयरी फैक्ट्री प्रबंधन की ओर से मूर्ति स्थापना के साथ इस मंदिर का निर्माण कराया गया था. पंडित शिवहरि वशिष्ठ ने बताया कि उस समय ये मूर्तियां दक्षिण भारत के महाबलीपुरम से मंगाई गई थी. उस समय इनकी कीमत करीब सवा करोड़ रुपए थी. मंदिर में स्थापित शिवलिंग की ऊंचाई करीब 11 फ़ीट है, जिसका करीब 7 फीट भाग जमीन के अंदर है.

1 हजार पंडितों ने कराई स्थापनाः पंडित शिवहरि ने बताया कि उस समय वो बनारस विश्वविद्यालय में व्याख्याता के रूप में कार्यरत थे. सूचना मिलने पर वो बनारस से 100 पंडितों को लेकर यहां पहुंचे. कुल करीब 1 हजार पंडित यहां एकत्रित हुए और पूरे विधिविधान के साथ मंत्रोच्चार कर मूर्तियों की स्थापना कराई थी. स्थापना में एक सप्ताह का समय लगा था और सवा लाख लोगों को भोजन प्रसादी कराई गई.

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साक्षात्कार से पुजारी का चयनः पंडित शिव हरी वशिष्ठ ने बताया कि मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा के बाद मंदिर में पूजा पाठ के लिए डालमिया फैक्ट्री प्रबंधन की ओर से पुजारी रखने की प्रक्रिया शुरू हुई. इसके लिए स्थापना के अवसर पर मौजूद सभी 1000 पंडितों का साक्षात्कार लिया गया. उनमें से पंडित शिवहरि का चयन किया गया. तब से पंडित शिवहरि वशिष्ठ लगातार मंदिर में पूजा पाठ की व्यवस्था संभाल रहे हैं.

40 साल से अखंड दीपकः पंडित शिवहरि ने बताया कि मूर्ति स्थापना के साथ ही यहां पर अखंड दीपक प्रज्ज्वलित किया गया. तब से लगातार यह दीपक प्रज्ज्वलित है. कभी भी इस दीपक को बुझने नहीं दिया गया. जब तक डालमिया फैक्ट्री की तरफ से दीपक के लिए प्रति माह एक पीपा घी (15 किलो का टिन) भेजा जाता था. जब फैक्ट्री का संचालन बंद हो गया तो भक्तों और श्रद्धालुओं की ओर से इस दीपक के लिए घी उपलब्ध कराया जाता है.

पंडित शिव हरी वशिष्ठ ने बताया कि मंदिर की विशेष महत्ता है. यहां पर हर दिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. श्रावण मास में और महाशिवरात्रि के अवसर पर सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु यहां पर दर्शन करने, जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक करने आते हैं. मान्यता है कि श्रद्धालु सच्चे मन से नीलाम्भेश्वर महादेव जो भी मांगते हैं वो पूरा होता है.

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