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Exclusive: देश के दूसरे जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति से खास बातचीत, लेटेस्ट सिलेबस के साथ ऑनलाइन एक्जाम सिस्टम ने बनाई पहचान

बांसवाड़ा में स्थित गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय प्रदेश के राष्ट्रीय क्षितिज पर अपना नाम दर्ज करवा चुका है. इस विश्वविद्यालय में 3 साल तक कुलपति रहने के बाद प्रोफेसर कैलाश सोडानी शनिवार को सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं. इस मौके पर ईटीवी भारत ने प्रोफेसर कैलाश सोडानी से खास बातचीत की.

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जनजाति विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोडानी ईटीवी भारत की खास बातचीत
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Published : Jul 18, 2020, 2:47 PM IST

बांसवाड़ा. राजस्थान के जनजाति बहुल बांसवाड़ा में साल 2016 में गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय प्रदेश के राष्ट्रीय क्षितिज पर अपना नाम दर्ज करा चुका है. अपने नए-नए पाठ्यक्रम और तकनीक के इस्तेमाल के जरिए ये विश्वविद्यालय किसी परिचय का मोहताज नहीं रहा. लगातार 3 साल तक कुलपति रहने के बाद प्रोफेसर कैलाश सोडानी शनिवार को महज कुछ घंटों बाद सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं. ईटीवी भारत ने अपने कार्यकाल के दौरान उनके सपनों और उपलब्धियों को लेकर प्रो. सोडानी से विशेष बातचीत की.

जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोडानी ईटीवी भारत की खास बातचीत

एक सवाल पर प्रो. सोडानी ने कहा कि साल 2017 में प्रभार संभालने के बाद सबसे पहले शोध पर फोकस रखा और पीएचडी शुरू करवाई. आज हमारे यहां 250 विद्यार्थी पीएचडी कर रहे हैं. यूनिवर्सिटी के अधीन आने वाले जनजाति बहुल प्रतापगढ़, डूंगरपुर और बांसवाड़ा के महाविद्यालयों में नए मापदंड और आईटी का उपयोग करते हुए प्रदेश में सबसे पहले ऑनलाइन एग्जाम सिस्टम अपनाया गया. उसी का नतीजा है कि आज हम सबसे पहले रिजल्ट जारी कर पाते हैं.

पढ़ें- बांसवाड़ा में कोरोना के 2 नए पॉजिटिव केस, संक्रमितों की कुल संख्या हुई 111

इस दौरान उन्होंने कहा कि पेपर ऑनलाइन जारी करने के साथ मार्क रिसीविंग में भी यही प्रोसेस अपनाया जाता है. सबसे अहम बात ये है कि हमने सबसे लेटेस्ट कोर्स तैयार किए. पिछड़ा इलाका होने के कारण शैक्षणिक वातावरण बनाना हमारी सबसे पहली प्राथमिकता थी. हमने इन तीनों ही दिनों में समसामयिक विषयों पर कई राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया. देश ही नहीं विदेशों से भी कई विद्वान लोगों का यहां आना जाना शुरू हुआ. यहां आने के बाद ही उनके मन में बांसवाड़ा की जो छवि थी, हम दूर करने में कामयाब हो पाए.

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गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय

शैक्षणिक कार्यों के साथ हमने खेलकूद को जरिया बनाया और इन तीनों जिलों के 143 कॉलेज के बीच इंटर कॉलेज खेलकूद शुरू करवाएं, यहां तक की इंटर यूनिवर्सिटी तक हमारे खिलाड़ी पहुंच गए. यूनिवर्सिटी के बांसवाड़ा ट्रांसफर होने के महज 3 साल में हम दीक्षांत समारोह का आयोजन कर पाए, जोकि किसी भी विश्वविद्यालय के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती है.

एक सवाल पर देश के जाने-माने शिक्षाविद ने कहा कि यूनिवर्सिटी को अपने नए भवन में शिफ्ट कराने का सपना अधूरा रह गया. वैसे अप्रैल तक शिफ्ट कराने की योजना थी, लेकिन कोरोना के कारण कामकाज बंद रहा और काम अधूरा रह गया. इस कारण हम बिल्डिंग ट्रांसफर नहीं करवा पाए.

वहीं, अपने इनोवेशन के बारे में बताते हुए प्रो. सोडानी ने कहा कि ऑनलाइन एग्जाम सिस्टम के अलावा हमने यहां स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार अपने खुद के पाठ्यक्रम तैयार किए. यहां तक की संभवत देश में पहली बार किसी यूनिवर्सिटी की ओर से हिंदी में एमबीए का पाठ्यक्रम चलाया जा रहा है.

पढ़ें- बांसवाड़ा: बेटे ने संपत्ति में हिस्सा मांगा तो मां ने उतार दिया मौत के घाट, अब पुलिस की गिरफ्त में

उन्होंने आशा जताई कि माही डैम के बाद ये यूनिवर्सिटी क्षेत्र के विकास में एक अहम भूमिका निभाएगी. विकास के लिए सबसे पहले शिक्षा के प्रति वातावरण जरूरी होता है और इस दिशा में लगातार काम किया जा रहा है. देश के शैक्षिक ढांचे पर प्रोफेसर ने कहा कि हमारा एजुकेशन सिस्टम अन्य देशों के मुकाबले बेहतर है. बस फर्क इतना है कि कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थान अपने प्रभाव के जरिए मापदंड अपने अनुरूप तैयार करते हैं. इसी करण हम उनके सामने नहीं टिक पाते.

बता दें कि साल 2012 में ये यूनिवर्सिटी राजीव गांधी जनजाति विश्वविद्यालय के नाम से उदयपुर में एक कमरे में शुरू की गई थी. साल 2016 में तत्कालीन राज्य सरकार ने इसका नाम गोविंद गुरु जनजाति विश्वविद्यालय करते हुए मुख्यालय बांसवाड़ा कर दिया. साथ ही विश्व विद्यालय भवन के निर्माण के लिए करीब 150 बीघा जमीन अंकित करते हुए ₹2 करोड़ 50 लाख स्वीकृत कर दिए. नई बिल्डिंग का निर्माण कार्य लगभग अंतिम चरण में है.

बांसवाड़ा. राजस्थान के जनजाति बहुल बांसवाड़ा में साल 2016 में गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय प्रदेश के राष्ट्रीय क्षितिज पर अपना नाम दर्ज करा चुका है. अपने नए-नए पाठ्यक्रम और तकनीक के इस्तेमाल के जरिए ये विश्वविद्यालय किसी परिचय का मोहताज नहीं रहा. लगातार 3 साल तक कुलपति रहने के बाद प्रोफेसर कैलाश सोडानी शनिवार को महज कुछ घंटों बाद सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं. ईटीवी भारत ने अपने कार्यकाल के दौरान उनके सपनों और उपलब्धियों को लेकर प्रो. सोडानी से विशेष बातचीत की.

जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोडानी ईटीवी भारत की खास बातचीत

एक सवाल पर प्रो. सोडानी ने कहा कि साल 2017 में प्रभार संभालने के बाद सबसे पहले शोध पर फोकस रखा और पीएचडी शुरू करवाई. आज हमारे यहां 250 विद्यार्थी पीएचडी कर रहे हैं. यूनिवर्सिटी के अधीन आने वाले जनजाति बहुल प्रतापगढ़, डूंगरपुर और बांसवाड़ा के महाविद्यालयों में नए मापदंड और आईटी का उपयोग करते हुए प्रदेश में सबसे पहले ऑनलाइन एग्जाम सिस्टम अपनाया गया. उसी का नतीजा है कि आज हम सबसे पहले रिजल्ट जारी कर पाते हैं.

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इस दौरान उन्होंने कहा कि पेपर ऑनलाइन जारी करने के साथ मार्क रिसीविंग में भी यही प्रोसेस अपनाया जाता है. सबसे अहम बात ये है कि हमने सबसे लेटेस्ट कोर्स तैयार किए. पिछड़ा इलाका होने के कारण शैक्षणिक वातावरण बनाना हमारी सबसे पहली प्राथमिकता थी. हमने इन तीनों ही दिनों में समसामयिक विषयों पर कई राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया. देश ही नहीं विदेशों से भी कई विद्वान लोगों का यहां आना जाना शुरू हुआ. यहां आने के बाद ही उनके मन में बांसवाड़ा की जो छवि थी, हम दूर करने में कामयाब हो पाए.

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गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय

शैक्षणिक कार्यों के साथ हमने खेलकूद को जरिया बनाया और इन तीनों जिलों के 143 कॉलेज के बीच इंटर कॉलेज खेलकूद शुरू करवाएं, यहां तक की इंटर यूनिवर्सिटी तक हमारे खिलाड़ी पहुंच गए. यूनिवर्सिटी के बांसवाड़ा ट्रांसफर होने के महज 3 साल में हम दीक्षांत समारोह का आयोजन कर पाए, जोकि किसी भी विश्वविद्यालय के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती है.

एक सवाल पर देश के जाने-माने शिक्षाविद ने कहा कि यूनिवर्सिटी को अपने नए भवन में शिफ्ट कराने का सपना अधूरा रह गया. वैसे अप्रैल तक शिफ्ट कराने की योजना थी, लेकिन कोरोना के कारण कामकाज बंद रहा और काम अधूरा रह गया. इस कारण हम बिल्डिंग ट्रांसफर नहीं करवा पाए.

वहीं, अपने इनोवेशन के बारे में बताते हुए प्रो. सोडानी ने कहा कि ऑनलाइन एग्जाम सिस्टम के अलावा हमने यहां स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार अपने खुद के पाठ्यक्रम तैयार किए. यहां तक की संभवत देश में पहली बार किसी यूनिवर्सिटी की ओर से हिंदी में एमबीए का पाठ्यक्रम चलाया जा रहा है.

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उन्होंने आशा जताई कि माही डैम के बाद ये यूनिवर्सिटी क्षेत्र के विकास में एक अहम भूमिका निभाएगी. विकास के लिए सबसे पहले शिक्षा के प्रति वातावरण जरूरी होता है और इस दिशा में लगातार काम किया जा रहा है. देश के शैक्षिक ढांचे पर प्रोफेसर ने कहा कि हमारा एजुकेशन सिस्टम अन्य देशों के मुकाबले बेहतर है. बस फर्क इतना है कि कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थान अपने प्रभाव के जरिए मापदंड अपने अनुरूप तैयार करते हैं. इसी करण हम उनके सामने नहीं टिक पाते.

बता दें कि साल 2012 में ये यूनिवर्सिटी राजीव गांधी जनजाति विश्वविद्यालय के नाम से उदयपुर में एक कमरे में शुरू की गई थी. साल 2016 में तत्कालीन राज्य सरकार ने इसका नाम गोविंद गुरु जनजाति विश्वविद्यालय करते हुए मुख्यालय बांसवाड़ा कर दिया. साथ ही विश्व विद्यालय भवन के निर्माण के लिए करीब 150 बीघा जमीन अंकित करते हुए ₹2 करोड़ 50 लाख स्वीकृत कर दिए. नई बिल्डिंग का निर्माण कार्य लगभग अंतिम चरण में है.

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