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Special: इंजीनियरिंग कॉलेज में जनजाति छात्रों का आरक्षण बना संकट, हर साल खाली रह जाती हैं सीटें

बांगड़ अंचल के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग की ओर से प्रवेश में जनजातीय छात्रों के लिए लागू 50 फीसदी का आरक्षण कॉलेज के लिए मुसीबत का सबब बन गया है. जनजाति वर्ग के आरक्षित सीटों पर बमुश्किल इक्का-दुक्का एडमिशन ही होते हैं. बाकी सीटें खाली ही रह जाती हैं. जनजाति विभाग न तो सीटें छोड़ने को तैयार हैं और न ही इन सीटों पर हुए प्रवेश की फीस ही जमा करता है. ऐसे में कॉलेज आर्थिक संकट से जूझ रहा है.

Seats remain vacant due to reservation
आरक्षण के चलते खाली रह जा रहीं सीटें
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Published : Oct 6, 2020, 8:47 PM IST

बांसवाड़ा. बांगड़ अंचल के एकमात्र सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज की जान जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग में अटक गई है. महाविद्यालय के भवन निर्माण के साथ विभाग की ओर से प्रवेश में 50 फीसदी सीटों पर जनजातीय छात्रों के आरक्षण की शर्त के कारण महाविद्यालय संकट में आता जा रहा है. जनजाति विभाग न तो आरक्षित सीटों की फीस जमा करा रहा है और नहीं सीटें छोड़ने को ही तैयार है.

आरक्षण के चलते खाली रह जा रहीं सीटें

इससे इंजीनियरिंग कॉलेज को नुकसान हो रहा है. पिछले 4 साल से जनजाति वर्ग की आरक्षित सीटें खाली चल रहीं हैं. हालत यह है कि इस विसंगति के कारण कॉलेज प्रबंधन के पास स्टाफ की तनख्वाह का फंड भी पर्याप्त नहीं है. हालांकि कॉलेज प्रशासन की ओर से इस संबंध में विभाग से संपर्क किया जा रहा है लेकिन अब तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है. जबकि इस शैक्षणिक सत्र की प्रवेश प्रक्रिया भी अंतिम चरण में है. सरकार की ओर से आरक्षित सीटों पर शीघ्र ही कोई फैसला न आने पर कॉलेज के बंद होने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता.

Tota of students in engineering college
इंजीनियरिंग कॉलेज में छात्रों का टोटा

यह भी पढ़ें: ऑनलाइन शिक्षा हो आसान, शिक्षकों ने बनाया 'पी टीचर' मोबाइल एप

राजकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय की ओर से संचालित 4 सिविल, इलेक्ट्रिक और मैकेनिकल इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस ब्रांच में 54-54 सीटे हैं अर्थात प्रतिवर्ष 216 सीटों पर प्रवेश दिया जा सकता है. विसंगति यह है कि वर्ष 2016 में कॉलेज खुलने के साथ ही जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग अर्थात टीएडी की ओर से 50 फीसदी सीटें जनजाति वर्ग के विद्यार्थियों के लिए आरक्षित कर दी गईं. 5 साल के आंकड़े देखें तो जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित सीटों में से कभी 10% सीटें भी फुल नहीं हो पाईं और आरक्षित सीटों में से 90% सीटें खाली ही चल रहीं हैं.

The library was deserted in college
कॉलेज में सूनी पड़ी लाइब्रेरी

प्रतिवर्ष प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या पर नजर डालें तो वर्ष 2019- 20 के दौरान 216 में से 32 विद्यार्थियों ने ही प्रवेश लिया हैं, वहीं वर्ष 2018- 19 के आंकड़ों के अनुसार 42 विद्यार्थियों का प्रवेश हुआ है. वर्ष 2017-18 के दरमियान केवल 26 विद्यार्थियों का प्रथम वर्ष में प्रवेश हो पाया है. यह प्रवेश भी अनारक्षित सीटों पर हो पाए जबकि जनजाति वर्ग के आरक्षित सीटों पर इक्का-दुक्का एडमिशन के अलावा किसी भी विद्यार्थी ने प्रवेश नहीं लिया.

Silence in the lab too
लैब में भी सन्नाटा

यह भी पढ़ें: झारखंड:इंजीनियर भाइयों ने स्टार्टअप इंडिया से प्रेरित होकर किया अविष्कार

यह स्थिति भी तत्कालीन प्राचार्य डॉ. शिवलाल के अथक प्रयासों की वजह से रही. हांलाकि प्राचार्य डॉ. बीएल गुप्ता ने कमान संभालने के साथ अपनी टीम के साथ इस दिशा में प्रयास शुरू किए और इस वर्ष अब तक चारों ही ब्रांच में 62 विद्यार्थियों का प्रवेश हो चुके हैं लेकिन फिर भी आरक्षित सीटों पर जनजाति वर्ग के छात्रों के प्रवेश नगण्य कहे जा सकते हैं. सूत्रों का कहना है कि राज्य स्तरीय मेरिट के अनुसार प्रवेश किया जाता है, लेकिन बांसवाड़ा कॉलेज की आधी सीटें आरक्षित होने के कारण विद्यार्थी इस कॉलेज को वरीयता में नहीं रखते.

वहीं टीएडी की ओर से खाली सीटों को छोड़ा भी नहीं जा रहा है. इसके चलते हर वर्ष 50 प्रतिशत सीटें खाली ही रह जाती हैं. प्राचार्य डॉ. गुप्ता के अनुसार चार्ज संभालने के बाद वे उदयपुर गए और जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग के आयुक्त के समक्ष इस विसंगति को रखा. कहा कि टीएडी जनजाति भर के विद्यार्थियों की फीस जमा करा दे और जो भी रिक्त सीटें बच रही हैं, उन्हें ओपेन करवा दे. इससे कॉलेज की सभी सीटों पर प्रवेश संभव हो सकेगा और कॉलेज आर्थिक संकट से उबर पाएगा. इस बारे में जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग की उपायुक्त रेखा रोत का कहना था कि यह मामला नीतिगत है और सरकार ही कोई निर्णय कर सकती है.

बांसवाड़ा. बांगड़ अंचल के एकमात्र सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज की जान जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग में अटक गई है. महाविद्यालय के भवन निर्माण के साथ विभाग की ओर से प्रवेश में 50 फीसदी सीटों पर जनजातीय छात्रों के आरक्षण की शर्त के कारण महाविद्यालय संकट में आता जा रहा है. जनजाति विभाग न तो आरक्षित सीटों की फीस जमा करा रहा है और नहीं सीटें छोड़ने को ही तैयार है.

आरक्षण के चलते खाली रह जा रहीं सीटें

इससे इंजीनियरिंग कॉलेज को नुकसान हो रहा है. पिछले 4 साल से जनजाति वर्ग की आरक्षित सीटें खाली चल रहीं हैं. हालत यह है कि इस विसंगति के कारण कॉलेज प्रबंधन के पास स्टाफ की तनख्वाह का फंड भी पर्याप्त नहीं है. हालांकि कॉलेज प्रशासन की ओर से इस संबंध में विभाग से संपर्क किया जा रहा है लेकिन अब तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है. जबकि इस शैक्षणिक सत्र की प्रवेश प्रक्रिया भी अंतिम चरण में है. सरकार की ओर से आरक्षित सीटों पर शीघ्र ही कोई फैसला न आने पर कॉलेज के बंद होने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता.

Tota of students in engineering college
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राजकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय की ओर से संचालित 4 सिविल, इलेक्ट्रिक और मैकेनिकल इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस ब्रांच में 54-54 सीटे हैं अर्थात प्रतिवर्ष 216 सीटों पर प्रवेश दिया जा सकता है. विसंगति यह है कि वर्ष 2016 में कॉलेज खुलने के साथ ही जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग अर्थात टीएडी की ओर से 50 फीसदी सीटें जनजाति वर्ग के विद्यार्थियों के लिए आरक्षित कर दी गईं. 5 साल के आंकड़े देखें तो जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित सीटों में से कभी 10% सीटें भी फुल नहीं हो पाईं और आरक्षित सीटों में से 90% सीटें खाली ही चल रहीं हैं.

The library was deserted in college
कॉलेज में सूनी पड़ी लाइब्रेरी

प्रतिवर्ष प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या पर नजर डालें तो वर्ष 2019- 20 के दौरान 216 में से 32 विद्यार्थियों ने ही प्रवेश लिया हैं, वहीं वर्ष 2018- 19 के आंकड़ों के अनुसार 42 विद्यार्थियों का प्रवेश हुआ है. वर्ष 2017-18 के दरमियान केवल 26 विद्यार्थियों का प्रथम वर्ष में प्रवेश हो पाया है. यह प्रवेश भी अनारक्षित सीटों पर हो पाए जबकि जनजाति वर्ग के आरक्षित सीटों पर इक्का-दुक्का एडमिशन के अलावा किसी भी विद्यार्थी ने प्रवेश नहीं लिया.

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लैब में भी सन्नाटा

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यह स्थिति भी तत्कालीन प्राचार्य डॉ. शिवलाल के अथक प्रयासों की वजह से रही. हांलाकि प्राचार्य डॉ. बीएल गुप्ता ने कमान संभालने के साथ अपनी टीम के साथ इस दिशा में प्रयास शुरू किए और इस वर्ष अब तक चारों ही ब्रांच में 62 विद्यार्थियों का प्रवेश हो चुके हैं लेकिन फिर भी आरक्षित सीटों पर जनजाति वर्ग के छात्रों के प्रवेश नगण्य कहे जा सकते हैं. सूत्रों का कहना है कि राज्य स्तरीय मेरिट के अनुसार प्रवेश किया जाता है, लेकिन बांसवाड़ा कॉलेज की आधी सीटें आरक्षित होने के कारण विद्यार्थी इस कॉलेज को वरीयता में नहीं रखते.

वहीं टीएडी की ओर से खाली सीटों को छोड़ा भी नहीं जा रहा है. इसके चलते हर वर्ष 50 प्रतिशत सीटें खाली ही रह जाती हैं. प्राचार्य डॉ. गुप्ता के अनुसार चार्ज संभालने के बाद वे उदयपुर गए और जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग के आयुक्त के समक्ष इस विसंगति को रखा. कहा कि टीएडी जनजाति भर के विद्यार्थियों की फीस जमा करा दे और जो भी रिक्त सीटें बच रही हैं, उन्हें ओपेन करवा दे. इससे कॉलेज की सभी सीटों पर प्रवेश संभव हो सकेगा और कॉलेज आर्थिक संकट से उबर पाएगा. इस बारे में जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग की उपायुक्त रेखा रोत का कहना था कि यह मामला नीतिगत है और सरकार ही कोई निर्णय कर सकती है.

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