अलवर. कहते हैं राजनीति में जमीन से जुड़ा हुआ नेता ऊपर तक जाता है. केंद्रीय गृह मंत्री समेत अनेक पदों को सुशोभित रहने वाले शिवराज पाटिल का नाम उन नेताओं में आता है. जो महाराष्ट्र के लातूर निकाय से पार्षद रहे. उसके बाद दिल्ली तक का सफर तय किया. लेकिन अलवर में यह बात यहां यपर उल्टी साबित होती नजर आ रही है.
अलवर नगर परिषद क्षेत्र के पार्षद आज तक विधायक व सांसद का चुनाव नहीं जीते. इतना ही नहीं जिन नेताओं ने चुनाव लड़ने का प्रयास किया, उनको मुंह की खानी पड़ी थी. इस मामले में अलवर नगर परिषद का इतिहास खासा खराब रहा है. जिले में निकाय चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो वर्ष 1948 में अलवर नगर परिषद में पहला चेयरमैन चुना गया. उससे पूर्व नगर परिषद अलवर में सरकारी अधिकारी की चेयरमैन मनोनीत होते थे. तब से अब तक अलवर नगर परिषद और जिले की अन्य नगर परिषद, नगर पालिकाओं के चेयरमैन निकायों की राजनीति से आगे नहीं बढ़ सके.
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हालांकि, भिवाड़ी नगर परिषद के सभापति रह चुके कुछ नेताओं ने विधानसभा की चौखट तक पहुंचने के लिए दल व निर्दलीय तौर पर विधानसभा का चुनाव लड़ा. लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके. इन नेताओं में अलवर नगर परिषद सभापति अजय अग्रवाल व भिवाड़ी नगर परिषद सभापति संदीप दायमा का नाम शामिल है. सभापति ही नहीं कोई पार्षद भी विधानसभा में प्रवेश नहीं कर पाया. राजगढ़ से वर्ष 1952 में विधायक बने पंडित भवानी सहाय शर्मा नगर पालिका राजगढ़ के चेयरमैन बनने के लिए वर्ष 1953 में राजगढ़ में पार्षद का चुनाव लड़ा. लेकिन वो हार गए.
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इसी तरह बानसूर विधानसभा क्षेत्र से वर्ष 1952 में विधायक रहे बद्री प्रसाद गुप्ता ने अलवर नगर परिषद चेयरमैन बनने के लिए 1953 में अलवर नगर परिषद का चुनाव लड़ा था. लेकिन, वो भी हार गए. वर्ष 1948 में अलवर नगर परिषद के चेयरमैन श्रीराम जरूर संसद तक पहुंचे. उनके अलावा कोई नाम सामने नहीं आया. जबकि छात्र राजनीति से कई नेता विधायक व मंत्री तक बने हैं.