बांसवाड़ा. देश के दूसरे जनजातीय विश्वविद्यालय, गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय बांसवाड़ा की कमान प्रो. आईवी त्रिवेदी ने संभाल ली हैं. पर्यटन क्षेत्र में स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार की संभावना तलाशने के साथ-साथ उनका सपना है कि आदिवासी क्षेत्र की अच्छी परंपरा और प्रथाओं को नई पहचान दिलाई जाए. खासकर प्राचीन काल से आर्थिक तौर पर एक दूसरे की मदद के लिए प्रचलित नोतरा प्रथा को अनुसंधान के बाद बैंकिंग सिस्टम का मॉडल बनाने की दिशा में कदम उठाए जाए.
विश्वविद्यालय के नए कुलपति प्रो. त्रिवेदी ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान अपने सपने और अपनी प्राथमिकताओं के बारे में विस्तार से बताया. सरकार द्वारा विश्वविद्यालय की जिम्मेदारी दिए जाने को अपना सौभाग्य मानते हुए उन्होंने कहा कि उनकी प्राथमिक शिक्षा बांसवाड़ा जिले में ही हुई है. ऐसे में यहां की शैक्षिक दृष्टि से क्या समस्याएं हैं, वे भली भांति वाकिफ है.
आदिवासी अंचल के विकास के लिए उच्च शिक्षा की भूमिका बेहद अहम कही जा सकती है, लेकिन दुर्भाग्य है कि ग्रॉस लेवल पर उच्च शिक्षा के एनरोलमेंट का अनुपात बहुत कम है. इसे बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय स्तर पर अभियान चलाया जाएगा ताकि ज्यादा से ज्यादा लड़के और लड़कियां कॉलेज की दहलीज तक पहुंच पाए.
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हमारे एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के कुलपति रहने के दौरान उन्होंने बांसवाड़ा पर विशेष ध्यान दिया और बड़ी संख्या में कॉलेज खुलवाएं. सबसे बड़ी समस्या यह थी कि कॉलेज और परीक्षा केंद्र के बीच काफी दूरी होने के कारण बड़ी संख्या में लड़कियां परीक्षा नहीं दे पाती थी. हमने इस दिशा में कदम उठाते हुए कॉलेजों में अधिकाधिक परीक्षा केंद्र खुलवा कर उनकी समस्या का समाधान करने का प्रयास किया.
प्रदेश के पहले जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति ने बताया कि बच्चों को रोजगार से जोड़ने के लिए oriented base (ओरिएंटेंड बेस) पाठ्यक्रम लाए जाएंगे. स्थानीय इंडस्ट्रीज और एकेडमिक इंस्टीट्यूट को एक मंच पर लाकर इंडस्ट्रीज की मांग के अनुसार कोर्स तैयार कराए जाएंगे. प्रो. त्रिवेदी ने बताया कि बांसवाड़ा जिले में पर्यटन क्षेत्र में व्यापक स्तर पर रोजगार की संभावनाएं है. खासकर रूरल, धार्मिक, प्राकृतिक और मेडिकल टूरिज्म में संभावनाओं को तलाशा जाना चाहिए.
स्थानीय परंपराओं के संबंध में प्रो. त्रिवेदी ने बताया कि आपस में एक दूसरे की आर्थिक मदद के लिए यहां सदियों से नोतरा प्रथा चल रही है. इसमें जिस किसी भी व्यक्ति को आर्थिक मदद की दरकार होती है वह अपने मिलने वालों को चावल से अपने घर आमंत्रित करता है. आमंत्रित व्यक्ति उसके घर पहुंच कर अपनी क्षमता के अनुसार उसकी आर्थिक मदद करता है. जिसका बकायदा लेखा जोखा रखा जाता है और जब भी कोई दूसरा नोतरा करता है तो उसे बढ़ाकर आर्थिक मदद दी जाती है. वाकई एक दूसरे की मदद के लिए यह बहुत अच्छी परंपरा है. इस प्रथा को ट्राइबल बैंकिंग कंसेप्ट के आधार पर अनुसंधान में लेकर बैंकिंग सिस्टम का मॉडल तैयार किया जाएगा.
विश्वविद्यालय की ओर से संचालित बिजनेस मैनेजमेंट एमबीए के कोर्स में भी ग्लोबल मैनेजमेंट के स्थान पर नोतरा प्रथा को शामिल किया जाएगा. एक प्रश्न के जवाब में मूलत बांसवाड़ा के निवासी प्रो. त्रिवेदी ने बताया कि विश्वविद्यालय के लिहाज से यह बिल्डिंग बहुत छोटी है और अगस्त तक हम नई बिल्डिंग में शिफ्ट होने का प्रयास करेंगे.