बाड़मेर. जिले के अधिकतर गांवों में तापमान 45 से 50 डिग्री है. इस नौतपा गर्मी और लू के थपेड़ों से आमजन का हाल पहले से ही बेहाल हो रखा उसके ऊपर पानी का संकट जिसके चलते लोगों का जीना दुश्वार हो गया है.
लोगों का कहना है कि इस समय सरकार खाद्य सामग्री ना दे, लेकिन पानी की आपूर्ति कर दे उन्हें और कुछ नहीं चाहिए. बॉर्डर के बुक्कड़ी गांव में सरकारी होदी और जीएलआर का पानी कब आया था यह लोगों को याद नहीं. लोग घरों से दूर निकलकर परंपरागत बैरिया का ही सहारा ले रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि इस भीषण गर्मी की वजह से पानी या तो सुख जाता है या फिर नीचे चला जाता है.
ग्रामीणों ने बताया कि सुबह या फिर देर शाम को दो चार घड़े पीने का पानी का जुगाड़ हो पाता है. जब नहीं होता तो एक हजार से पंद्रह सौ रुपये में पानी के टैंकर खरीदने पड़ते हैं. ग्रामीणों ने बताया जब इंसानों के यह हाल है तो पशुओं का हाल उससे बुरा है. इसके साथ ही बीजेपी मुख्यमंत्री गहलोत पर आरोप लगा रही है कि उनकी नजर में मानों यह देश का हिस्सा ही नहीं है.
सरहदी बुक्कड़ गडरा रोड गांव के ग्रामीण के अनुसार पूरे देश में लॉकडाउन की वजह से लोगों के पहले से खाने-पीने के लाले पड़ रहे हैं. वहीं सरहदी इलाकों में पानी का संकट जले पर नमक डालने का काम कर रहा है. बॉर्डर के दर्जनों गांव में जब ईटीवी भारत की टीम ने ग्रामीणों और पशुओं के हाल जाने तो स्थिति बहुत भयावह दिखी.
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भाजपा नेता स्वरूप सिंह खारा बताते है कि बॉर्डर के गांवों में जल की विकट भयंकर समस्या है. गांव में परंपरागत स्त्रोत बेरिया है जो 30 से 50 फीट गहरी होती है. इसके साथ ही वो बरसात के समय में भर जाती है, लेकिन इन दिनों गर्मी में वह बेरिया फिर से सूख जाती है. उस बैरियों से रिस-रिस कर एक दो घड़े पानी पीने को मिल जाता है.
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इस कदर पानी का संकट है कि पशुओं के हाल तो बेहाल है और पशुओं की मृत्यु दरों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. सरकार को ऐसा लगता है की यह हिस्सा देश से बाहर का हिस्सा है. गौरतलब है की देश अभी कोविड-19 की महामारी जैसी विकट परिस्थितियों से गुजर रहा है, लेकिन सदियों पुराना पानी संकट सीमावर्ती बाड़मेर जिले का पीछा नहीं छोड़ रहा है.