शिव (बाड़मेर ). बाबा रामदेव का अवतार धाम रामदेरिया कासमीर है. माना जाता हैं कि बाबा रामदेव जी ने1409 ई में हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक भादवे की बीज (भाद्रपद शुक्ल दूज) को तंवर राजा अजमल जी के घर रामदेव जी ने अवतार लिया था. इनकी माता का नाम मैणादे था. इनके एक बड़े भाई का नाम विरमदेव जी था. रामदेव को द्वारिकाधीश (श्रीकृष्ण) का अवतार माना जाता है. इन्हें पीरों का पीर 'रामसा पीर' कहा जाता है.
बाबा रामदेव जी की जन्म कथा
पौराणिक कथानुसार राजा अजमल जी के कोई संतान नहीं थी. गांव में बारिश हुई किसान खेत जोतने के लिए अपने हल और बैल लेकर निकले. सामने सुबह अजमल जी घूमने के लिए निकले थे. जिसके सन्तान नहीं हो तो उसको बांजिया कहते थे और सुबह सुबह बांजिया के दर्शन अपवित्र होते है. जब किसानों के सामने अजमल जी के आने से किसानों को अपशकुन हुआ. किसान वापस अपने घरों की तरफ जाने लगे. तब अजमल जी ने आवाज लगाई की रूको आप वापस क्यों जा रहे हो. काफी अनुनय विनय करने पर किसानों ने कहा कि आप निसंतान हो, हमारा अपशकुन हो गया. जिसके बाद अजमलजी के मन में बहुत टीस हुई.
जब अन्न-जल त्याग कर भगवान कृष्ण की शरण में गए अजमल जी
उसी वक्त अजमलजी अन्न जल त्याग करके द्वारका के लिए रवाना हो गए. द्वारका पहुंचकर कृष्ण भगवान की तपस्या की. भगवान ने आशीर्वाद दिया आपके पुत्र होगा, मगर अजमलजी ने भगवान से अरदास की की आप स्वयं मेरे घर पधारो. भगवान कहा आपका एक बेटा होगा उसका नाम वीरमदेव रखना उसी पालने में में स्वयं अवतार लूंगा, मेरा नाम रामदेव रखना. आंगन में कुमकुम के पगलिये मिलेंगे और पानी सब दूध हो जाएगा. और ऐसा ही हुआ.
32 वर्ष की उम्र में जीवित समाधि ली
रामदेव जी ने दैत्य भैरव का वध किया. न उन्होंने पूरा जीवन शोषित, गरीब और पिछड़े लोगों के बीच बिताया. उन्होंने रूढिय़ों तथा छूआछूत का विरोध किया. अंत में रामदेवरा में 32 वर्ष की उम्र में जीवित समाधि ली थी.
रामदेवरा में आज भी विश्वप्रसिद्ध मेला भरा जाता है. पूरे भारत वर्ष से लाखों पैदल यात्री अपनी मनोकामना पूर्ण हेतु आते है. मुख्य पवित्र भूमि कासमीर है. जहां 600 वर्ष पुरानी खेजड़ी है. जिसको थापा की खेजड़ी कहते है. उसके दर्शन से मनोकामना पूर्ण होती है.
बाबा रामदेव जी की भव्य मंदिर
बाबा रामदेव जी ने जहां अवतार लिया. वहां कासमीर में बड़ा ही भव्य मंदिर बनकर तैयार हो गया है. जिसका दिसंबर में काम पूरा होकर शुभारंभ हो जाएगा. मंदिर का निर्माण 2007 से शुरू होकर 2019 तक चला है. जिसमें करीब 20 से 25 करोड़ की लागत आई है, मंदिर में रामसा पीर की सवा पांच फीट की मूर्ति स्थापति होगी.
रामदेवरा में लक्खी मेला
रामदेवरा में बाबा रामदेव लक्खी मेला भादो सुदी दोज से शुरू होकर भादो सुदी ग्यारस तक लगता है. यह मेला अगस्त से सितंबर के महीने में भरता है. रामदेवरा मेला में भारी संख्या में भक्त दूर-दूर से बाबा के दर्शनों के लिए आते हैं. वहीं इसके लिए मंदिर समिति में एक पोस्टक जारी करते हुए कार्यक्रम की जानकारी दी.