बांसवाड़ा. जिले में त्रिपुरा सुंदरी मंदिर स्थित है. जो अपने प्राचानी इतिहास के लिए जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि अगर इस मंदिर में कोई मन्नत मांगी जीती है तो वह शीघ्र पूरी होती है. चलिए जानते हैं इस मंदिर का इतिहास...
त्रिपुरा सुंदरी मंदिर (Tripura Sundari Temple) का एक शिलालेख से अनुमान है कि मंदिर सम्राट कनिष्क के काल से पूर्व का है. यहां आसपास गठपोली नामक महानगर था. जिसे दुर्गापुर कहते थे. इस नगर का शासक नृसिंह शाह था. इसी लेख में त्रिउरारी शब्द का उल्लेख है इस मंदिर के आसपास तीन दुर्ग थे. जिनके नाम थे गीतापुरी, शिवपुरी और विष्णुपुरी था. इन तीनों दुर्गों के बीच में मंदिर होने से इसे त्रिपुरा कहा जाने लगा. रियासत काल में बांसवाड़ा, डुंगरपुर, मालवा, मारवाड़, गुजरात के राजा और महाराजा भी त्रिपुरा के उपासक रहे थे.
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बांसवाड़ा से करीब 20 किलो मीटर की दूरी पर स्थित तलवाड़ा पंचायत समिति के उमराई गांव के समीप घने सागवान के जंगलों के बीच निर्मित प्राचीन मंदिर में मां भगवती की भव्य काले पत्थर सिंह पर सवार अष्टादश भूजा वाली मूर्ति है. जिसको लोग त्रिपुरा सुंदरी, तरतई माता और त्रिपुरा महालक्ष्मी के नाम से संबोधित करते हैं. इस मंदिर की गिनती प्राचीन शक्तिपीठों में होती है. त्रिपुरा सुंदरी अतिरमणीय जागृत दर्शनीय स्थल विद्यमान है. लोगों की मान्यता है कि मां त्रिपुरा सर्वमंगला, मंगलमयी और समस्त मंगलों की खान है. इस साथ ही मंदिर के दर्शन मात्र से भक्त चतुवर्ग को प्राप्त होता है.
मां भगवती सिंह वाहिनी हैं. उनकी अष्टादश भुजा हैं और भुजाओं में अष्टा दश आयुध है. माता के चरणों के निचे श्रीयंत्र बना हुआ है. साथ ही मूर्ति के पृष्ठ भूमि में भैरव, देव दानव संग्राम और देवी के शस्त्रास्त्र अंकित है. स्वयं देवी सिंह वाहिनी होते हुए भी सिंह के पीठ के ऊपर रखे हुए कमलासन पर विराजमान है. इस प्रकार से आधार में कमल व एक तांत्रिक यंत्र है. मंदिर की तोड़फोड़ और जीर्णोद्धार के बारे में जानकार बताते हैं कि हमारे कई प्राचीन मंदिर महमुद गजनवी की ओर से नष्ट किया गया था. मेहमुद गजनवी ने सोमनाथ और पाटण का रास्ता बांसवाड़ा होकर ही था. जिसके चलते गजनवी ने सोमनाथ के रास्ते में आने वाले सभी मंदिरों को नष्ट कर दिया था.
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मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया: तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी की प्ररेणा से पंचाल समाज और अंय धनि मानी व्यक्तियों के सहयोग ने मंदिर का संपूर्ण जीर्णोद्धार और चारों भवन निर्माण करवाया गया. मंदिर पर दर्शनार्थियों के ठहरने के लिये पंचाल समाज की ओर से धर्मशाला और भोजनशाला का निर्माण भी करवाया गया है. वर्तमान में मंदिर की सम्पूर्ण व्यवस्था पंचाल समाज चौदह चौखरों की ओर से की जा रही है.
मंदिर की व्यवस्था के लिए व्यवस्थापक मंडल का निर्माण: मंदिर की व्यवस्था के लिये मंदिर का व्यवस्थापक मंडल का निर्माण किया गया है. जिसके वर्तमान में पंचाल अध्यक्ष और उनकी कार्यकारणी की ओर से श्रद्धालुओं की सुविधाओं का विस्तार और सुलभ दर्शन करवाने के उद्देश्य विस्तार किया जा रहा है. जीर्णोद्वार का कार्य समिति के गंगाराम पंचाल ने बताया कि पहला शिलापूजन 2 जून 2011 को करवाया गया था. अब तक शिलापूजन यजमानों ने लाभ प्राप्त किया है. प्रतिदिन प्रातःकालीन और संध्या आरती भोग और अखंड दीपक जलता है. मां त्रिपुरा का सौंदर्य और आभा के आकर्षण से दर्शनार्थी मंत्र मुग्ध हो कर घंटों मां भगवती की आराधना में लीन रहता है.
वर्षों से अनवरत अनुष्ठान जारी: यहां किसी समय सघन वन था. लोगों को मंदिर तक जाने में जंगली जानवरों का भय बना रहता था. वही मंदिर तक पहुंचने का मार्ग कण्ठ काकीर्ण था. उन वर्षों में भी 1954 से मां के दरबार में नवरात्रि के नौ दिनों तक बाह्मण महासभा का पंडित लक्ष्मीनारायण द्विवेदी अनवरत अनुष्ठान करते आ रहे हैं.
श्रम से सत्ता का सफर दिलाती है मैया तलवाड़ा: मैया त्रिपुरा सुदंरी की पूजा अर्चना प्राचीनकाल से ही राजा महाराज करते आ रहे हैं. जिसे मैया का आशीर्वाद हो जाता है उसे साम्राज्य प्राप्त हो जाता है. मैया त्रिपुरा आम आदमी को भी साम्राज्य देती हैं. प्रत्यक्ष उदाहरण है क्षेत्र के जनप्रतिनिधि. नवरात्रि को नियमित मैया को धोक लगाते आ रहे हैं. जिन्होंने श्रमिक से आज बंसवाड़ा विधानसभा के विधायक दो बार रह चुके हैं और अब भी अनवरत मां को धोक लगाना नहीं भूलते हैं. इससे यही सिद्ध होता है कि मैया त्रिपुरा आम आदमी को भी साम्राज्य देती है. साथ ही ऐसा ही एक और उदाहरण कस्बे के समाजसेवी और मार्बल व्यवसायी बालुभाई त्रिवेदी का है. जो विगत कई वर्षों से नियमित मां के दर्शन करने आ रहे हैं. जिन पर मातारानी की पूर्ण कृपा है. मार्बल व्यवसायी अग्रवाल परिवार की ओर से भी नवरात्रि के अष्टमी पर आने वाले भक्तों की खूब सेवा करते हैं. श्रद्वालुओं को फलाहार और खाने की व्यवस्था भी की जाती है.
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तैरतई माता के नाम से विख्यात है मंदिर: त्रिपुरा सुंदरी मंदिर देश के धार्मिक पर्यटक मानचित्र पर अपना विशिष्ट स्थान दर्ज करवा चुका है. जनजाति क्षेत्र के लोगों में यह दैवी पूर्व में तेरतई माता के नाम से विख्यात थी. ऐसा माना जाता था कि देवी से कही गई बात शीघ्र पूरी हो जाती है. भक्तों की मांग का तुरंत परिणाम मिलने के कारण ही देवी मां को तैरतई माता के रूप में पूजा जाने लगा. आज यहीं तैरतई माता राजनेताओं की शरणस्थली बन चुकी है. यू तो संकट मोचन के रूप में हनुमान ख्यात हैं, लेकिन राजनैतिक क्षेत्र में यह देवी मां राजनेताओं की संकट मोचन देवी के रूप में ख्यात हो चुकी है.
राजनेता लगाते हैं मां के दरबार में अर्जी: पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी से लेकर वसुधंरा राजे तक इस देवी की शरण में आए हैं. वसुधरा राजे ने तो अपने पाचं वर्ष के शासनकाल में इस देवी मां के मंदिर में चालीस से भी अधिक बार पूजा और अनुष्ठान करवाया था. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस मंदिर में आ चुके हैं. राजनेताओं की इस संकट मोचन देवी मंदिर का उद्धार भी राजनेताओं ने करवाया है. पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने जहां मंदिर के लिए जगह मुहैया करवाई तो वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस मंदिर के विकास के लिए 7 करोड़ 54 लाख रुपए की योजना बनाई. फलस्वरूप तैरतई माता अब त्रिपुरा सुंदरी के नाम से विशाल पर्यटक धार्मिक स्थल का रूप ले चुकी है.