अलवर. अलवर की प्याज 'लाल प्याज' के नाम से देश-विदेश में अपनी खास पहचान रखती है. जिले में इस समय प्याज के बीज तैयार करने का काम चल रहा है. इस साल 30 से 35 हजार हैक्टेयर से ज्यादा एरिया में प्याज की पैदावार की उम्मीद (Bumper production of onion expected in Alwar) है. इस बार डीजल के दाम और देश के प्याज उत्पादक राज्यों में सामान्य से ज्यादा बारिश के पूर्वानुमान के चलते प्याज खरीदारों के अलवर मंडी का रुख करने के आसार हैं. इससे लगता है कि इस बार पूरा देश अलवर की लाल प्याज खाएगा.
बीते साल के क्या रहे हालात: साल 2020 में प्याज की किसानों को बेहतर दाम मिले थे. प्याज 100 रुपए किलो से ज्यादा भाव में बिकी. इसलिए साल 2021 में किसानों ने प्याज की ज्यादा पैदावार की, लेकिन बारिश ज्यादा होने के कारण प्याज की 70 प्रतिशत फसल खराब हो गई थी. अलवर क्षेत्र की प्याज में जलेबी रोग लग गया था. ऐसे में किसानों को खासा नुकसान हुआ. लेकिन इस साल किसान प्याज की पैदावार की बेहतर तैयारी कर रहा है. अलवर में साल 2019 में प्याज का रकबा 18500 हैक्टेयर था, जो साल 2020 में बढ़कर 20500 हैक्टेयर हो गया. साल 2021 में 23 हजार हैक्टेयर में प्याज की पैदावार हुई थी. लेकिन बारिश ज्यादा होने के कारण प्याज में जलेबी रोग लग गया था. जिसके चलते किसान की 70 प्रतिशत फसल खराब हो गई थी.
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अलवर में एक बीघा खेत में 4 से 5 हजार क्विंटल प्याज का बीज तैयार होता है. इस समय प्याज के बीज के दाम 4 से 5 हजार रुपए क्विंटल चल रहा है. लाल प्याज की बुवाई जुलाई, अगस्त, सितंबर व अक्टूबर माह में की जाती है. किसान को एक बीघा जमीन में लाल प्याज की फसल पैदावार में 60 से 70 हजार रुपए की लागत आती है. इस साल 30 से 35 हजार हैक्टेयर से ज्यादा एरिया में प्याज की पैदावार की उम्मीद है. जिले की आर्थिक व्यवस्था लाल प्याज पर टिकी है. जिले की आर्थिक उन्नति का आधार लाल प्याज होने से किसानों का इस फसल पर अधिक ध्यान रहता है. परम्परागत फसल के साथ किसान लाल प्याज की फसल को प्राथमिकता देते हैं.
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अलवर की मंडी देश में नासिक के बाद प्याज की दूसरी सबसे बड़ी मंडी है. अलवर मंडी से सीजन के समय रोजाना कोलकाता, उड़ीसा, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, झारखंड, उत्तराखंड व नेपाल तक सप्लाई होती है. डीजल के दाम बढ़ रहे हैं. ऐसे में इस साल जम्मू कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत के सभी राज्यों के व्यापारी प्याज खरीदने के लिए अलवर मंडी पहुंचेंगे. क्योंकि अलवर एनसीआर का हिस्सा है. अलवर से मालभाड़ा महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश से कम पड़ता है. ऐसे में साफ है कि पूरा देश इस साल अलवर की प्याज खाएगा.
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अलवर पर क्यों निर्भर रहेगा पूरा देश: देश में सबसे ज्यादा प्याज की पैदावार महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश में होती है. आमतौर पर अगस्त, सितंबर व अक्टूबर माह की बारिश के दौरान महाराष्ट्र व कर्नाटक की फसल खराब हो जाती है. ऐसे में पूरा देश केवल अलवर की फसल पर निर्भर रहता है. इस बार मौसम विभाग के अनुसार सामान्य से ज्यादा बारिश की संभावना जताई जा रही है. ऐसे में अलवर की प्याज की फसल की डिमांड रहेगी, तो दूसरी तरफ व्यापारियों को अलवर से प्याज ले जाने में आसानी रहेगी. क्योंकि अलवर से स्पेशल प्याज की ट्रेन व मालगाड़ी भी चलाई जाती है.