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तालाब : डार्क जोन में आता है अलवर...अगर अब भी नहीं जागे तो खड़ा हो जाएगा बड़ा संकट

अलवर जिला डार्क जोन घोषित हो चुका है. जिले में सतही पानी के कोई इंतजाम नहीं हैं. पूरा जिला ट्यूबवेल के भरोसे चल रहा है. आए दिन जलदाय विभाग के ट्यूबवेल खराब होते हैं. ट्यूबवेल को रिचार्ज करने वाले प्राकृतिक सोर्स ही समाप्त हो रहे हैं. बहरोड़ और नीमराणा क्षेत्र में हालात ज्यादा खराब हैं. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने नीमराणा क्षेत्र के मांडण गांव के तालाबों की ग्राउंड जीरो रिपोर्ट तैयार की.

डार्क जोन में आता है अलवर...अगर अब भी नहीं जागे तो खड़ा हो जाएगा बड़ा संकट
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Published : Jul 26, 2019, 1:51 PM IST

Updated : Jul 26, 2019, 2:56 PM IST

अलवर. जिले में 247 बांध, बावड़ी और तालाब हैं. इनमें से केवल दो बांध में पानी है जबकि अन्य बांध और तालाब पूरी तरह से सूख चुके हैं. ग्रामीण क्षेत्र में पानी के लिए तालाब खासे अहम होते थे. तालाब के सूखने से गांव में हालात ज्यादा खराब हैं. अलवर में ज्यादा स्थिति बहरोड़, नीमराणा और भिवाड़ी सहित औद्योगिक क्षेत्र में हैं. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने नीमराणा क्षेत्र का जायजा लिया.

नीमराणा क्षेत्र के मांडल गांव में राजा महाराजाओं के समय के तालाब सूख चुके हैं. तालाबों की बनावट अपने आप में उनकी विशालता बयां करती है. ग्रामीणों ने बताया कि गांव के तालाबों से आसपास के कई गांव के लोगों का जीवन यापन होता था लेकिन तालाब सूखने से अब ग्रामीणों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में सभी को एक प्रयास करने की आवश्यकता है. समय रहते अगर हम नहीं चाहते तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे.

भूमि के जलस्तर को रिचार्ज करने में सबसे बेहतर तालाब माने जाते थे. इसलिए सभी गांव में जरूरत के हिसाब से छोटा बड़ा तालाब होता था. आसपास के पहाड़ों का पानी इन तालाबों में आता था और उस पानी से कृषि कार्य सहित सभी काम काज होते थे लेकिन तालाब सूखने से जिले में पानी संकट मंडराने लगा है.

डार्क जोन में आता है अलवर...अगर अब भी नहीं जागे तो खड़ा हो जाएगा बड़ा संकट

जनसंख्या घनत्व के हिसाब से जयपुर के बाद राजस्थान में अलवर दूसरा बड़ा जिला है. यहां 11 विधानसभा और चार लोकसभा क्षेत्र लगते हैं. अलवर में छोटे-बड़े 12 उद्योगी क्षेत्र हैं. जिनमें हजारों औद्योगिक इकाइयां हैं. देशभर के लोग रोजगार के लिए अलवर आते हैं. ऐसे में सभी की जरूरत के हिसाब से पानी अति आवश्यक है लेकिन जिले में सतही जल के इंतजाम नहीं होने के कारण हालात दिनोंदिन खराब हो रहे हैं.

अलवर के बहरोड, नीमराना, भिवाड़ी, तिजारा, थानागाजी, बानसूर, मंडावर सहित कई क्षेत्रों में भूमिगत जलस्तर काफी नीचे पहुंच गया है. जलदाय विभाग को भी 700 से 800 फिट गहरी बोरिंग खोजनी पड़ती हैं. कई बार अलवर में चंबल और यमुना का पानी लाने की योजना तैयार हुई लेकिन सालों से यह योजनाएं केवल फाइलों तक ही सिमट कर रह गई.

नीमराणा के मण्डन गांव में तीन हजार की आबादी है. वहां के तालाब में हमेशा पूरे साल पानी रहता था. तालाब तक पानी लाने के लिए राजा महाराजाओं ने पूरे इंतजाम किए थे. उसके लिए अलग से रास्ता और नहर बनी हुई है लेकिन समय के साथ व्यवस्था बेहतर नहीं होने के कारण तालाब अपनी पहचान खोते जा रहे हैं. ऐसे में सभी को मिलकर आगे आना होगा और पानी बचाने के लिए और भूमिगत जलस्तर बढ़ाने के लिए प्राकृतिक सोर्स तालाब, बावड़ी और बांधों को बचाना होगा. जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी बेहतर तरह से अपना जीवन यापन कर सके.

अलवर. जिले में 247 बांध, बावड़ी और तालाब हैं. इनमें से केवल दो बांध में पानी है जबकि अन्य बांध और तालाब पूरी तरह से सूख चुके हैं. ग्रामीण क्षेत्र में पानी के लिए तालाब खासे अहम होते थे. तालाब के सूखने से गांव में हालात ज्यादा खराब हैं. अलवर में ज्यादा स्थिति बहरोड़, नीमराणा और भिवाड़ी सहित औद्योगिक क्षेत्र में हैं. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने नीमराणा क्षेत्र का जायजा लिया.

नीमराणा क्षेत्र के मांडल गांव में राजा महाराजाओं के समय के तालाब सूख चुके हैं. तालाबों की बनावट अपने आप में उनकी विशालता बयां करती है. ग्रामीणों ने बताया कि गांव के तालाबों से आसपास के कई गांव के लोगों का जीवन यापन होता था लेकिन तालाब सूखने से अब ग्रामीणों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में सभी को एक प्रयास करने की आवश्यकता है. समय रहते अगर हम नहीं चाहते तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे.

भूमि के जलस्तर को रिचार्ज करने में सबसे बेहतर तालाब माने जाते थे. इसलिए सभी गांव में जरूरत के हिसाब से छोटा बड़ा तालाब होता था. आसपास के पहाड़ों का पानी इन तालाबों में आता था और उस पानी से कृषि कार्य सहित सभी काम काज होते थे लेकिन तालाब सूखने से जिले में पानी संकट मंडराने लगा है.

डार्क जोन में आता है अलवर...अगर अब भी नहीं जागे तो खड़ा हो जाएगा बड़ा संकट

जनसंख्या घनत्व के हिसाब से जयपुर के बाद राजस्थान में अलवर दूसरा बड़ा जिला है. यहां 11 विधानसभा और चार लोकसभा क्षेत्र लगते हैं. अलवर में छोटे-बड़े 12 उद्योगी क्षेत्र हैं. जिनमें हजारों औद्योगिक इकाइयां हैं. देशभर के लोग रोजगार के लिए अलवर आते हैं. ऐसे में सभी की जरूरत के हिसाब से पानी अति आवश्यक है लेकिन जिले में सतही जल के इंतजाम नहीं होने के कारण हालात दिनोंदिन खराब हो रहे हैं.

अलवर के बहरोड, नीमराना, भिवाड़ी, तिजारा, थानागाजी, बानसूर, मंडावर सहित कई क्षेत्रों में भूमिगत जलस्तर काफी नीचे पहुंच गया है. जलदाय विभाग को भी 700 से 800 फिट गहरी बोरिंग खोजनी पड़ती हैं. कई बार अलवर में चंबल और यमुना का पानी लाने की योजना तैयार हुई लेकिन सालों से यह योजनाएं केवल फाइलों तक ही सिमट कर रह गई.

नीमराणा के मण्डन गांव में तीन हजार की आबादी है. वहां के तालाब में हमेशा पूरे साल पानी रहता था. तालाब तक पानी लाने के लिए राजा महाराजाओं ने पूरे इंतजाम किए थे. उसके लिए अलग से रास्ता और नहर बनी हुई है लेकिन समय के साथ व्यवस्था बेहतर नहीं होने के कारण तालाब अपनी पहचान खोते जा रहे हैं. ऐसे में सभी को मिलकर आगे आना होगा और पानी बचाने के लिए और भूमिगत जलस्तर बढ़ाने के लिए प्राकृतिक सोर्स तालाब, बावड़ी और बांधों को बचाना होगा. जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी बेहतर तरह से अपना जीवन यापन कर सके.

Intro:अलवर।
अलवर जिला डार्क जोन घोषित हो चुका है। जिले में सताही पानी के कोई इंतजाम नहीं है। पूरा जिला ट्यूबवेल के भरोसे चल रहा है। आए दिन जलदाय विभाग के ट्यूबवेल खराब होते हैं। ट्यूबवेल को रिचार्ज करने वाले प्राकृतिक सोर्स ही समाप्त हो रहे हैं। बहरोड़ व नीमराना क्षेत्र में हालात ज्यादा खराब है। ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने नीमराणा क्षेत्र के मांडण गांव के तालाबों की ग्राउंड जीरो रिपोर्ट तैयार की।


Body:अलवर जिले में 247 बांध बावड़ी व तालाब है। इनमें से केवल दो बांध में पानी है। जबकि अन्य बांध व तालाब पूरी तरह से सूख चुके हैं। ग्रामीण क्षेत्र में पानी के लिए तालाब खासे अहम होते थे। तालाब के सूखने से गांव में हालात ज्यादा खराब है। अलवर में ज्यादा स्थिति बहरोड, नीमराना व भिवाड़ी सहित औद्योगिक क्षेत्र में है। ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने नीमराणा क्षेत्र का जायजा लिया।

नीमराणा क्षेत्र के मांडल गांव में राजा महाराजाओं के समय के तालाब सूख चुके हैं तालाबों की बनावट अपने आप में उनकी विशालता बयां करती है। ग्रामीणों ने बताया कि गांव के तालाबों से आसपास के कई गांव के लोगों का जीवन यापन होता था। लेकिन तालाब सूखने से अब ग्रामीणों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में सभी को एक प्रयास करने की आवश्यकता है। समय रहते अगर हम नहीं चाहते तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे।

भूमिका जलस्तर का रिचार्ज करने में सबसे बेहतर तालाब माने जाते थे। इसलिए सभी गांव में जरूरत के हिसाब से छोटा बड़ा तालाब होता था। आसपास के पहाड़ों का पानी इन तालाबों में आता था व उस पानी से कृषि कार्य सहित सभी काम काज होते थे। लेकिन तालाब सूखने से जिले में पानी संकट मंडराने लगा है।


Conclusion:जनसंख्या घनत्व के हिसाब से जयपुर के बाद राजस्थान में अलवर दूसरा बड़ा जिला है। यहां 11 विधानसभा और चार लोकसभा क्षेत्र लगते हैं। अलवर में छोटे-बड़े 12 उद्योगी क्षेत्र हैं। जिनमें हजारों औद्योगिक इकाइयां हैं। देशभर के लोग रोजगार के लिए अलवर आते हैं। ऐसे में सभी की जरूरत के हिसाब से पानी अति आवश्यक है। लेकिन जिले में सतही जल के इंतजाम नहीं होने के कारण हालात दिनोंदिन खराब हो रहे हैं।

अलवर के बहरोड, नीमराना, भिवाड़ी, तिजारा, थानागाजी, बानसूर, मंडावर सहित कई क्षेत्रों में भूमिगत जलस्तर काफी नीचे पहुंच गया है। जलदाय विभाग को भी 700 से 800 फिट गहरी बोरिंग खोजनी पड़ती हैं। कई बार अलवर में चंबल व यमुना का पानी लाने की योजना तैयार हुई। लेकिन सालों से यह योजनाएं केवल फाइलों तक ही सिमट कर रह गई।

नीमराणा के मण्डन गांव में तीन हजार की आबादी है। वहां के तालाब में हमेशा पूरे साल पानी रहता था। तालाब तक पानी लाने के लिए राजा महाराजाओं ने पूरे इंतजाम किए थे। उसके लिए अलग से रास्ता व नहर बनी हुई है। लेकिन समय के साथ रख रखा व्यवस्था बेहतर नहीं होने के कारण तालाब अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। ऐसे में सभी को मिलकर आगे आना होगा व पानी बचाने के लिए व भूमिगत जलस्तर बढ़ाने के लिए प्राकृतिक सोर्स तालाब, बावड़ी व बांधों को बचाना होगा। जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी बेहतर तरह से अपना जीवन यापन कर सके।

बाइट- ग्रामीण
पीटीसी- हिमांशु शर्मा
Last Updated : Jul 26, 2019, 2:56 PM IST
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