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राजस्थान का 'सुपर-30' : एक सरकारी डॉक्टर जो 30 गरीब बच्चों को बना चुका है MBBS

बाड़मेर शहर में स्थित मेडिकल कोचिंग संस्थान फिफ्टी विलेज की. जिसे 8 साल पहले वर्ष 2012 में एक सरकारी चिकित्सक डॉ भरत सारण ने शुरू किया था. इस संस्थान ने 30 मेडिकल छात्रों के सपनों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाई है.

'फिफ्टी विलेज' का इकलौता डॉक्टर
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Published : Jun 29, 2019, 11:08 PM IST

बाड़मेर. निशुल्क शिक्षा के दौर में राजस्थान में एक ऐसा संस्थान है जो सरकारी तो नहीं, लेकिन सुविधाएं किसी सरकारी संस्थान से कम भी नहीं. एक छोटे से शहर में स्थित यह संस्थान दिखने में छोटा तो जरूर है, लेकिन उपलब्धियां बड़े संस्थान जितनी है. यह आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए एक उम्मीद की किरण है. अब तक इस संस्थान ने 30 छात्रों के सपनों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाई है.

'फिफ्टी विलेज' का इकलौता डॉक्टर

दरअसल, हम बात कर रहे बाड़मेर शहर में स्थित मेडिकल कोचिंग संस्थान फिफ्टी विलेज की. जिसे 8 साल पहले वर्ष 2012 में एक सरकारी चिकित्सक डॉ. भरत सारण ने शुरू किया था. यहां पर ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी विद्यालयों से आने वाले छात्रों को मेडिकल कंपटीशन की तैयारी कराई जाती है. बाड़मेर शहर में स्थित यह संस्थान कमजोर आय वर्ग के छात्रों के लिए किसी उम्मीद की किरण से कम नहीं है. संस्थान में निशुल्क कोचिंग के साथ खाना, पीना और रहना फ्री में उपलब्ध है.

यहां मेडिकल की तैयारी करने वाले 30 छात्र अब तक डॉक्टर बनकर देश के अलग-अलग क्षेत्रों में सेवाएं दे रहे हैं. डॉक्टर भरत सारण उन छात्रों के लिए एक सहारा हैं, जिनके माता पिता नहीं है या फिर वे किसी निर्धन किसान, मजदूर परिवार से आते हैं. फिफ्टी विलेज में तैयारी कर रहे बच्चों का कहना है उनके लिए डॉक्टर बनना एक सपना मात्र था, लेकिन पैसों के अभाव में पढ़ाई करने बेहद मुश्लिक था. छात्रों का कहना है कि फिफ्टी विलेज उनके सपनों को हकीकत में बदलने के लिए एक प्लेटफार्म उपलब्ध करा रहा है.

कोचिंग संचालक डॉ भरत सारण कहते हैं कि जब उन्होंने संस्थान को शुरू किया तो लोगों ने उसका मजाक उड़ाया था, लेकिन वो अपने निर्णय पर अडिग रहे. उन्होंने ग्रामीण इलाकों के प्रतिभावान छात्रों के लिए संघर्ष जारी रखा. ऐसे में फिफ्टी विलेज को आगे बढ़ाने के लिए कई भामाशाह भी सामने आए, जिन्होंने बढ़ चढ़कर मदद भी की.

बता दें कि फिफ्टी विलेज हर वर्ष ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिभावान छात्रों का चयन करता है. संस्थान में 25 छात्रों को पीएमटी और 25 को नीट परीक्षा की तैयारी करवाने के लिए चयनित किया जाता है. ये सभी छात्र ग्रामीण क्षेत्रों के होते हैं. इसके लिए एक प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है. जिसमें 25 छात्रों को पीएमटी और 25 को नीट के लिए चयनित किया जाता है. बाड़मेर में डॉ. भरत सारण की मुहिम ग्रामीण छात्रों ने लिए बरदान है. ऐसे कदम की देश को अत्यधिक आवश्यकता है. फिफ्टी विलेज इस बात का गवाह है कि एक चिकित्सक समाज में कमजोर वर्ग का कैसे सहारा बन सकती है. डॉ. सारण का यह प्रयास प्रशंसनीय है.

बाड़मेर. निशुल्क शिक्षा के दौर में राजस्थान में एक ऐसा संस्थान है जो सरकारी तो नहीं, लेकिन सुविधाएं किसी सरकारी संस्थान से कम भी नहीं. एक छोटे से शहर में स्थित यह संस्थान दिखने में छोटा तो जरूर है, लेकिन उपलब्धियां बड़े संस्थान जितनी है. यह आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए एक उम्मीद की किरण है. अब तक इस संस्थान ने 30 छात्रों के सपनों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाई है.

'फिफ्टी विलेज' का इकलौता डॉक्टर

दरअसल, हम बात कर रहे बाड़मेर शहर में स्थित मेडिकल कोचिंग संस्थान फिफ्टी विलेज की. जिसे 8 साल पहले वर्ष 2012 में एक सरकारी चिकित्सक डॉ. भरत सारण ने शुरू किया था. यहां पर ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी विद्यालयों से आने वाले छात्रों को मेडिकल कंपटीशन की तैयारी कराई जाती है. बाड़मेर शहर में स्थित यह संस्थान कमजोर आय वर्ग के छात्रों के लिए किसी उम्मीद की किरण से कम नहीं है. संस्थान में निशुल्क कोचिंग के साथ खाना, पीना और रहना फ्री में उपलब्ध है.

यहां मेडिकल की तैयारी करने वाले 30 छात्र अब तक डॉक्टर बनकर देश के अलग-अलग क्षेत्रों में सेवाएं दे रहे हैं. डॉक्टर भरत सारण उन छात्रों के लिए एक सहारा हैं, जिनके माता पिता नहीं है या फिर वे किसी निर्धन किसान, मजदूर परिवार से आते हैं. फिफ्टी विलेज में तैयारी कर रहे बच्चों का कहना है उनके लिए डॉक्टर बनना एक सपना मात्र था, लेकिन पैसों के अभाव में पढ़ाई करने बेहद मुश्लिक था. छात्रों का कहना है कि फिफ्टी विलेज उनके सपनों को हकीकत में बदलने के लिए एक प्लेटफार्म उपलब्ध करा रहा है.

कोचिंग संचालक डॉ भरत सारण कहते हैं कि जब उन्होंने संस्थान को शुरू किया तो लोगों ने उसका मजाक उड़ाया था, लेकिन वो अपने निर्णय पर अडिग रहे. उन्होंने ग्रामीण इलाकों के प्रतिभावान छात्रों के लिए संघर्ष जारी रखा. ऐसे में फिफ्टी विलेज को आगे बढ़ाने के लिए कई भामाशाह भी सामने आए, जिन्होंने बढ़ चढ़कर मदद भी की.

बता दें कि फिफ्टी विलेज हर वर्ष ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिभावान छात्रों का चयन करता है. संस्थान में 25 छात्रों को पीएमटी और 25 को नीट परीक्षा की तैयारी करवाने के लिए चयनित किया जाता है. ये सभी छात्र ग्रामीण क्षेत्रों के होते हैं. इसके लिए एक प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है. जिसमें 25 छात्रों को पीएमटी और 25 को नीट के लिए चयनित किया जाता है. बाड़मेर में डॉ. भरत सारण की मुहिम ग्रामीण छात्रों ने लिए बरदान है. ऐसे कदम की देश को अत्यधिक आवश्यकता है. फिफ्टी विलेज इस बात का गवाह है कि एक चिकित्सक समाज में कमजोर वर्ग का कैसे सहारा बन सकती है. डॉ. सारण का यह प्रयास प्रशंसनीय है.

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बाड़मेर

बाड़मेर जिले में सरकारी डॉक्टर ने चलाई अनोखी मुहिम गरीब और जरूरतमंद छात्रों को बनाया डॉ अब तक 30 डॉक्टर बना चुका है सरकारी डॉक्टर चलाता है अनूठी संस्थान

राजस्थान के बाड़मेर जिले में एक सरकारी डॉक्टर ने पिछले 8 सालों में अनूठी मुहिम चला रखी है जिसके तहत वह ग्रामीण परिवेश से आने वाली सरकारी स्कूल के बच्चों को डॉक्टर बनाने के लिए एक प्लेटफार्म जिला मुख्यालय पर देता है जिसमें वह पढ़ाई लिखाई के साथ ही खाना पीना रहना उनका व संस्थान वहन करती है अब तक यह संस्थान 30 जरूरतमंदों को डॉक्टर बना चुकी है सरकारी डॉ भरत सारण के अनुसार 2012 में उसने संस्थान को शुरू किया था तो लोगों ने उसका मजाक उड़ाया था लेकिन मेरा मकसद साफ था कि किस तरीके से विषम परिस्थितियों में ग्रामीण इलाके के बच्चे प्रतिभा और हुनर तो होता है लेकिन पैसों के अभाव में आगे नहीं बढ़ पाते और उसी वक्त मैंने यह ठान ली थी कि मैं ऐसे बच्चों के लिए कैसा प्लेटफार्म जिला मुख्यालय पर दूंगा जिसमें यह बच्चे अपनी प्रतिभा और उनको आगे बढ़ा सके और इसी के लिए मैंने इस संस्थान को शुरू किया जिसके नाम में फिफ्टीन विलेज रखने का एक ही मकसद था हर साल 50 जरूरतमंद बच्चों को मैं एग्जाम पीटीईटी और नीट की तैयारी करवा सकूं




Body:डॉक्टर बताते हैं कि जब वह पहली बार गांव से शहर में पढ़ने के लिए स्कूल आए थे तो यहां पता चला कि यहां पर ट्यूशन के बिना आप आगे पढ़ाई नहीं की जा सकती तो मेरे पास पैसों के बाद में मुझे काफी दिक्कतों का सामना पड़ा लेकिन उसके बावजूद भी मैं एक सरकारी डॉक्टर बन गया उसके बाद मैंने यह ठान ली थी कि ग्रामीण बच्चों को डॉक्टर बनाने के लिए मैं कैसे संस्थान शुरू करूंगा जिस में दसवीं में फर्स्ट डिवीजन के साथी सरकारी स्कूल का बच्चा जो जरूरतमंदों जो डॉक्टर बनने के लिए तैयार हो ऐसे बच्चों की खोज करके मैंने संस्थान शुरू की थी आज 8 साल हो गए हैं 30 से जल्द बच्चे डॉक्टर बन चुके हैं जो कि ऐम्स सहित कई अन्य जगहों पर लगे हुए हैं


Conclusion:डॉक्टर बताते हैं कि संस्थान में भामाशाह ओं के सहयोग से ही संस्थान चलती है बच्चे खुद अपना खाना पीना सब कुछ खुद बनाते हैं सब कुछ खुद ही करते हैं बस समय नहीं प्लेटफॉर्म दे रखा है और मैं इन बच्चों को पढ़ाने लिखाने में ध्यान देता हूं मेरे साथ मेरे और कहीं साथ ही हैं जो कि इन बच्चों की सार संभाल सकते हैं और आज हमारी संस्थान ने 30 से ज्यादा डॉक्टर तैयार कर दिए हैं यह वह बच्चे हैं जिनकी या तो मां-बाप नहीं है या किसान परिवार से आते हैं या गरीब परिवार से आते हैं या नरेगा में मजदूरी करते हैं
वहीं दूसरी तरफ बच्चों का कहना है कि जिस तरीके से हम लोगों का सपना था कि डॉक्टर बने लेकिन पैसों के अभाव में बनना मुश्किल था ऐसे में जब हमें इस संस्थान के बारे में पता चला था हम यहां आए और हमने एग्जाम दिया और एग्जाम में पास होने के बाद हमें बहुत खुशी हुई जिस तरीके से यहां पर हमें प्लेटफार्म यकीनन काबिले तारीफ है अब हमारा सपना है कि हम डॉक्टर भरत सारण की तरह डॉक्टर बने और बाड़मेर जिले के गरीब तबके के लिए कुछ करें हम भी ऐसे डॉक्टर तैयार करना चाहते हैं
bite डॉ भरत सारण
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