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COMPUTER के दौर में आज भी जिंदा है लोक कला, हरबोला पेड़ पर सुनाते हैं लोक गाथा

कम्प्यूटर, मोबाइल के दौर में आज भी लोक कला जिंदा है. रोजी-रोटी के लिए इस कला को कलाकर आज भी जिंदा रखे हुए है. 'हरबोलों की कहानी' के नाम से जाने वाली लोक कला आज के आधुनिक युग में जिंदा है.

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Published : Sep 20, 2019, 1:41 PM IST

अंता (बारां). हरबोला की कहानी के नाम से जाने वाली इस कला में कलाकार पेड़ पर चढ़ कर ऊंची आवाज में भूले बिसरे गीत सुनाते है. अगर लोग इसे देखेंगे तो किसी को भी अचंभा जरूर होगा. लेकिन कई गांवों में आज भी यह परंपरा जारी है. आज भी हाड़ौती क्षेत्र में कई स्थानों पर यदा-कदा बुंदेले हरबोले नजर आ जाते हैं.

बुंदेले हरबोला पेड़ पर सुनाते है पुरानी लोक गाथाएं

कई दशकों पूर्व तो यह बुंदेले हरबोले करीब हर गांव में दिखाई देते थे. लेकिन समय के साथ साथ इनकी गाथा सुनने वाले भी अब बहुत कम लोग ही मिलते हैं.

यह भी पढ़ें- बारां में बारिश ने उजाड़े कई आशियानें

बुंदेले हरबोल पेड़ के ऊपर चढ़कर भगवान के भजन और कथा के साथ ही झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई के शौर्य की गाथा को गाते है. सालों से चली आ रही बुंदेले हरबोलों की यह गाथा आज भी जीवंत है. इसके पीछे उनका मकसद अपने परिवार का पालन-पोषण भी होता है.

अंता (बारां). हरबोला की कहानी के नाम से जाने वाली इस कला में कलाकार पेड़ पर चढ़ कर ऊंची आवाज में भूले बिसरे गीत सुनाते है. अगर लोग इसे देखेंगे तो किसी को भी अचंभा जरूर होगा. लेकिन कई गांवों में आज भी यह परंपरा जारी है. आज भी हाड़ौती क्षेत्र में कई स्थानों पर यदा-कदा बुंदेले हरबोले नजर आ जाते हैं.

बुंदेले हरबोला पेड़ पर सुनाते है पुरानी लोक गाथाएं

कई दशकों पूर्व तो यह बुंदेले हरबोले करीब हर गांव में दिखाई देते थे. लेकिन समय के साथ साथ इनकी गाथा सुनने वाले भी अब बहुत कम लोग ही मिलते हैं.

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बुंदेले हरबोल पेड़ के ऊपर चढ़कर भगवान के भजन और कथा के साथ ही झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई के शौर्य की गाथा को गाते है. सालों से चली आ रही बुंदेले हरबोलों की यह गाथा आज भी जीवंत है. इसके पीछे उनका मकसद अपने परिवार का पालन-पोषण भी होता है.

Intro:बारां । कम्प्यूटर, मोबाइल के दौर में आज भी लोक कला जिंदा है , रोजी रोटी के लिए इस कला को कलाकर जिंदा. रखे हुए है । हर बोलों की कहानी के नाम से जाने वाली लोक कला आज के आधुनिक युग में जिंदा है ।Body:

अंता (बारां) इस कला में कलाकार पेड़ पर चढ़ कर ऊंची आवाज में भूले बिसरे गीत सुनाते किसी को देखेंगे तो आपको अचंभा जरूर होगा । लेकिन कई गांवों में आज भी यह परंपरा जारी है। आज भी हाड़ौती क्षेत्र में कई स्थानों पर यदा.कदा बुंदेले हरबोले नजर आ जाते हैं। कई दशकों पूर्व तो यह बुंदेले हरबोले करीब हर गांव में दिखाई देते थे। लेकिन समय के साथ साथ इनकी गाथा सुनने वाले भी अब बहुत कम लोग ही मिलते हैं।

बुंदेले हरबोले पेड़ के ऊपर चढ़कर भगवान के भजन व कथा के साथ ही झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई के शौर्य की गाथा को गाते हैं। वर्षों से चली आ रही बुन्देले हरबोलो कि यह गाथा आज भी जीवंत है। इसके पीछे उनका मकसद अपना परिवार का पालन पोषण का भी होता है।
Conclusion:
मध्यप्रदेश के खंडवा जिलें से आयें मंगल सिंह बुंदेला इन दिनों बारां जिलें के गांवों में पेड़ पर चढ़कर भजन गाते नजर आए। बुंदेले को जब तक कोई दक्षिणा या बक्शीश नहीं मिल जाती तब तक पेड़ पर ही बैठ कर भजन या झांसी की महाराणी की कथा सुनाते ही रहते हैं। वह तभी पेड़ से उतरते हैं। जब उन्हें कोई नीचे उतारने वाला बक्शीश देने वाला मिल जाता है।

बाइट -कलाकार मंगल सिंह
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