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स्पेशलः स्नेह के बंधन 'राखी' पर कोरोना का ग्रहण, मंद पड़ा करोड़ों का व्यापार - corona in alwar

भारत में ही नहीं बल्कि 24 देशों में भी अलवर की राखी भाइयों के हाथों पर सजती है लेकिन इस बार कोरोना ने राखी व्यवसाय पर बुरा असर डाला है. ऐसे में राखी व्यवसाय को करोड़ों का घाटा सहना पड़ेगा.

राखी पर कोरोना की मार, corona in alwar
अलवर में राखी का व्यवसाय पर लगा कोरोना का ग्रहण
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Published : Jul 28, 2020, 2:08 PM IST

अलवर. कोरोना महामारी ने रक्षाबंधन के त्योहार को भी नहीं बख्शा है. रक्षाबंधन पर्व पर भाइयों के हाथों पर सजने वाली राखियों का कारोबार इस बार कोरोना वायरस के चलते मंदा पड़ गया है. देश में सबसे ज्यादा राखियां की डिमांड कोलकाता और उसके बाद अलवर की राखियों की रहती है लेकिन इस बार यह कारोबार पूरी तरीके से सिमट चुका है.

अलवर में राखी का व्यवसाय पर लगा कोरोना का ग्रहण

देश में अलवर की राखियां विशेष स्थान रखती हैं. राजस्थान ही नहीं अन्य राज्यों के अलावा विदेशों में भी यहां की राखी की भारी डिमांड रहती है. यहां की राखियां देखने में सुंदर और आकर्षक होती है. इसके अलावा अन्य जगहों की तुलना में सस्ती मिलती है. इसलिए लोग अलवर की राखियों को पसंद करते हैं. देश के अलावा 24 से अधिक अन्य देशों में भी अलवर की राखी सप्लाई होती है.

राखी पर कोरोना की मार, corona in alwar
अलवर की राखियां सुंदर और आकर्षक

हजारों तरह के रहते हैं डिजाइन

अलवर में करीब 20 हजार से अधिक डिजाइन की राखियां तैयार होती हैं. यहां 20 रुपए दर्जन से लेकर 500 दर्जन के रेट तक राखियां मिलती हैं. मोती और डोरी सहित कई डिजाइनर चीजों से राखियों को तैयार किया जाता है. स्टोन व चांदी की राखियों की डिमांड भी अधिक रहती है.

महज सौ किमी में सिमट गया इस बार व्यवसाय

इस व्यवसाय से लाखों लोग जुड़े हुए हैं. कच्ची बस्तियों में रहने वाली महिलाएं राखी बनाकर अपना गुजर-बसर करती हैं. जिले में साल भर राखी बनाने का काम किया जाता है लेकिन कोरोना के चलते इस बार राखी व्यवसाय प्रभावित हो रहा है. लोग राखी खरीदने के लिए नहीं आ रहे हैं. वहीं राखियों की दुकान भी अन्य सालों की तुलना में कम लग रही है. इस बार जिले में राखियों का व्यवसाय 100 किलोमीटर के दायरे में सिमट कर रह गया है.

ट्रांसपोटरों ने बढ़ाए दाम

वहीं दूसरी ओर लॉकडाउन में ट्रेन, बस के साथ सभी तरह के यातायात के साधन बंद थे. ऐसे में ट्रांसपोर्टरों ने कई गुना महंगे चार्ज बढ़ा दिए हैं. जिसके चलते माल एक जगह से दूसरी जगह पर भी नहीं जा पा रहा है. ऐसे में कारोबारियों को करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ सकता है.

राखी पर कोरोना की मार, corona in alwar
राखी बनाकर महिलाएं करती घरों का भरण-पोषण

20 से 25 करोड़ का होता है व्यवसाय

वहीं राखी व्यवसाय अर्पण जैन ने कहा की पहली बार इस तरह के हालात देखने को मिल रहे हैं. देश में राखी का व्यवसाय 20 से 25 करोड़ के आसपास रहता है. इस व्यवसाय से छोटे-छोटे रेहड़ी पटरी दुकानदार तक जुड़े हुए हैं क्योंकि सड़क के किनारे दुकान लगाकर राखी बेचने वाले लोगों का घर खर्च उसी से चलता है. ऐसे में इस बार लोग संक्रमण के डर से राखी खरीदने नहीं आ रहे हैं.

यह भी पढ़ें. रक्षाबंधन के खास मौके पर डाक विभाग ने किए विशेष इंतजाम

व्यवसायी का कहना है कि एक जगह से दूसरी जगह पर सामान भेजने में भी खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. आमतौर पर विदेश में भी अलवर की राखी जाती है लेकिन इस बार केवल 2 देशों में अलवर की राखी गई हैं. मार्च, अप्रैल और मई माह में रेल और बस यातायात पूरी तरीके से बंद रहा. ऐसे में व्यापारी माल के लिए अलवर नहीं आ सके.

यह भी पढ़ें. SPECIAL: कोरोना की मार, पटरी से गुजारा करने वालों की जिंदगी हुई 'बेपटरी'

अब केवल स्थानीय व्यापारी ही राखियों की खरीदारी कर रहे हैं. लॉकडाउन खुलने के बाद व्यापार बढ़ने की उम्मीद लग रही थी लेकिन हालात लगातार खराब होते नजर आ रहे हैं.

राखी पर कोरोना की मार, corona in alwar
लोग कोरोना के डर से नहीं खरीदने आ रहे राखी

लाखों लोगों पर सीधी मार

राखी बनाने से लेकर बेचने तक इस काम में लाखों परिवार व लोग जुड़े हुए हैं. महिलाएं घरों में रहकर राखियां बनाती हैं तो वहीं सड़क के किनारे लोग राखी बेचते हैं. ऐसे में साल भर के इस त्यौहार से सभी को उम्मीद रहती है. लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते इस बार लाखों करोड़ों का नुकसान हो रहा है.

मोदी के स्वदेशी नारे का दिख रहा असर

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ समय पहले स्वदेशी की बात कहते हुए आत्मनिर्भर भारत की बात कही थी. जिसके बाद से लगातार चाइना के सामान का बहिष्कार हो रहा है. तो वही छोटे बच्चों की राखियों में चाइना का कब्जा था लेकिन इस बार लोग चाइनीज राखियों को नहीं खरीद रहे हैं. पुराना रखा हुआ माल केवल बाजार में कुछ जगहों पर नजर आ रहा है. अब लोग पूर्ण रूप से स्वदेशी सामान को खरीद रहे हैं.

अलवर. कोरोना महामारी ने रक्षाबंधन के त्योहार को भी नहीं बख्शा है. रक्षाबंधन पर्व पर भाइयों के हाथों पर सजने वाली राखियों का कारोबार इस बार कोरोना वायरस के चलते मंदा पड़ गया है. देश में सबसे ज्यादा राखियां की डिमांड कोलकाता और उसके बाद अलवर की राखियों की रहती है लेकिन इस बार यह कारोबार पूरी तरीके से सिमट चुका है.

अलवर में राखी का व्यवसाय पर लगा कोरोना का ग्रहण

देश में अलवर की राखियां विशेष स्थान रखती हैं. राजस्थान ही नहीं अन्य राज्यों के अलावा विदेशों में भी यहां की राखी की भारी डिमांड रहती है. यहां की राखियां देखने में सुंदर और आकर्षक होती है. इसके अलावा अन्य जगहों की तुलना में सस्ती मिलती है. इसलिए लोग अलवर की राखियों को पसंद करते हैं. देश के अलावा 24 से अधिक अन्य देशों में भी अलवर की राखी सप्लाई होती है.

राखी पर कोरोना की मार, corona in alwar
अलवर की राखियां सुंदर और आकर्षक

हजारों तरह के रहते हैं डिजाइन

अलवर में करीब 20 हजार से अधिक डिजाइन की राखियां तैयार होती हैं. यहां 20 रुपए दर्जन से लेकर 500 दर्जन के रेट तक राखियां मिलती हैं. मोती और डोरी सहित कई डिजाइनर चीजों से राखियों को तैयार किया जाता है. स्टोन व चांदी की राखियों की डिमांड भी अधिक रहती है.

महज सौ किमी में सिमट गया इस बार व्यवसाय

इस व्यवसाय से लाखों लोग जुड़े हुए हैं. कच्ची बस्तियों में रहने वाली महिलाएं राखी बनाकर अपना गुजर-बसर करती हैं. जिले में साल भर राखी बनाने का काम किया जाता है लेकिन कोरोना के चलते इस बार राखी व्यवसाय प्रभावित हो रहा है. लोग राखी खरीदने के लिए नहीं आ रहे हैं. वहीं राखियों की दुकान भी अन्य सालों की तुलना में कम लग रही है. इस बार जिले में राखियों का व्यवसाय 100 किलोमीटर के दायरे में सिमट कर रह गया है.

ट्रांसपोटरों ने बढ़ाए दाम

वहीं दूसरी ओर लॉकडाउन में ट्रेन, बस के साथ सभी तरह के यातायात के साधन बंद थे. ऐसे में ट्रांसपोर्टरों ने कई गुना महंगे चार्ज बढ़ा दिए हैं. जिसके चलते माल एक जगह से दूसरी जगह पर भी नहीं जा पा रहा है. ऐसे में कारोबारियों को करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ सकता है.

राखी पर कोरोना की मार, corona in alwar
राखी बनाकर महिलाएं करती घरों का भरण-पोषण

20 से 25 करोड़ का होता है व्यवसाय

वहीं राखी व्यवसाय अर्पण जैन ने कहा की पहली बार इस तरह के हालात देखने को मिल रहे हैं. देश में राखी का व्यवसाय 20 से 25 करोड़ के आसपास रहता है. इस व्यवसाय से छोटे-छोटे रेहड़ी पटरी दुकानदार तक जुड़े हुए हैं क्योंकि सड़क के किनारे दुकान लगाकर राखी बेचने वाले लोगों का घर खर्च उसी से चलता है. ऐसे में इस बार लोग संक्रमण के डर से राखी खरीदने नहीं आ रहे हैं.

यह भी पढ़ें. रक्षाबंधन के खास मौके पर डाक विभाग ने किए विशेष इंतजाम

व्यवसायी का कहना है कि एक जगह से दूसरी जगह पर सामान भेजने में भी खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. आमतौर पर विदेश में भी अलवर की राखी जाती है लेकिन इस बार केवल 2 देशों में अलवर की राखी गई हैं. मार्च, अप्रैल और मई माह में रेल और बस यातायात पूरी तरीके से बंद रहा. ऐसे में व्यापारी माल के लिए अलवर नहीं आ सके.

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अब केवल स्थानीय व्यापारी ही राखियों की खरीदारी कर रहे हैं. लॉकडाउन खुलने के बाद व्यापार बढ़ने की उम्मीद लग रही थी लेकिन हालात लगातार खराब होते नजर आ रहे हैं.

राखी पर कोरोना की मार, corona in alwar
लोग कोरोना के डर से नहीं खरीदने आ रहे राखी

लाखों लोगों पर सीधी मार

राखी बनाने से लेकर बेचने तक इस काम में लाखों परिवार व लोग जुड़े हुए हैं. महिलाएं घरों में रहकर राखियां बनाती हैं तो वहीं सड़क के किनारे लोग राखी बेचते हैं. ऐसे में साल भर के इस त्यौहार से सभी को उम्मीद रहती है. लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते इस बार लाखों करोड़ों का नुकसान हो रहा है.

मोदी के स्वदेशी नारे का दिख रहा असर

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ समय पहले स्वदेशी की बात कहते हुए आत्मनिर्भर भारत की बात कही थी. जिसके बाद से लगातार चाइना के सामान का बहिष्कार हो रहा है. तो वही छोटे बच्चों की राखियों में चाइना का कब्जा था लेकिन इस बार लोग चाइनीज राखियों को नहीं खरीद रहे हैं. पुराना रखा हुआ माल केवल बाजार में कुछ जगहों पर नजर आ रहा है. अब लोग पूर्ण रूप से स्वदेशी सामान को खरीद रहे हैं.

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