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Exclusive: हॉकी में भारत के प्रदर्शन को लेकर मेजर ध्यानचंद के पौत्र विशाल सिंह से खास बातचीत - विशाल सिंह से खास बातचीत

ईटीवी भारत ने बांसवाड़ा में मेजर ध्यानचंद के पौत्र विशाल सिंह से हॉकी में भारत के प्रदर्शन में गिरावट को लेकर खास बातचीत की. विशाल सिंह जिला खेल अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं. बातचीत के दौरान उनसे जानने की कोशिश की गई कि कैसे एक बार फिर भारत मेजर ध्यानचंद के युग में लौट सकता है.

Exclusive conversation with Vishal Singh, मेजर ध्यानचंद के पौत्र विशाल सिंह से खास बातचीत, हॉकी में भारत का प्रदर्शन
मेजर ध्यानचंद के पौत्र विशाल सिंह से खास बातचीत
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Published : Dec 1, 2019, 2:58 PM IST

बांसवाड़ा. हॉकी का नाम सामने आते ही हमारी आंखों के सामने मेजर ध्यानचंद की तस्वीर उभर कर आती है. साल 1928 से 1936 तक हॉकी में भारत लगातार ओलंपिक चैंपियन रहा और यह सब मेजर ध्यानचंद यह जादू का ही कमाल था. उसके बाद से हम कभी भी कोई मैडल नहीं ला पाए और लगातार हमारी रैंक मैं गिरावट आ रही है. मेजर ध्यानचंद के पौत्र विशाल सिंह जिला खेल अधिकारी पद पर कार्यरत हैं. ईटीवी भारत संवाददाता ने उनसे हॉकी में भारत के प्रदर्शन में गिरावट को लेकर खास बातचीत की.

मेजर ध्यानचंद के पौत्र विशाल सिंह से खास बातचीत

बातचीत के दौरान विशाल सिंह ने कहा कि हॉकी के प्रति आज भी हमारे देश में शहर से लेकर गांव तक वैसा ही जोश और जुनून है. लेकिन, जरूरत इस बात की है कि हॉकी के खिलाड़ियों को समुचित सुविधाएं प्रदान की जाए. इस खेल को पीरियड से जोड़ा जाए और ग्राउंड जीरो पर जितनी फैसिलिटी दी जा सकती है. बच्चों को हॉकी के प्रति जागृत किया जा सकता है. इसके लिए कदम उठाया जाना जरूरी है. सबसे पहले बच्चों को जागरूक किया जाना चाहिए. उसके बाद प्रॉपर इक्विपमेंट ट्रेनिंग और ग्राउंड को डवलप किया जाना चाहिए.

पढ़ें: स्पेशल स्टोरी : नाथद्वारा में पहली बार खेल कुंभ का होगा आयोजन, 57 टीमें लेंगी भाग

खिलाड़ियों के चयन में भेदभाव के सवाल पर उन्होंने कहा कि नहीं लगता कि अब ऐसी कोई गुंजाइश बची है. ग्राउंड जीरो से लेकर नेशनल लेवल तक ट्रायल का प्रावधान है. प्रतिभा के बिना कोई भी खिलाड़ी इन्हें पार नहीं कर सकता. उन्होंने अफसोस जताया कि छोटी गलतियों के कारण हमारा प्रदर्शन विश्व स्तर पर लगातार कमजोर पड़ रहा है.

वहीं, ग्राउंड जीरो पर सुविधाओं के सवाल पर विशाल सिंह ने कहा कि एजुकेशन किसी भी खेल की नर्सरी होती है. दुर्भाग्य से हम शिक्षा के साथ खेल को उतना महत्व नहीं दे पा रहे हैं. साल में एक बार जिला स्तरीय प्रतियोगिताएं होती है. उसके बाद शारीरिक शिक्षक भी उदासीन हो जाते हैं तो ग्राउंड पर बच्चे भी नहीं पहुंचते है. जबकि खेल निरंतर अभ्यास मांगता है. अभ्यास के दौरान प्रतिभाओं का सही तरह से आकलन किया जा सकता है. समझा जा सकता है कि किस गांव और किस शहर का खिलाड़ी कितना प्रतिभावान है और उसको अब कैसी सुविधाएं दी जानी चाहिए.

विशाल सिंह के मन में टीस है कि लगातार तीन ओलंपिक में देश का नाम रोशन करने वाले उनके दादा को अब तक भारत रत्न से नहीं नवाजा गया. लेकिन. उम्मीद है कि जिस तरह उनके दादा के नाम पर केंद्र सरकार ने खेल दिवस घोषित किया है. उसी तरह एक दिन भारत रत्न की सिफारिश भी की जाएगी.

बांसवाड़ा. हॉकी का नाम सामने आते ही हमारी आंखों के सामने मेजर ध्यानचंद की तस्वीर उभर कर आती है. साल 1928 से 1936 तक हॉकी में भारत लगातार ओलंपिक चैंपियन रहा और यह सब मेजर ध्यानचंद यह जादू का ही कमाल था. उसके बाद से हम कभी भी कोई मैडल नहीं ला पाए और लगातार हमारी रैंक मैं गिरावट आ रही है. मेजर ध्यानचंद के पौत्र विशाल सिंह जिला खेल अधिकारी पद पर कार्यरत हैं. ईटीवी भारत संवाददाता ने उनसे हॉकी में भारत के प्रदर्शन में गिरावट को लेकर खास बातचीत की.

मेजर ध्यानचंद के पौत्र विशाल सिंह से खास बातचीत

बातचीत के दौरान विशाल सिंह ने कहा कि हॉकी के प्रति आज भी हमारे देश में शहर से लेकर गांव तक वैसा ही जोश और जुनून है. लेकिन, जरूरत इस बात की है कि हॉकी के खिलाड़ियों को समुचित सुविधाएं प्रदान की जाए. इस खेल को पीरियड से जोड़ा जाए और ग्राउंड जीरो पर जितनी फैसिलिटी दी जा सकती है. बच्चों को हॉकी के प्रति जागृत किया जा सकता है. इसके लिए कदम उठाया जाना जरूरी है. सबसे पहले बच्चों को जागरूक किया जाना चाहिए. उसके बाद प्रॉपर इक्विपमेंट ट्रेनिंग और ग्राउंड को डवलप किया जाना चाहिए.

पढ़ें: स्पेशल स्टोरी : नाथद्वारा में पहली बार खेल कुंभ का होगा आयोजन, 57 टीमें लेंगी भाग

खिलाड़ियों के चयन में भेदभाव के सवाल पर उन्होंने कहा कि नहीं लगता कि अब ऐसी कोई गुंजाइश बची है. ग्राउंड जीरो से लेकर नेशनल लेवल तक ट्रायल का प्रावधान है. प्रतिभा के बिना कोई भी खिलाड़ी इन्हें पार नहीं कर सकता. उन्होंने अफसोस जताया कि छोटी गलतियों के कारण हमारा प्रदर्शन विश्व स्तर पर लगातार कमजोर पड़ रहा है.

वहीं, ग्राउंड जीरो पर सुविधाओं के सवाल पर विशाल सिंह ने कहा कि एजुकेशन किसी भी खेल की नर्सरी होती है. दुर्भाग्य से हम शिक्षा के साथ खेल को उतना महत्व नहीं दे पा रहे हैं. साल में एक बार जिला स्तरीय प्रतियोगिताएं होती है. उसके बाद शारीरिक शिक्षक भी उदासीन हो जाते हैं तो ग्राउंड पर बच्चे भी नहीं पहुंचते है. जबकि खेल निरंतर अभ्यास मांगता है. अभ्यास के दौरान प्रतिभाओं का सही तरह से आकलन किया जा सकता है. समझा जा सकता है कि किस गांव और किस शहर का खिलाड़ी कितना प्रतिभावान है और उसको अब कैसी सुविधाएं दी जानी चाहिए.

विशाल सिंह के मन में टीस है कि लगातार तीन ओलंपिक में देश का नाम रोशन करने वाले उनके दादा को अब तक भारत रत्न से नहीं नवाजा गया. लेकिन. उम्मीद है कि जिस तरह उनके दादा के नाम पर केंद्र सरकार ने खेल दिवस घोषित किया है. उसी तरह एक दिन भारत रत्न की सिफारिश भी की जाएगी.

Intro:बांसवाड़ा। हॉकी का नाम सामने आते ही हमारी आंखों के सामने मेजर ध्यानचंद की तस्वीर उभर कर आती है। 1928 से 1936 तक हॉकी में भारत लगातार ओलंपिक चैंपियन रहा और यह सब मेजर ध्यानचंद यह जादू का ही कमाल था। उसके बाद से हम कभी भी कोई मेडल नहीं ला पाए और लगातार हमारी रैंक मैं गिरावट आ रही है। ईटीवी भारत ने हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के पोत्र विशाल सिंह से जाना कि आखिर हमारे प्रदर्शन में गिरावट के क्या कारण है? हम किस प्रकार फिर से मेजर ध्यानचंद के युग मैं लौट सकते हैं?


Body:एक सवाल के जवाब में विशाल सिंह ने कहा कि हॉकी के प्रति आज भी हमारे देश में शहर से लेकर गांव तक वैसा ही जोश और जुनून है। जरूरत इस बात की है कि हॉकी के खिलाड़ियों को समुचित सुविधाएं प्रदान की जाए। इस खेल को पीरियड से जोड़ा जाए और ग्राउंड जीरो पर जितनी फैसिलिटी दी जा सकती है। बच्चों को हॉकी के प्रति जागृत किया जा सकता है, वैसे कदम उठाई जाना जरूरी है। सबसे पहले बच्चों को जागरूक किया जाना चाहिए उसके बाद प्रॉपर इक्विपमेंट ट्रेनिंग और ग्राउंड को डेवलप किया जाना चाहिए। खिलाड़ियों के सलेक्शन में भेदभाव के सवाल पर उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि अब ऐसी कोई गुंजाइश बची रह गई है। जीरो ग्राउंड से लेकर नेशनल लेवल तक ट्रायल का प्रावधान है। प्रतिभा के बिना कोई भी खिलाड़ी इन्हें पार नहीं कर सकता। उन्होंने अफसोस जताया कि छोटी मोटी गलतियों के कारण हमारा प्रदर्शन विश्व स्तर पर लगातार कमजोर पड़ रहा है।


Conclusion:ग्राउंड जीरो पर फैसिलिटी संबंधी एक सवाल पर बारा में बतौर जिला खेल अधिकारी पद पर कार्यरत विशाल सिंह ने कहा कि एजुकेशन किसी भी खेल की नर्सरी होती है। दुर्भाग्य से हम शिक्षा के साथ खेल को उतना महत्व नहीं दे पा रहे हैं। साल में एक बार जिला स्तरीय प्रतियोगिताएं होती है। उसके बाद शारीरिक शिक्षक भी उदासीन हो जाते हैं तो ग्राउंड पर बच्चे भी नहीं पहुंचते जबकि खेले निरंतर अभ्यास मांगता है। अभ्यास की निरंतरता पर बच्चे ग्राउंड पर पहुंचते हैं और प्रतिभाओं का सही तरह से आकलन किया जा सकता है कि किस गांव का किस शहर का खिलाड़ी कितना प्रतिभावान है और उसको अब क्या क्या फैसिलिटी दी जा सकती है। वर्षों तक अपनी दादा की गोद में खेलने कूदने वाले विशाल सिंह के मन में टीस है कि लगातार तीन ओलंपिक में देश का नाम रोशन करने वाले उनके दादा को अब तक भारत रत्न से नहीं नवाजा गया लेकिन उम्मीद है कि जिस प्रकार उनके दादा के नाम पर केंद्र सरकार द्वारा खेल दिवस घोषित किया गया उसी प्रकार एक दिन भारत रत्न की सिफारिश भी की जाएगी।
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