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बांसवाड़ा : पर्यावरण संरक्षण पर जोर, लकड़ी के बजाए 20 हजार कंडों की जलेगी होली

बांसवाड़ा में इस बार की होली कुछ खास है. दरअसल यहां पर्यावरण की रक्षा के लिए सकारात्मक बदलाव किए जा रहे हैं. जिले की एक गौशाला में 20 हजार कंडे तैयार किए गए हैं, जो बुकिंग के हिसाब से होलिका दहन वाले स्थानों पर पहुंचाए जा रहे हैं.

Kande ki Holi, Banswara news
इस बार जलेगी 20 हजार कंडों की होली
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Published : Mar 9, 2020, 2:05 PM IST

बांसवाड़ा. कोई भी तीज त्योहार हो या फिर हंसी खुशी का पर्व. समय के साथ परंपराओं में परिवर्तन होते आए हैं. समाज के हित में कई बार यह बदलाव त्योहार मनाने के उल्लास को और बढ़ा देते हैं. हम बात कर रहे हैं कंडों की होली की. होली दहन में कई टन लकड़ी लग जाती थी. हरे-भरे पेड़ होली के नाम पर काट दिए जाते थे. अब उनके स्थान पर बांसवाड़ा में कंडों की होली जलाने का प्रचलन बढ़ रहा है.

इस बार जलेगी 20 हजार कंडों की होली

इन प्रयासों से जहां गौ माता का महत्व बढ़ा है, वहीं पर्यावरण शुद्धि की भी एक सोच विकसित होती जा रही है. इसे देखते हुए बांसवाड़ा गौशाला की ओर से मजदूर लगाकर करीब 20 हजार कंडे तैयार करवाए गए हैं, जो बुकिंग के हिसाब से होलिका दहन वाले स्थानों पर पहुंचाए जा रहे हैं.

शहर में करीब 2 दर्जन स्थानों पर होलिका दहन किया जाता है. पिछले तीन-चार साल में करीब 70% होलिका दहन में कंडों का उपयोग बढ़ गया है. इसे देखते हुए गौशाला की ओर से अगले साल के लिए भी प्लान तैयार कर दिया गया है.

यहां मदारेश्वर रोड गौशाला में पिछले कई दिनों से मजदूरों की ओर से गोबर के कंडे तैयार किए जा रहे थे. कंडों से होली जलाने के लिए बुकिंग बढ़ने के बाद गौशाला की ओर से अतिरिक्त मजदूर लगाए गए और इनमें से आधे कंडे आयोजन स्थलों पर पहुंच गए हैं.

बताया गया है कि एक होलिका दहन के लिए करीब 300 से 400 कंडों की जरूरत पड़ती है. गौशाला द्वारा बुकिंग के अनुसार गाय के गोबर के कंडे तैयार करवाए गए. गाय के गोबर के कंडों को पर्यावरण की दिशा से भी काफी अहम माना गया है. इससे न केवल पर्यावरण शुद्ध होता है बल्कि लोगों में गौशालाओं को आर्थिक रूप से एक संबल मिलेगा.

पढ़ें- होली, धुलेंडी और रंगतेरस पर शांति व्यवस्था को लेकर सीएलजी बैठक

पर्यावरणविद डॉ दीपक द्विवेदी के अनुसार हमारे शास्त्रों में भी गाय के गोबर को काफी महत्व दिया गया है. गोबर के कंधों से होलिका दहन और भी महत्वपूर्ण है. प्राचीन समय में पूरे शहर में एक ही स्थान पर होलिका दहन होता था. इसलिए पर्यावरण को कोई ज्यादा नुकसान नहीं होता, लेकिन धीरे-धीरे करते हर गली मोहल्ले में होलिका दहन होने लगा तो लकड़ी की जरूरत बढ़ गई. केवल होलिका दहन में ही सैकड़ों पेड़ काटने पड़ते थे लेकिन धीरे-धीरे शहर के लोगों की मानसिकता बदल रही है, जो पर्यावरण के लिए बहुत ही अहम है.

पढ़ें- कोटा में फागोत्सव की धूम, कार्यक्रम में बांटा गया मास्क

गौशाला के सचिव वन पंड्या के अनुसार जैसे-जैसे कंडों की बुकिंग बढ़ती गई, हमने एक्स्ट्रा आदमी लगाकर उन्हें तैयार करवाया. शहर के साथ-साथ आसपास के गांव से भी हमारे पास बुकिंग पहुंची है. 300 से 400 कंडो में आसानी से होलिका दहन हो सकता है.

गौशाला के व्यवस्थापक जयंतीलाल भट्ट के अनुसार धीरे धीरे कंडो की होली का प्रचलन बढ़ रहा है, जो निश्चित ही पर्यावरण के लिए एक अच्छी पहल है. हमने अगले साल के लिए भी प्लान तैयार कर लिया है और करीब एक लाख कंडे तैयार करवाए जाएंगे.

बांसवाड़ा. कोई भी तीज त्योहार हो या फिर हंसी खुशी का पर्व. समय के साथ परंपराओं में परिवर्तन होते आए हैं. समाज के हित में कई बार यह बदलाव त्योहार मनाने के उल्लास को और बढ़ा देते हैं. हम बात कर रहे हैं कंडों की होली की. होली दहन में कई टन लकड़ी लग जाती थी. हरे-भरे पेड़ होली के नाम पर काट दिए जाते थे. अब उनके स्थान पर बांसवाड़ा में कंडों की होली जलाने का प्रचलन बढ़ रहा है.

इस बार जलेगी 20 हजार कंडों की होली

इन प्रयासों से जहां गौ माता का महत्व बढ़ा है, वहीं पर्यावरण शुद्धि की भी एक सोच विकसित होती जा रही है. इसे देखते हुए बांसवाड़ा गौशाला की ओर से मजदूर लगाकर करीब 20 हजार कंडे तैयार करवाए गए हैं, जो बुकिंग के हिसाब से होलिका दहन वाले स्थानों पर पहुंचाए जा रहे हैं.

शहर में करीब 2 दर्जन स्थानों पर होलिका दहन किया जाता है. पिछले तीन-चार साल में करीब 70% होलिका दहन में कंडों का उपयोग बढ़ गया है. इसे देखते हुए गौशाला की ओर से अगले साल के लिए भी प्लान तैयार कर दिया गया है.

यहां मदारेश्वर रोड गौशाला में पिछले कई दिनों से मजदूरों की ओर से गोबर के कंडे तैयार किए जा रहे थे. कंडों से होली जलाने के लिए बुकिंग बढ़ने के बाद गौशाला की ओर से अतिरिक्त मजदूर लगाए गए और इनमें से आधे कंडे आयोजन स्थलों पर पहुंच गए हैं.

बताया गया है कि एक होलिका दहन के लिए करीब 300 से 400 कंडों की जरूरत पड़ती है. गौशाला द्वारा बुकिंग के अनुसार गाय के गोबर के कंडे तैयार करवाए गए. गाय के गोबर के कंडों को पर्यावरण की दिशा से भी काफी अहम माना गया है. इससे न केवल पर्यावरण शुद्ध होता है बल्कि लोगों में गौशालाओं को आर्थिक रूप से एक संबल मिलेगा.

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पर्यावरणविद डॉ दीपक द्विवेदी के अनुसार हमारे शास्त्रों में भी गाय के गोबर को काफी महत्व दिया गया है. गोबर के कंधों से होलिका दहन और भी महत्वपूर्ण है. प्राचीन समय में पूरे शहर में एक ही स्थान पर होलिका दहन होता था. इसलिए पर्यावरण को कोई ज्यादा नुकसान नहीं होता, लेकिन धीरे-धीरे करते हर गली मोहल्ले में होलिका दहन होने लगा तो लकड़ी की जरूरत बढ़ गई. केवल होलिका दहन में ही सैकड़ों पेड़ काटने पड़ते थे लेकिन धीरे-धीरे शहर के लोगों की मानसिकता बदल रही है, जो पर्यावरण के लिए बहुत ही अहम है.

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गौशाला के सचिव वन पंड्या के अनुसार जैसे-जैसे कंडों की बुकिंग बढ़ती गई, हमने एक्स्ट्रा आदमी लगाकर उन्हें तैयार करवाया. शहर के साथ-साथ आसपास के गांव से भी हमारे पास बुकिंग पहुंची है. 300 से 400 कंडो में आसानी से होलिका दहन हो सकता है.

गौशाला के व्यवस्थापक जयंतीलाल भट्ट के अनुसार धीरे धीरे कंडो की होली का प्रचलन बढ़ रहा है, जो निश्चित ही पर्यावरण के लिए एक अच्छी पहल है. हमने अगले साल के लिए भी प्लान तैयार कर लिया है और करीब एक लाख कंडे तैयार करवाए जाएंगे.

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