अलवर. कोरोना संक्रमण के दौर ने उद्योग-धंधों को बुरी तरह प्रभावित किया है. एक तरीके अर्थव्यवस्था ठप सी हो गई है. हालात सुधरने लगे हैं, लॉकडाउन में जो मजदूर अपने घर चले गए थे वे काम पर भी लौट रहे हैं. औद्योगिक इकाइयों को कच्चा माल भी मिलने लगा है. लेकिन छोटे कारोबारियों के सामने बजट की कमी के हालात खड़े हो गए हैं.
बाजार में पैसा फंसा, निकलना मुश्किल
कारोबारियों का कहना है कि बाजार में जो पैसा फंसा हुआ है वह अटक गया है. लोग पैसे देने को तैयार नहीं हैं. ऐसे में आगे काम काज कैसे होगा, यह बड़ा सवाल है. साथ ही पहले की तुलना में सामान की डिमांड कम हुई है. जिसके चलते कारोबार में कमी आई है. कारोबारियों ने कहा कि ऑर्डर नहीं मिलने के कारण लोगों के कामकाज बंद हो गए हैं. छोटे कारोबारियों के सामने पैसे की कमी महसूस हो रही है. काम करने के लिए बजट की आवश्यकता है.
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बाजार से पैसा नहीं मिल रहा है. जिसका प्रभाव वित्तीय वर्ष की बैलेंस शीट पर भी नजर आएगा. ऐसे में सरकार को पुख्ता इंतजाम करने चाहिएं. क्योंकि केंद्र सरकार के साथ साथ राज्य सरकार ने अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए कई तरह के कदम उठाने का ऐलान किया था और कई तरह की राहतें देने का दावा भी किया था. लेकिन फिलहाल जमीन स्तर पर कारोबारियों और उद्यमियों को फायदा नहीं मिल रहा है.
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प्रदेश की औद्योगिक राजधानी और आर्थिक रीढ़ है अलवर
अलवर राजस्थान की औद्योगिक राजधानी है. अलवर में छोटे बड़े 25 औद्योगिक क्षेत्र हैं. इनमें 20 हजार से अधिक औद्योगिक इकाइयां हैं. जिनमें करीब आठ लाख श्रमिक काम करते हैं. अलवर का भिवाड़ी, नीमराणा, खुशखेड़ा, टपूकड़ा अलवर मत्स्य औद्योगिक क्षेत्र देश में विशेष पहचान रखता है. अलवर में स्टील, मार्बल, मिनरल, ऑटो पार्ट्स, सीमेंट सहित सभी तरह की औद्योगिक इकाइयां हैं. राज्य सरकार को जीएसटी का कुल 12 प्रतिशत अकेला भिवाड़ी दे रहा है. बीते डेढ़ साल के दौरान भिवाड़ी ने 3991 करोड़ केंद्र और 717.18 करोड़ राज्य को जीएसटी दिया है. भिवाड़ी में करीब 10 हजार करोड़ का सामान तैयार हो रहा है. इससे सीजीएसटी, एसजीएसटी और आईजीएसटी मिलाकर करीब साढ़े 300 करोड़ रुपए का राजस्व सरकार के खाते में जाएगा.
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इसी तरह से नीमराना अलवर सहित अन्य औद्योगिक इकाइयों के हालात हैं. जापानी जॉन में 18000 करोड़ों का निवेश हुआ. जो अपने आप में बड़ा रिकॉर्ड है. क्योंकि कोरोना के चलते जहां कामकाज बंद हुए, वहीं कोरियन, जापानी और अन्य जोन में निवेश बढ़ा है.
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कारोबारियों को आ रही बजट की दिक्कत
कारोबारियों ने कहा कि सरकारी और प्राइवेट क्षेत्र में टेंडर नहीं निकल रहे हैं. ऐसे में चीजों की डिमांड कम हुई है. पहले और अब के हालात अलग-अलग हैं. कोरोना काल के शुरुआत में सरकार के नियमों का पालन करते हुए कारोबारियों ने अपने यहां श्रमिकों को पूरा वेतन दिया. उनको अपने इंडस्ट्री के अंदर रहने की सुविधाएं उपलब्ध कराईं. लेकिन छोटे उद्यमियों के कारोबारियों के सामने बजट की खासी दिक्कत रही.
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सरकार को ऐसे कारोबारियों के लिए कुछ योजना बनानी चाहिए. कारोबारी पवन गोयल का कहना है कि बाजार में जब डिमांड ही नहीं होती तो आप क्या उत्पादन कर लेंगे.वहीं कारोबारी सुभाष अग्रवाल का कहना है कि रॉ मेटेरियल और लेबर के अलावा अब जो बड़ी समस्या आ रही है वो फाइनेंशियल है, कलेक्शन नहीं हो पा रहा है, इससे बैलेंस शीट का बिगड़ना तय है. वहीं रीको के क्षेत्रीय प्रबंधक आदित्य शर्मा ने यकीन जताया कि व्यवस्थाएं पटरी पर लौट रही हैं और धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा.
अलवर के कारोबारियों ने कहा कि सरकार को जमीनी स्तर पर कारोबारियों से बात करनी चाहिए. जिससे समस्या का समाधान मिल सके. क्योंकि कारोबारियों को कई तरह की दिक्कतें आ रही हैं. लेकिन उनका समाधान करने वाला कोई नहीं है.