बांसवाड़ा/जयपुर. राज्पाल कलराज मिश्र का कहना है कि आदिवासी जन-जीवन में वनस्पतियों का प्राचीन औषधीय ज्ञान सहज रूप में मौजूद है. इस क्षेत्र में प्रचलित प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों पर नए रूप में शोध और अनुसंधान की दरकार है. आदिवासी समाज की दैनिक परंपराओं में पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा वैज्ञानिक ज्ञान रचा-बसा है. इस ज्ञान को आधुनिक संदर्भों में प्रासंगिक बनाने के लिए गंभीरता से प्रयास किए जाने चाहिए. वे आज शनिवार को गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह (Govind Guru Tribal University third convocation) को वर्चुअली संबोधित कर रहे थे.
राज्यपाल ने कहा कि आदिवासी और गैर-आदिवासी के बीच की खाई को पाटने के लिए इस विश्वविद्यालय को एक सेतु के रूप में काम करना चाहिए. उन्होंने विश्वविद्यालय में वेद्-विद्यापीठ के अंतर्गत वेदों को आधुनिक संदर्भ में देखते हुए वेद संस्कृति से जुड़े ज्ञान के संरक्षण का कार्य करने का सुझाव भी दिया. राज्यपाल ने विश्वविद्यालय के कुलपति सचिवालय-माही भवन तथा जनजाति संग्रहालय का ऑनलाइन लोकार्पण किया. उन्होंने विश्वविद्यालय की पत्रिका ‘प्रतिध्वनि’ का भी लोकार्पण किया.
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कुलपति ने कुल 21 छात्रों को गोल्ड मेडल प्रदान किए. पीएचडी यानी शोध करने वाले 5 छात्र-छात्राओं को भी गोल्ड दिया गया. कार्यक्रम में अमूल दूध डेयरी के प्रबंध निदेशक आर एस सोढ़ी, उच्च शिक्षा मंत्री और कुलपति प्रोफेसर डॉ आईवी द्विवेदी ने भी छात्रों को संबोधित किया.
'यूनिवर्सिटी नवाचार के लिए जानी जाएगी'
कार्यक्रम में उच्च शिक्षा मंत्री राजेंद्र सिंह यादव ने कहा कि अमूल डेयरी के प्रबंध निदेशक के द्वारा कई ओजपूर्ण बातें कही गई हैं. निश्चित रूप से यह जिले के लिए प्रशंसनीय हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि जीजीटीयू नवाचारों के लिए जानी जाएगी. आदिवासी अंचल के विकास के लिए तत्पर है ऐसे में यूनिवर्सिटी को हर संभव मदद की जाएगी. आदिवासी अंचल का विकास राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय को नवाचार और रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रमों का विकास कर इस क्षेत्र के युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए.
यूनिवर्सिटी आयोजित करेगी नोतरा
आईवी त्रिवेदी ने कहा कि आने वाले दिनों में यूनिवर्सिटी नोतरा का कार्यक्रम आयोजित करेगी. बताते चलें आदिवासी अंचल का एक परंपरागत कार्यक्रम है. जिसे नोतरा कहा जाता है. जिसके तहत किसी भी परिवार में धन एकत्रित करना सर्वमान्य कार्य है. पहले के जमाने में जब किसी परिवार में कोई शादी होती थी और लोगों के पास धन नहीं होता था तो वह नोतरा का कार्यक्रम करते थे. आसपास के लोग और रिश्तेदार खाना खाकर जाते थे और कुछ धनराशि देते थे. जिसका पूरा लेखा-जोखा रखा जाता था. यही चीज आगे चलकर परंपरा बन गई. अब हर आदिवासी परिवार में नोतरा का होने लगा है. कई लोगों ने इसका गलत फायदा भी उठाना शुरू कर दिया है.