बांसवाड़ा. पूरे विश्व में कहर बरपा रहा कोरोना वायरस भी अपने साथ कई चुनौतियां और मुसीबत लेकर आया है. देशभर में 25 मार्च को लगे लॉकडाउन के बाद से ही बच्चों के स्कूल बंद हैं. ऐसे में पढ़ाई बाधित होती देख बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाना शुरू किया गया है, लेकिन यह किसी चुनौती से कम नहीं है. महल, किले और रेत पर चलते ऊंट. राजस्थान को अलग ही पहचान दिलाते हैं. यहां सिर पर पानी की मटकी लिए भटकती महिलाएं, आमतौर पर देखी जा सकती हैं. लेकिन कोसों दूर तक जिस राज्य में लोगों को पानी के लिए भटकता पड़ता हो, वहां ऑनलाइन सुविधाओं का हाल कैसा है? यह जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिला बांसवाड़ा पहुंची.
राजस्थान का बांसवाड़ा जिला. जहां के 75% लोग जनजाति वर्ग से हैं और इसका अधिकांश हिस्सा मूलभूत सुविधाओं से ही आज भी वंचित है. जहां घरों में पीने का पानी और बिजली जैसी आम सुविधाएं ही ना पहुंच रही हो, वहां ऑनलाइन एजुकेशन का पहुंचना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है.
क्या है ऑनलाइन पढ़ाई की चुनौतियां
स्कूल-कॉलेजों ने ऑनलाइन पढ़ाई तो शुरू कर दी गई है, शहरी क्षेत्रों के विद्यार्थी इससे लाभान्वित भी हो रहे हैं, लेकिन अधिकांश छात्र-छात्रा इसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं. इसका कारण है सभी अभिभावकों के पास एंड्रायड मोबाइल फोन का नहीं रहना. ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट भी एक बड़ी समस्या है.
एक सर्वे के मुताबिक जिले के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय डांगपाड़ा में करीब 200 बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन केवल 8 बच्चों के माता-पिता के पास ही एंड्राइड मोबाइल हैं. वहीं राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय बरड़िया के करीब साढे 300 बच्चे पढ़ाई करते हैं. लेकिन वहां के हालात भी कुछ ठीक नहीं है. 300 में से केवल 80 बच्चों के परिवारों में एंड्राइड मोबाइल हैं.
अभिभावकों की खराब आर्थिक स्थिति
काफी ऐसे अभिभावक भी हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है. अगर उनके पास एंड्रायड मोबाइल है भी तो वे नेट चलाने में होने वाला खर्च वहन करने की स्थिति में नहीं हैं. कई अभिभावकों के पास एक ही मोबाइल है, लेकिन उनके यहां पढ़ने वाले बच्चों की संख्या अधिक है. इससे भी बच्चों को पढ़ने में परेशानी होती है.
कितने तैयार अभिभावक
अभिभावकों के साथ-साथ बच्चों के लिए भी ऑनलाइन पढ़ाने की व्यवस्था बिल्कुल नई है. न अभिभावक और न ही बच्चे इसे पूरी तरह से स्वीकार कर पा रहे हैं. अधिकतर अभिभावक इसके लिए मानसिक और आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं.
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जब ग्रामीण इलाकों के बच्चों से ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर बात की गई तो उन्होंने कहा कि उनके पास तो फोन ही नहीं है, इसलिए घर पर बैठे हुए हैं. वैसे शहरी इलाकों में बच्चों के पास स्मार्ट फोन तो हैं, लेकिन वहां भी नेटवर्क का मिलना एक बड़ी समस्या है.
संकट में भविष्य
वहीं शिक्षकों का कहना है कि उन्होंने बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाना शुरू किया है. कई बच्चे क्लास अटेंड भी कर रहे हैं. साथ ही जो बच्चे ऑनलाइन क्लास ज्वाइन नहीं कर सकते, उनके लिए यूट्यूब पर वीडियो बनाकर भी डाले जा रहे हैं, ताकि बाद में ही सही बच्चे उसे देखकर सीख सकें. लेकिन जिनके पास फोन ही नहीं है उनके लिए तो ये सब दूर के ढोल समान है. ऐसे में शिक्षकों को भी चिंता इस बात की है कि अन्य बच्चों के भविष्य का क्या होगा?
पहाड़ी पर जाकर मिलता है नेटवर्क
बांसवाड़ा क्षेत्र पहाड़ी होने के साथ-साथ वन क्षेत्र भी है. जहां अब तक एक बड़ा आबादी इलाका मोबाइल नेटवर्क के दायरे में नहीं आ पाया है. गांवों में हालात और भी विकट कहे जा सकते हैं जहां पहाड़ के टॉप पर या फिर ऊंचाई वाले इलाकों पर बामुश्किल सिग्नल पकड़ पाते हैं. इस कारण जिन परिवार के पास एंड्राइड मोबाइल हैं उनके बच्चे भी इसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं.
शिक्षा विभाग के आंकड़े बताते हैं कि जिले में माध्यमिक और प्रारंभिक विभाग के अधीन लगभग ढाई हजार स्कूल संचालित हैं और दोनों में ही 3 लाख 70 हजार बच्चे पढ़ते हैं. इनमें से 10 प्रतिशत बच्चे भी ऑनलाइन एजुकेशन से नहीं जुड़ पा रहे हैं. जिले की मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी एंजेलिका पलात भी स्वीकार करती हैं कि आदिवासी इलाकों में बेहद गरीबी है, ऐसे में वे एंड्राइड मोबाइल का खर्च उठा पाने में सक्षम नहीं है. बामुश्किल अगर किसी के पास फोन है, तो नेटवर्क एक बड़ी समस्या है..
21.76 लोगों के पास ही इंटरनेट सुविधा
ओवरऑल देशभर की बात करें तो लोकल सर्कल नाम की एक संस्था के हालिया सर्वे में 203 जिलों के 23 हज़ार लोगों ने हिस्सा लिया था.. जिनमें से 43% लोगों ने कहा कि बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस के लिए उनके पास कम्प्यूटर, टेबलेट, प्रिंटर, राउटर जैसे उपकरण नहीं हैं. वहीं अगर बात की जाए ग्रामीण इलाकों की तो यहां प्रति सौ लोगों पर केवल 21.76 व्यक्ति के पास ही इंटरनेट सुविधा उपलब्ध है. फिर बाकी के छात्र कहां पढ़ेंगे?
वहीं भारत में इंटरनेट की स्पीड एक बड़ी समस्या है. ब्रॉडबैंड स्पीड विश्लेषण करने वाली कंपनी ऊकला की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2019 में भारत मोबाइल इंटरनेट स्पीड के मामले में 128वें स्थान पर रहा. भारत में डाउनलोड स्पीड 11.18 एमबीपीएस और अपलोड स्पीड 4.38 एमबीपीएस रही. ऐसे में वीडियो क्लासेज लेते समय इंटरनेट स्पीड का कम ज्यादा होना समस्या पैदा करता है.
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ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट स्पीड की हालत और भी बुरी है, बिजली चले जाने पर इंटरनेट या तो बंद हो जाता है या फिर 2जी की स्पीड पर कुछ देख सुन नहीं सकते. इसके अलावा देश के बहुतायत विद्यार्थियों के पास ऑनलाइन पढ़ने और पढ़ाने के संसाधन ही उपलब्ध नहीं हैं. ऐसी स्थितियों में कैसे ऑनलाइन शिक्षा दी या ली जा सकती है.
विद्यार्थियों का स्वास्थ्य प्रभावित
वर्तमान में ऑनलाइन कक्षाएं चार से पांच घंटे तक चलाई जा रही हैं. उसके बाद शिक्षार्थी को गृहकार्य के नाम पर एसाइनमेंट और प्रोजेक्ट दिए जा रहे हैं. जिसका औसत यदि देखा जाये तो एक विद्यार्थी और शिक्षक दोनों लगभग आठ से नौ घंटे ऑनलाइन व्यतीत कर रहे हैं. जो उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति के लिए घातक है. छोटे बच्चों के लिए तो यह और भी अधिक नुकसानदेह है.
क्या हो समाधान
जिनके पास स्मार्टफोन नहीं है और जो इंटरनेट एक्सेस नहीं कर सकते हैं, स्थानीय प्रशासन की तरफ से ऐसे परिवारों के बच्चों को छोटा-मोटा एजुकेशनल किट बनाकर देना चाहिए, जो उनके घर में जाकर दिए जाएं. इसकी भाषा आसान हो, जिसमें गणित या विज्ञान जैसे विषयों की आसान वर्कशीट्स हो.
खैर मुसीबतों से सीख लेना और परिस्थिति के अनुरूप खुद को ढालते हुए आगे बढ़ना इंसान की फितरत रही है. हर मुसीबत और संकट चुनौती लेकर आता है. किसी बड़े संकट के बाद हर क्षेत्र में बदलाव भी जरूर होता है. लेकिन हाल फिलहाल तो डिजिटल भारत के लोगों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई किसी सपने से कम नहीं है.