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अलवर के पार्षद व सभापति आज तक नहीं बन पाए विधायक और सांसद - नगर निकाय चुनाव अलवर

देश-विदेश में अपनी अलग पहचान रखने वाला अलवर और यहां की नगर परिषद के पार्षद व नेता आज तक विधायक व सांसद की कुर्सी तक नहीं पहुंच सके हैं. ऐसे में यहां के पार्षद व सभापति का राजनीतिक भविष्य यहीं तक सिमट कर रह गया है.

Municipal Elections Alwar, नगर निकाय चुनाव अलवर
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Published : Nov 2, 2019, 9:36 AM IST

अलवर. कहते हैं राजनीति में जमीन से जुड़ा हुआ नेता ऊपर तक जाता है. केंद्रीय गृह मंत्री समेत अनेक पदों को सुशोभित रहने वाले शिवराज पाटिल का नाम उन नेताओं में आता है. जो महाराष्ट्र के लातूर निकाय से पार्षद रहे. उसके बाद दिल्ली तक का सफर तय किया. लेकिन अलवर में यह बात यहां यपर उल्टी साबित होती नजर आ रही है.

अलवर के पार्षद व सभापति आज तक नहीं बन पाए विधायक और सांसद

अलवर नगर परिषद क्षेत्र के पार्षद आज तक विधायक व सांसद का चुनाव नहीं जीते. इतना ही नहीं जिन नेताओं ने चुनाव लड़ने का प्रयास किया, उनको मुंह की खानी पड़ी थी. इस मामले में अलवर नगर परिषद का इतिहास खासा खराब रहा है. जिले में निकाय चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो वर्ष 1948 में अलवर नगर परिषद में पहला चेयरमैन चुना गया. उससे पूर्व नगर परिषद अलवर में सरकारी अधिकारी की चेयरमैन मनोनीत होते थे. तब से अब तक अलवर नगर परिषद और जिले की अन्य नगर परिषद, नगर पालिकाओं के चेयरमैन निकायों की राजनीति से आगे नहीं बढ़ सके.

पढ़ें- कार्तिक में कैसा ये मौसम : जैसलमेर में गिरे चने के आकार के ओले और बाड़मेर-बीकानेर में बूंदाबांदी

हालांकि, भिवाड़ी नगर परिषद के सभापति रह चुके कुछ नेताओं ने विधानसभा की चौखट तक पहुंचने के लिए दल व निर्दलीय तौर पर विधानसभा का चुनाव लड़ा. लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके. इन नेताओं में अलवर नगर परिषद सभापति अजय अग्रवाल व भिवाड़ी नगर परिषद सभापति संदीप दायमा का नाम शामिल है. सभापति ही नहीं कोई पार्षद भी विधानसभा में प्रवेश नहीं कर पाया. राजगढ़ से वर्ष 1952 में विधायक बने पंडित भवानी सहाय शर्मा नगर पालिका राजगढ़ के चेयरमैन बनने के लिए वर्ष 1953 में राजगढ़ में पार्षद का चुनाव लड़ा. लेकिन वो हार गए.

पढ़ें- हरियाणा के परिणाम ने बदल दी नेताओं की रणनीति, अब अलवर निकाय चुनाव में स्थानीय मुद्दे ही होंगे अहम

इसी तरह बानसूर विधानसभा क्षेत्र से वर्ष 1952 में विधायक रहे बद्री प्रसाद गुप्ता ने अलवर नगर परिषद चेयरमैन बनने के लिए 1953 में अलवर नगर परिषद का चुनाव लड़ा था. लेकिन, वो भी हार गए. वर्ष 1948 में अलवर नगर परिषद के चेयरमैन श्रीराम जरूर संसद तक पहुंचे. उनके अलावा कोई नाम सामने नहीं आया. जबकि छात्र राजनीति से कई नेता विधायक व मंत्री तक बने हैं.

अलवर. कहते हैं राजनीति में जमीन से जुड़ा हुआ नेता ऊपर तक जाता है. केंद्रीय गृह मंत्री समेत अनेक पदों को सुशोभित रहने वाले शिवराज पाटिल का नाम उन नेताओं में आता है. जो महाराष्ट्र के लातूर निकाय से पार्षद रहे. उसके बाद दिल्ली तक का सफर तय किया. लेकिन अलवर में यह बात यहां यपर उल्टी साबित होती नजर आ रही है.

अलवर के पार्षद व सभापति आज तक नहीं बन पाए विधायक और सांसद

अलवर नगर परिषद क्षेत्र के पार्षद आज तक विधायक व सांसद का चुनाव नहीं जीते. इतना ही नहीं जिन नेताओं ने चुनाव लड़ने का प्रयास किया, उनको मुंह की खानी पड़ी थी. इस मामले में अलवर नगर परिषद का इतिहास खासा खराब रहा है. जिले में निकाय चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो वर्ष 1948 में अलवर नगर परिषद में पहला चेयरमैन चुना गया. उससे पूर्व नगर परिषद अलवर में सरकारी अधिकारी की चेयरमैन मनोनीत होते थे. तब से अब तक अलवर नगर परिषद और जिले की अन्य नगर परिषद, नगर पालिकाओं के चेयरमैन निकायों की राजनीति से आगे नहीं बढ़ सके.

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हालांकि, भिवाड़ी नगर परिषद के सभापति रह चुके कुछ नेताओं ने विधानसभा की चौखट तक पहुंचने के लिए दल व निर्दलीय तौर पर विधानसभा का चुनाव लड़ा. लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके. इन नेताओं में अलवर नगर परिषद सभापति अजय अग्रवाल व भिवाड़ी नगर परिषद सभापति संदीप दायमा का नाम शामिल है. सभापति ही नहीं कोई पार्षद भी विधानसभा में प्रवेश नहीं कर पाया. राजगढ़ से वर्ष 1952 में विधायक बने पंडित भवानी सहाय शर्मा नगर पालिका राजगढ़ के चेयरमैन बनने के लिए वर्ष 1953 में राजगढ़ में पार्षद का चुनाव लड़ा. लेकिन वो हार गए.

पढ़ें- हरियाणा के परिणाम ने बदल दी नेताओं की रणनीति, अब अलवर निकाय चुनाव में स्थानीय मुद्दे ही होंगे अहम

इसी तरह बानसूर विधानसभा क्षेत्र से वर्ष 1952 में विधायक रहे बद्री प्रसाद गुप्ता ने अलवर नगर परिषद चेयरमैन बनने के लिए 1953 में अलवर नगर परिषद का चुनाव लड़ा था. लेकिन, वो भी हार गए. वर्ष 1948 में अलवर नगर परिषद के चेयरमैन श्रीराम जरूर संसद तक पहुंचे. उनके अलावा कोई नाम सामने नहीं आया. जबकि छात्र राजनीति से कई नेता विधायक व मंत्री तक बने हैं.

Intro:अलवर
देश-विदेश में अपनी अलग पहचान रखने वाला अलवर व अलवर की नगर परिषद के पार्षद व नेता आज तक विधायक व सांसद की कुर्सी तक नहीं पहुंच सके हैं। ऐसे में यहां के पार्षद व सभापति का राजनीतिक भविष्य यही तक सिमट कर रह गया है।


Body:कहते हैं राजनीति में जमीन से जुड़ा हुआ नेता ऊपर तक जाता है। केंद्रीय गृह मंत्री समेत अनेक पदों को सुशोभित रहने वाले शिवराज पाटिल का नाम उन नेताओं में आता है। जो महाराष्ट्र के लातूर निकाय के पार्षद रहे उसके बाद दिल्ली तक का सफर तय किया। लेकिन अलवर में यह कहां पर उल्टी साबित होती है। अलवर नगर परिषद क्षेत्र के पार्षद आज तक विधायक व सांसद का चुनाव नहीं जीते। इतना ही नहीं जिन नेताओं ने चुनाव लड़ने का प्रयास किया। उनको मुंह की खानी पड़ी थी। ऐसे में लगातार देश-विदेश में अपनी अलग पहचान रखने वाली अलवर नगर परिषद नेतृत्व ही रही है।

अलवर नगर परिषद का इतिहास खासा खराब रहा है। अलवर जिले में निकाय चुनाव का इतिहास पर नजर डालें तो वर्ष 1948 में अलवर नगर परिषद में पहला चेयरमैन चुना गया। उससे पूर्व नगर परिषद अलवर में सरकारी अधिकारी की चेयरमैन मनोनीत होते थे। तब से अब तक अलवर नगर परिषद और जिले की अन्य नगर परिषद नगर पालिकाओं के चेयरमैन निकायों की राजनीति से आगे नहीं बढ़ सके। हालांकि भिवाड़ी नगर परिषद के सभापति रह चुके कुछ नेताओं ने विधानसभा की चौखट तक पहुंचने के लिए दल व निर्दलीय तौर पर विधानसभा का चुनाव लड़ा। लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके। इन नेताओं में अलवर नगर परिषद सभापति अजय अग्रवाल व भिवाड़ी नगर परिषद सभापति संदीप दायमा का नाम शामिल है। सभापति ही नहीं कोई पार्षद भी विधानसभा में प्रवेश नहीं कर पाया। राजगढ़ से वर्ष 1952 में विधायक बने पंडित भवानी सहाय शर्मा नगर पालिका राजगढ़ का के चेयरमैन बनने के लिए वर्ष 1953 में राजगढ़ में पार्षद का चुनाव लड़ा। लेकिन वो हार गए।


Conclusion:इसी तरह बानसूर विधानसभा क्षेत्र से वर्ष 1952 में विधायक रहे बद्री प्रसाद गुप्ता ने अलवर नगर परिषद चेयरमैन बनने के लिए 1953 में अलवर नगर परिषद का चुनाव लड़ा था। लेकिन वो भी हार गए। वर्ष 1948 में अलवर नगर परिषद के चेयरमैन श्री राम जरूर सांसद तक पहुचे। उनके अलावा कोई नाम सामने नहीं आया। जबकि छात्र राजनीति से कई बड़े नेता विधायक व मंत्री तक बने हैं हारे के चुनाव के बाद करें तो भाजपा के मंत्री रहे हेम सिंह भडाना छात्र राजनीति से उठकर मंत्री तक के पद पर पहुंचे हैं। इसी तरह से कई अन्य नेता भी छात्र राजनीति से निकलकर मंत्री विधायक व सांसद तक बने हैं।
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