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बारां : शाहबाद में करवा चौथ को लेकर सुहागिनों में उत्साह, बाजारों में दिखी रौनक

करवा चौथ पर्व बुधवार यानी 4 नवंबर को है. सुहागिनों के लिए यह दिन सबसे खास होता है, वे पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं. शाम को सज धज कर पति की लंबी आयु के लिए विधि-विधान से पूजन करती हैं. ऐसे में इस साल भी करवा चौथ को लेकर महिलाओं में बेहद उत्साह देखने को मिल रहा है. सजने संवरने के लिए महिलाएं बाजार जाकर सौंदर्य सामग्री खरीद रही हैं, जिससे बाजार में काफी भीड़भाड़ होने लगी है.

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Published : Nov 3, 2020, 4:58 PM IST

करवाचौथ को लेकर बाजारों में भीड़, Crowd markets due to Karvachauth
करवाचौथ को लेकर बाजारों में भीड़

शाहबाद (बारां). क्षेत्र में करवा चौथ व्रत को लेकर महिलाओं में खासा उत्साह देखा जा रहा है. महिलाएं बाजारों में करवा चौथ की खरीददारी करती दिखाई दे रही हैं. बता दें कि करवा चौथ व्रत हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है. इस साल करवा चौथ 4 नवंबर यानी कल मनाया जाएगा.

करवाचौथ को लेकर बाजारों में भीड़

भागवत आचार्य पंडित धर्मानंद शास्त्री ने बताया कि इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं. यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे अहम व्रत माना जाता है. करवा चौथ के दिन महिलाएं बड़े ही श्रद्धा भाव से शिव-पार्वती की पूजा करती हैं. इस दिन व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश के साथ चांद की भी पूजा कर चांद को छलनी से देखा जाता है. चांद को छलनी से देखने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है.

पढ़ेंः बर्बरताः झालावाड़ में मोबाइल चोरी के आरोप में ग्रामीणों ने दो भाइयों को पेड़ से बांधकर पीटा, बाल भी काटे

छल से बचने के लिए छलनी का इस्तेमाल...

वृद्ध 95 वर्षीय चिरौंजी बाई भार्गव, अंजुलता भार्गव कहती है कि करवा चौथ के व्रत की रात चांद को महिलाएं छलनी में से देखती हैं और फिर उसी छलनी में से पति का चेहरा देखा जाता है, लेकिन अक्सर ये सवाल मन में उठता रहता है कि इस परपंरा के पीछे कारण क्या है. दरअसल, छल से बचने के लिए छलनी का इस्तेमाल किया जाता है. कहते हैं प्राचीन समय में करवा नाम की विवाहिता लड़की थी. जिसने शादी के बाद पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा था. उस वक्त वो अपने मायके में थी और उसके भाईयों से उसका भूखा रहना देखा नहीं गया. इसलिए इनमें से सबसे छोटे भाई ने पेड़ की डालियों में एक छलनी के पीछे जलता हुआ दीपक रखा और अपनी बहन करवा को भ्रम से चांद दिखाकर उसका व्रत खुलवा दिया. जिससे करवा माता गुस्सा हुईं और अगले ही पल करवा के पति की मृत्यु का समाचार मिला.

भूल सुधार के लिए अगले साल विधि-विधान से किया व्रत...

अपनी इस भयंकर भूल का अहसास जब करवा को हुआ तो उसने अगले साल कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी पर फिर से करवा माता का ये व्रत विधि विधान से किया और हर छल से बचने के लिए इस बार हाथ में छलनी लेकर चंद्र देव के दर्शन किए. इससे प्रसन्न होकर माता ने उसके व्रत को स्वीकार किया और पति को जीवित कर दिया. तब से लेकर अब तक हमेशा छलनी में से ही चांद देखने की परंपरा है.

नई छलनी में से देखना चाहिए चांद...

हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन छलनी में से चांद देखना चाहिए. जिससे किसी तरह का छल ना हो और माता करवा व्रती महिला के विधि विधान से किए गए व्रत को स्वीकार करे.

पढ़ेंः श्रीगंगानगर: अवैध देसी शराब के खिलाफ पंजाब और राजस्थान पुलिस की संयुक्त कार्रवाई

लॉकडाउन का असर कुंभकारों के धंधा पर पड़ा...

कुंभकार कार्य से जुड़े लोगों का कहना है कि लॉकडाउन के चलते धंधा चौपट हो गया है. दुकानदार हाथ पर हाथ रखे बैठे हुए हैं. पहले अच्छा धंधा हो जाता था, लेकिन इस बार बिल्कुल धंधा मंदा है. कोरोना ने सारी मेहनत पर पानी फेर कर रख दिया है. जिससे दीपावली और करवा चौथ पर कोई अच्छा धंधा नहीं होगा. मेहनत मजदूरी निकलना मुश्किल हो रहा है. सबसे बड़ा असर कोरोना ने धंधे पर दिखाया है.

शाहबाद (बारां). क्षेत्र में करवा चौथ व्रत को लेकर महिलाओं में खासा उत्साह देखा जा रहा है. महिलाएं बाजारों में करवा चौथ की खरीददारी करती दिखाई दे रही हैं. बता दें कि करवा चौथ व्रत हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है. इस साल करवा चौथ 4 नवंबर यानी कल मनाया जाएगा.

करवाचौथ को लेकर बाजारों में भीड़

भागवत आचार्य पंडित धर्मानंद शास्त्री ने बताया कि इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं. यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे अहम व्रत माना जाता है. करवा चौथ के दिन महिलाएं बड़े ही श्रद्धा भाव से शिव-पार्वती की पूजा करती हैं. इस दिन व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश के साथ चांद की भी पूजा कर चांद को छलनी से देखा जाता है. चांद को छलनी से देखने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है.

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छल से बचने के लिए छलनी का इस्तेमाल...

वृद्ध 95 वर्षीय चिरौंजी बाई भार्गव, अंजुलता भार्गव कहती है कि करवा चौथ के व्रत की रात चांद को महिलाएं छलनी में से देखती हैं और फिर उसी छलनी में से पति का चेहरा देखा जाता है, लेकिन अक्सर ये सवाल मन में उठता रहता है कि इस परपंरा के पीछे कारण क्या है. दरअसल, छल से बचने के लिए छलनी का इस्तेमाल किया जाता है. कहते हैं प्राचीन समय में करवा नाम की विवाहिता लड़की थी. जिसने शादी के बाद पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा था. उस वक्त वो अपने मायके में थी और उसके भाईयों से उसका भूखा रहना देखा नहीं गया. इसलिए इनमें से सबसे छोटे भाई ने पेड़ की डालियों में एक छलनी के पीछे जलता हुआ दीपक रखा और अपनी बहन करवा को भ्रम से चांद दिखाकर उसका व्रत खुलवा दिया. जिससे करवा माता गुस्सा हुईं और अगले ही पल करवा के पति की मृत्यु का समाचार मिला.

भूल सुधार के लिए अगले साल विधि-विधान से किया व्रत...

अपनी इस भयंकर भूल का अहसास जब करवा को हुआ तो उसने अगले साल कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी पर फिर से करवा माता का ये व्रत विधि विधान से किया और हर छल से बचने के लिए इस बार हाथ में छलनी लेकर चंद्र देव के दर्शन किए. इससे प्रसन्न होकर माता ने उसके व्रत को स्वीकार किया और पति को जीवित कर दिया. तब से लेकर अब तक हमेशा छलनी में से ही चांद देखने की परंपरा है.

नई छलनी में से देखना चाहिए चांद...

हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन छलनी में से चांद देखना चाहिए. जिससे किसी तरह का छल ना हो और माता करवा व्रती महिला के विधि विधान से किए गए व्रत को स्वीकार करे.

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लॉकडाउन का असर कुंभकारों के धंधा पर पड़ा...

कुंभकार कार्य से जुड़े लोगों का कहना है कि लॉकडाउन के चलते धंधा चौपट हो गया है. दुकानदार हाथ पर हाथ रखे बैठे हुए हैं. पहले अच्छा धंधा हो जाता था, लेकिन इस बार बिल्कुल धंधा मंदा है. कोरोना ने सारी मेहनत पर पानी फेर कर रख दिया है. जिससे दीपावली और करवा चौथ पर कोई अच्छा धंधा नहीं होगा. मेहनत मजदूरी निकलना मुश्किल हो रहा है. सबसे बड़ा असर कोरोना ने धंधे पर दिखाया है.

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