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हक की लड़ाई लड़ते-लड़ते जिंदगी की जंग हार गया ये फौजी...30 साल बाद भी नहीं मिला न्याय - जवान

भारतीय सेना के जवान सीमा पर देश की सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं या यूं कहें की सेना का जवान अपने जीवन में दो तरह की लड़ाई लड़ता है, पहली तो देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर खड़े होकर और दूसरी अगर वहां से सुरक्षित लौट आए तो अपने परिवार की अच्छी देखभाल और सुरक्षित भरण पोषण के लिए. लेकिन बारां जिले का एक जवान ने देश के प्रति अपना कर्तव्य तो बेहतर तरीके से निभाया. लेकिन अपने परिवार का सपना उसका अधूरा रह गया.

हक की लड़ाई लड़ते-लड़ते जिंदगी की जंग हार गया ये फौजी
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Published : Mar 7, 2019, 11:53 PM IST

बारां. भारतीय सेना के जवान सीमा पर देश की सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं या यूं कहें की सेना का जवान अपने जीवन में दो तरह की लड़ाई लड़ता है, पहली तो देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर खड़े होकर और दूसरी अगर वहां से सुरक्षित लौट आए तो अपने परिवार की अच्छी देखभाल और सुरक्षित भरण पोषण के लिए. लेकिन बारां जिले का एक जवान ने देश के प्रति अपना कर्तव्य तो बेहतर तरीके से निभाया. लेकिन अपने परिवार का सपना उसका अधूरा रह गया.

हक की लड़ाई लड़ते-लड़ते जिंदगी की जंग हार गया ये फौजी
बता दें कि चीन सहित भारत पाकिस्तान के युद्ध में भाग ले चुका बारां जिले का जसवंत सिंह नाम के सैनिक अपने परिवार के संघर्ष की लड़ाई में हार गया. मिनी सचिवालय के सामने कई बार धरने दिए. राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री सहित कलेक्टरों तक अपनी मांग को पहुंचाया. लेकिन समस्या का समाधान नहीं हुआ तो आखिरकार संघर्ष से लड़ते-लड़ते उम्र के आखिरी पड़ाव में उसकी मौत हो गई.

पिछले 30 सालों से संघर्ष कर रहा इस फौजी का परिवार आज भी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर है. सरकार की ओर से मिलने वाले भूखंड के लिए सैनिक जसवंत सिंह तो गुजर गया लेकिन उसकी इस लड़ाई को अभी भी उसकी पत्नी और उसके परिवार ने जारी रखी है. जसवंत सिंह की पत्नी भी उम्र के आखिरी पड़ाव में हैं. पथराई आंखें और शरीर पर उम्र की थकान लिए कागजों का पुलिंदा लेकर कभी कलेक्टर की चौखट पर अपने हक के लिए चक्कर काटती हैं तो कभी किसी नेता या किसी मंत्री के दरवाजे पर जाकर गुहार लगाती हैं लेकिन सभी दूर से केवल आश्वासन के सिवाय और कुछ नहीं मिलता जसवंत सिंह को भूखंड तो आवंटित हुआ लेकिन उसका कब्जा अभी तक नहीं मिला.

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिस भूखंड को जसवंत सिंह को आवंटित किया गया था उस पर पहले से ही कब्जा था. ऐसे में उस समय फौजी का परिवार उस भूखंड पर अपना अधिकार नहीं जमा पाया जबकि सरकारी खाते में आज भी यह भूखंड फौजी के नाम से ही दर्ज है. बावजूद इसके फौजी का परिवार दर दर को भटकने को मजबूर है. फौजी का परिवार आज भी कच्चे मकान में अपना जीवन यापन कर रहा है.

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फौजी की बहू बताती है कि फोर्स से रिटायर होने के बाद जब जसवंत घर लौटे तो उनकी इच्छा उनके परिवार के सपनों को पूरा करने की थी. लेकिन वह सपना पूरा नहीं कर पाए और संघर्ष करते-करते ही गुजर गए. आज भी कई मंत्रियों से मुलाकात के बाद भी इस परिवार का समाधान नहीं हो पाया है. जसवंत सिंह के पुत्र बताते हैं कि उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से भी सत्ता में होते हुए मुलाकात की थी लेकिन उस पर अभी तक कोई ध्यान नहीं दिया गया. इतना ही नहीं देश के रक्षा मंत्री सहित राष्ट्रपति तक यह परिवार अपनी अर्जी चिट्ठी के माध्यम से भेज चुका है. लेकिन देश सेवा का दम भरने वाली केंद्र सरकार से जवाब में इस परिवार को एक तसल्ली भरी चिट्ठी भी अभी तक प्राप्त नहीं हुई है. ऐसे में आज भी यह परिवार उम्मीद की आश लिए बैठा हुआ है.

इस मामले में अतिरिक्त जिला कलेक्टर सुदर्शन सिंह तोमर ने बताया कि फौजी परिवार को भूखंड का आवंटन पहले ही किया जा चुका है. लेकिन पूर्व कब्जा धारी द्वारा इसका वाद रेवेन्यू बोर्ड अजमेर में दायर किया हुआ है. ऐसे में अतिरिक्त जिला कलेक्टर बताते हैं कि रेवेन्यू बोर्ड से मामले की सुनवाई होने के बाद ही इस मामले में कुछ किया जा सकता है.

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बारां. भारतीय सेना के जवान सीमा पर देश की सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं या यूं कहें की सेना का जवान अपने जीवन में दो तरह की लड़ाई लड़ता है, पहली तो देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर खड़े होकर और दूसरी अगर वहां से सुरक्षित लौट आए तो अपने परिवार की अच्छी देखभाल और सुरक्षित भरण पोषण के लिए. लेकिन बारां जिले का एक जवान ने देश के प्रति अपना कर्तव्य तो बेहतर तरीके से निभाया. लेकिन अपने परिवार का सपना उसका अधूरा रह गया.

हक की लड़ाई लड़ते-लड़ते जिंदगी की जंग हार गया ये फौजी
बता दें कि चीन सहित भारत पाकिस्तान के युद्ध में भाग ले चुका बारां जिले का जसवंत सिंह नाम के सैनिक अपने परिवार के संघर्ष की लड़ाई में हार गया. मिनी सचिवालय के सामने कई बार धरने दिए. राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री सहित कलेक्टरों तक अपनी मांग को पहुंचाया. लेकिन समस्या का समाधान नहीं हुआ तो आखिरकार संघर्ष से लड़ते-लड़ते उम्र के आखिरी पड़ाव में उसकी मौत हो गई.

पिछले 30 सालों से संघर्ष कर रहा इस फौजी का परिवार आज भी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर है. सरकार की ओर से मिलने वाले भूखंड के लिए सैनिक जसवंत सिंह तो गुजर गया लेकिन उसकी इस लड़ाई को अभी भी उसकी पत्नी और उसके परिवार ने जारी रखी है. जसवंत सिंह की पत्नी भी उम्र के आखिरी पड़ाव में हैं. पथराई आंखें और शरीर पर उम्र की थकान लिए कागजों का पुलिंदा लेकर कभी कलेक्टर की चौखट पर अपने हक के लिए चक्कर काटती हैं तो कभी किसी नेता या किसी मंत्री के दरवाजे पर जाकर गुहार लगाती हैं लेकिन सभी दूर से केवल आश्वासन के सिवाय और कुछ नहीं मिलता जसवंत सिंह को भूखंड तो आवंटित हुआ लेकिन उसका कब्जा अभी तक नहीं मिला.

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिस भूखंड को जसवंत सिंह को आवंटित किया गया था उस पर पहले से ही कब्जा था. ऐसे में उस समय फौजी का परिवार उस भूखंड पर अपना अधिकार नहीं जमा पाया जबकि सरकारी खाते में आज भी यह भूखंड फौजी के नाम से ही दर्ज है. बावजूद इसके फौजी का परिवार दर दर को भटकने को मजबूर है. फौजी का परिवार आज भी कच्चे मकान में अपना जीवन यापन कर रहा है.

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फौजी की बहू बताती है कि फोर्स से रिटायर होने के बाद जब जसवंत घर लौटे तो उनकी इच्छा उनके परिवार के सपनों को पूरा करने की थी. लेकिन वह सपना पूरा नहीं कर पाए और संघर्ष करते-करते ही गुजर गए. आज भी कई मंत्रियों से मुलाकात के बाद भी इस परिवार का समाधान नहीं हो पाया है. जसवंत सिंह के पुत्र बताते हैं कि उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से भी सत्ता में होते हुए मुलाकात की थी लेकिन उस पर अभी तक कोई ध्यान नहीं दिया गया. इतना ही नहीं देश के रक्षा मंत्री सहित राष्ट्रपति तक यह परिवार अपनी अर्जी चिट्ठी के माध्यम से भेज चुका है. लेकिन देश सेवा का दम भरने वाली केंद्र सरकार से जवाब में इस परिवार को एक तसल्ली भरी चिट्ठी भी अभी तक प्राप्त नहीं हुई है. ऐसे में आज भी यह परिवार उम्मीद की आश लिए बैठा हुआ है.

इस मामले में अतिरिक्त जिला कलेक्टर सुदर्शन सिंह तोमर ने बताया कि फौजी परिवार को भूखंड का आवंटन पहले ही किया जा चुका है. लेकिन पूर्व कब्जा धारी द्वारा इसका वाद रेवेन्यू बोर्ड अजमेर में दायर किया हुआ है. ऐसे में अतिरिक्त जिला कलेक्टर बताते हैं कि रेवेन्यू बोर्ड से मामले की सुनवाई होने के बाद ही इस मामले में कुछ किया जा सकता है.

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Intro:बारां/ भारतीय सेना के जवान सीमा पर देश की सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं या यूं कहें की सेना का जवान अपने जीवन में दो तरह की लड़ाई लड़ता है पहली तो देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर खड़े होकर और दूसरी अगर वहां से सुरक्षित लौट आए तो अपने परिवार की अच्छी देखभाल और सुरक्षित भरण पोषण के लिए

लेकिन बारा जिले का एक जवान ने देश के प्रति अपना कर्तव्य तो बेहतर तरीके से निभाया लेकिन अपने परिवार का सपना उसका अधूरा रह गया चीन सहित भारत पाकिस्तान के युद्ध में भाग ले चुका बारां जिले का जसवंत सिंह नाम के सैनिक अपने परिवार के संघर्ष की लड़ाई में हार गया मिनी सचिवालय के सामने कई बार धरने दिए राष्ट्रपति मुख्यमंत्री सहित कलेक्टरों तक अपनी मांग को पहुंचाया लेकिन समस्या का समाधान नहीं हुआ तो आखिरकार संघर्ष से लड़ते-लड़ते उम्र के आखिरी पड़ाव में उसकी मौत हो गई पिछले 30 सालों से संघर्ष कर रहा इस फौजी का परिवार आज भी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर है



Body:सरकार की ओर से मिलने वाले भूखंड के लिए सैनिक जसवंत सिंह तो गुजर गया लेकिन उसकी इस लड़ाई को अभी भी उसकी पत्नी और उसके परिवार ने जारी रखी है जसवंत सिंह की पत्नी भी उम्र के आखिरी पड़ाव में है पथराई आंखें और शरीर पर उम्र की थकान लिए कागजों का पुलिंदा लेकर कभी कलेक्टर की चौखट पर अपने हक के लिए चक्कर काटती है तो कभी किसी नेता या किसी मंत्री के दरवाजे पर जाकर गुहार लगाती है लेकिन सभी दूर से केवल आश्वासन के सिवाय और कुछ नहीं मिलता जसवंत सिंह को भूकर तो आवंटित हुआ लेकिन उसका कब्जा अभी तक नहीं मिला सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिस भूखंड को जसवंत सिंह को आवंटित किया गया था उस पर पहले से ही कब्जा था ऐसे में उस समय फौजी का परिवार उस भूखंड पर अपना अधिकार नहीं जमा पाया जबकि सरकारी खाते में आज भी यह भूखंड फौजी के नाम से ही दर्ज है बावजूद इसके फौजी का परिवार दर दर को भटकने को मजबूर है फौजी का परिवार आज भी कच्चे मकान में अपना जीवन यापन कर रहा है फौजी की बहू बताती है कि फोर्स रिटायर होने के बाद जब जसवंत घर लौटे तो उनकी इच्छा उनके परिवार के सपनों को पूरा करने की थी लेकिन वह सपना पूरा नहीं कर पाए और संघर्ष करते-करते ही गुजर गए आज भी कई मंत्रियों से मुलाकात के बाद भी इस परिवार का समाधान नहीं हो पाया है जसवंत सिंह के पुत्र बताते हैं कि उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से भी सत्ता में होते हुए मुलाकात की थी लेकिन उस पर अभी तक कोई ध्यान नहीं दिया गया इतना ही नहीं देश के रक्षा मंत्री सहित राष्ट्रपति तक यह परिवार अपनी अर्जी चिट्ठी के माध्यम से भेज चुका है लेकिन देश सेवा का दम भरने वाली केंद्र सरकार से जवाब में इस परिवार को एक तसल्ली भरी चिट्ठी भी अभी तक प्राप्त नहीं हुई है ऐसे में आज भी यह परिवार उम्मीद की आस लिए बैठा हुआ है


Conclusion:इस मामले में अतिरिक्त जिला कलेक्टर सुदर्शन सिंह तोमर ने बताया कि फौजी परिवार को भूखंड का आवंटन पहले ही किया जा चुका है लेकिन पूर्व कब्जा धारी द्वारा इसका वाद रेवेन्यू बोर्ड अजमेर में दायर किया हुआ है ऐसे में अतिरिक्त जिला कलेक्टर बताते हैं कि रेवेन्यू बोर्ड से मामले की सुनवाई होने के बाद ही इस मामले में कुछ किया जा सकता है
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