बांसवाड़ा. नाबालिग के यौन शोषण और खुदकुशी के लिए उकसाने के एक मामले में विशिष्ट न्यायालय ने पॉक्सो एक्ट के तहत पुलिस अधिकारियों के कृत्य को घोर निंदनीय बताते हुए साक्ष्यों के अभाव में आरोपी युवक को दोष मुक्त कर दिया है. विशिष्ट न्यायाधीश मोहम्मद आरिफ ने फैसले में टिप्पणी दी. उन्होंने कहा कि जांच अधिकारियों ने निष्पक्ष, स्वतंत्र और ईमानदारी के साथ जांच नहीं किया.
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मामले में एक युवक पर आरोप था कि उसने 26 जनवरी 2018 को दोपहर बाड़े में गोबर डालने गई 16 साल की लड़की के साथ ज्यादती की और फिर गांव से गायब हो गया. लड़की वापस घर नहीं लौटी तो परिजनों ने तलाश की. इसके बाद अगले दिन गांव के ही कुएं के पास चप्पल मिलने पर संदेह हुआ. खोजने के बाद लड़की का शव मिला.
मामले को लेकर मृतका के पिता ने रिपोर्ट में आरोप लगाया कि आरोपी का उसके घर आना जाना था और लड़की से अवैध संबंध थे. ऐसे में लड़की ने कुएं में कूदकर जान दे दी. इस पर पुलिस ने बलात्कार करने, खुदकुशी के लिए उकसाने और पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार किया. जांच के बाद कोर्ट में आरोप-पत्र दाखिल करने पर अभियोजन की ओर से 18 गवाह और 28 प्रदर्श पेश किए गए.
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मौजूदा साक्ष्य के आधार पर कोर्ट ने माना कि परिवादी पक्ष ने योजना के तहत युवक को आरोपी बनवाया और दुर्भावनापूर्ण आशय से कार्रवाई करवाई. अदालत ने युवक पर लगाई गई भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और 306 के साथ ही नाबालिग के यौन शोषण के आरोप आधारहीन पाया. इसके बाद उसे दोष मुक्त घोषित किया. कोर्ट ने 36 पेज के फैसले में उल्लेख किया है कि पीड़िता के स्कूल प्रवेश से जुड़ा रिकॉर्ड भी जांच अधिकारियों ने नहीं लिया. मामले से जुड़ी रिपोर्ट्स शंका के आधार पर दी गई, जिसकी सत्यता का पता जांच अधिकारियों को लगाना था, लेकिन ऐसा नहीं करके महज शंका पर कार्रवाई कर दी गई.