ETV Bharat / state

Sheetala Ashtami 2023 : कुछ इस तरह बना था अजमेर में पहला शीतला माता का मंदिर, अब जन आस्था का है बड़ा केंद्र - 15 मार्च को मनाई जाएगी शीतला अष्टमी

शीतला माता के स्वप्न दर्शन और आदेश के बाद अजमेर में पहला शीतला माता का मंदिर बना था. यह मंदिन अब जन आस्था का बड़ा केंद्र हैं. यहां जानिए इस मंदिर की दिलचस्प कहानी...

Sheetala Ashtami 2023
शीतला माता मंदिर अजमेर
author img

By

Published : Mar 12, 2023, 3:40 PM IST

अजमेर में पहला शीतला माता का मंदिर

अजमेर. शीतला अष्टमी का पर्व चैत्र माह की अष्टमी को आती है. हिन्दू धर्म में शीतला अष्टमी का धार्मिक और पौराणिक महत्व है. अजमेर में भी शीतला अष्टमी का पर्व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. इस दिन माता शीतला के मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है. अजमेर में सुभाष उद्यान के समीप गुलाब बाग में भी शीतला माता का 100 वर्ष पुराना मंदिर है. बताया जाता है कि यह जिले का पहला शीतला माता का मंदिर है जो जन आस्था का बड़ा केंद्र बन चुका है.

शीतला अष्टमी की तिथि को लेकर इस बार विरोधाभास है, लेकिन ज्यादातर शीतला माता के मंदिरों में 15 मार्च को ही शीतला अष्टमी की पूजा की जाएगी. 14 मार्च को घरों में बसोडा यानी ठंडा भोजन बनेगा. इस भोजन को अगले दिन शीतला माता की विधिवत पूजा अर्चना कर भोग अर्पित किया जाएगा. कई प्राचीन शीतला माता मंदिरों पर चैत्र माह अष्टमी के दिन मेलों का आयोजन होगा. अजमेर में सुभाष उद्यान के सामने प्राचीन शीतला माता का मंदिर लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है. शीतला अष्टमी के दिन रात से ही यहां श्रद्धालुओं का पूजा-अर्चना करने के लिए तांता लग जाता है. मंदिर के बाहर मेला लगता है. प्राचीन शीतला माता मंदिर जिस स्थान पर है, उसे गुलाबबाग कहते हैं. शीतला माता मंदिर की स्थापना को लेकर भी एक रोचक कहानी है.

पढ़ें : Sanwariya Seth Temple: श्री सांवरिया सेठ के भंडार से निकले 10 करोड़ से ज्यादा रुपए

अजमेर में गुलाब बाग स्थित प्राचीन शीतला माता का मंदिर 100 वर्ष से भी अधिक पुराना है. शीतला माता का मंदिर सेठ कानमल लोढ़ा ने बनवाया था. बकायदा मंदिर के लिए सेठ का नंबर लोढ़ा ने अपनी मां गुलाब बाई के नाम से जमीन खरीदी थी. इस जगह का नाम भी उन्होंने अपनी मां के नाम से ही रखा. सेठ कानमल लोढ़ा के वंशज रणजीत मल लोढ़ा बताते हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी मंदिर से जुड़े कुछ रोचक किस्से के बारे में सुनते आए हैं. लोढ़ा ने बताया कि सेठ कानमल लोढा धार्मिक प्रवृत्ति के थे. उन दिनों कई बीमारियां लोगों में फैल रही थी. खासकर बच्चों में होली के बाद बोदरी (चिकन पॉक्स) की बीमारी फैल रही थी. गर्मी के मौसम की शुरुआत भी हो चुकी थी.

बताया जाता है कि सेठ कान मल लोढ़ा को शीतला माता ने स्वप्न में दर्शन देकर मंदिर निर्माण का आदेश दिया था, तब सेठ कानमल लोढ़ा ने सुभाष उद्यान के सामने मंदिर निर्माण के लिए जमीन खरीदी थी. उन्होंने इस जगह को अपनी माता के नाम से गुलाब बाग नाम रखा. बताया जाता है कि मंदिर में विराजमान शीतला माता की प्रतिमा नागौर से लाई गई थी. सेठ कानमल लोढा के वंशज रणजीत बताते है कि अजमेर जिले में शीतला माता का यह पहला मंदिर था, जहां जिले भर से लोग माता के दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते थे। उस दौर में माता की पूजा-अर्चना के लिए आने वाले श्रद्धालुओं और उनके परिजनों को बीमारी से मुक्ति मिली तो मंदिर की ख्याति भी बढ़ती गई. यही वजह कि शीतला अष्टमी पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता की पूजा-अर्चना के लिए आते हैं.

पहले सेठ कानमल लोढ़ा के वंशज करते हैं पूजा : लोढ़ा बताते हैं कि जिस दिन घरों में ठंडा भोजन बनाया जाता है, उसी रात 12 बजे लोढ़ा परिवार की ओर से पहले पूजा की जाती है. इसके बाद श्रद्धालुओं के मंदिर में पूजा-अर्चना करने का सिलसिला जारी रहता है. रातभर मंदिर में श्रद्धालुओं की कतार लगी रहती है. श्रद्धालु घरों से शीतला माता पर अर्पित करने के लिए शीतल जल और शीतल भोजन, दूध, दही अर्पित करने के लिए लेकर आते हैं. उन्होंने बताया कि मान्यता के अनुसार मंदिर में माली और कुम्हार समाज का व्यक्ति ही पुजारी होता है.

लंपी बीमारी में गायों को पिलाया गया था पानी : सेठ कानमल लोढ़ा के वंशज रणजीत मल लोढ़ा बताते हैं कि शारारिक रोग से मुक्ति के लिए श्रद्धालु शीतला माता की प्रतिमा पर चढ़ाया गया. शीतल जल भरकर अपने साथ ले जाते हैं. लोगों की आस्था और विश्वास है कि इस जल के सेवन से रोग से मुक्ति मिलती है. गायों में आई लंपी बीमारी के वक़्त भी कई श्रद्धालु मंदिर से जल लेकर गए और उस जल को गायों को पिलाने से उन्हें लाभ मिला है.

महिलाएं कहती हैं कहानियां : शीतला अष्टमी से जुड़ी कई रोचक किंवदंतियां हैं. इनमें शीतला माता की कथा और कहानियां भी शामिल है. शीतलाष्टमी पर महिलाएं विधिवत रूप से शीतला माता की पूजा-अर्चना करने के बाद एक जगह पर सामूहिक रूप से बैठती हैं. इनमें से आयु में वरिष्ठ महिला अन्य महिलाओं को शीतला माता की कहानी सुनाती हैं. माना जाता है कि शीतला माता की कथा सुनने से उनकी कृपा मिलती है और परिवार में रोग, दोष से मुक्ति मिलती है. परिवार में प्रेम, सुख और शांति का वास होता है.

15 मार्च को मनाई जाएगी शीतला अष्टमी : लोढ़ा बताते हैं कि शीतला माता मंदिर में शीतला अष्टमी 15 मार्च को मनाई जाएगी. अधिकृत पंचांग के अनुसार ही शीतलाष्टमी मनाने का 15 मार्च को निर्णय लिया गया है. 14 मार्च की रात्रि 12 बजे के बाद मंदिर में पूजा-अर्चना का दौर शुरू होगा जो अगले दिन तक चलेगा. उन्होंने बताया कि इस बार शीतलाष्टमी की तिथि को लेकर विरोधाभास होने के कारण संभवत: 2 दिन मेला रहेगा.

अजमेर में पहला शीतला माता का मंदिर

अजमेर. शीतला अष्टमी का पर्व चैत्र माह की अष्टमी को आती है. हिन्दू धर्म में शीतला अष्टमी का धार्मिक और पौराणिक महत्व है. अजमेर में भी शीतला अष्टमी का पर्व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. इस दिन माता शीतला के मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है. अजमेर में सुभाष उद्यान के समीप गुलाब बाग में भी शीतला माता का 100 वर्ष पुराना मंदिर है. बताया जाता है कि यह जिले का पहला शीतला माता का मंदिर है जो जन आस्था का बड़ा केंद्र बन चुका है.

शीतला अष्टमी की तिथि को लेकर इस बार विरोधाभास है, लेकिन ज्यादातर शीतला माता के मंदिरों में 15 मार्च को ही शीतला अष्टमी की पूजा की जाएगी. 14 मार्च को घरों में बसोडा यानी ठंडा भोजन बनेगा. इस भोजन को अगले दिन शीतला माता की विधिवत पूजा अर्चना कर भोग अर्पित किया जाएगा. कई प्राचीन शीतला माता मंदिरों पर चैत्र माह अष्टमी के दिन मेलों का आयोजन होगा. अजमेर में सुभाष उद्यान के सामने प्राचीन शीतला माता का मंदिर लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है. शीतला अष्टमी के दिन रात से ही यहां श्रद्धालुओं का पूजा-अर्चना करने के लिए तांता लग जाता है. मंदिर के बाहर मेला लगता है. प्राचीन शीतला माता मंदिर जिस स्थान पर है, उसे गुलाबबाग कहते हैं. शीतला माता मंदिर की स्थापना को लेकर भी एक रोचक कहानी है.

पढ़ें : Sanwariya Seth Temple: श्री सांवरिया सेठ के भंडार से निकले 10 करोड़ से ज्यादा रुपए

अजमेर में गुलाब बाग स्थित प्राचीन शीतला माता का मंदिर 100 वर्ष से भी अधिक पुराना है. शीतला माता का मंदिर सेठ कानमल लोढ़ा ने बनवाया था. बकायदा मंदिर के लिए सेठ का नंबर लोढ़ा ने अपनी मां गुलाब बाई के नाम से जमीन खरीदी थी. इस जगह का नाम भी उन्होंने अपनी मां के नाम से ही रखा. सेठ कानमल लोढ़ा के वंशज रणजीत मल लोढ़ा बताते हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी मंदिर से जुड़े कुछ रोचक किस्से के बारे में सुनते आए हैं. लोढ़ा ने बताया कि सेठ कानमल लोढा धार्मिक प्रवृत्ति के थे. उन दिनों कई बीमारियां लोगों में फैल रही थी. खासकर बच्चों में होली के बाद बोदरी (चिकन पॉक्स) की बीमारी फैल रही थी. गर्मी के मौसम की शुरुआत भी हो चुकी थी.

बताया जाता है कि सेठ कान मल लोढ़ा को शीतला माता ने स्वप्न में दर्शन देकर मंदिर निर्माण का आदेश दिया था, तब सेठ कानमल लोढ़ा ने सुभाष उद्यान के सामने मंदिर निर्माण के लिए जमीन खरीदी थी. उन्होंने इस जगह को अपनी माता के नाम से गुलाब बाग नाम रखा. बताया जाता है कि मंदिर में विराजमान शीतला माता की प्रतिमा नागौर से लाई गई थी. सेठ कानमल लोढा के वंशज रणजीत बताते है कि अजमेर जिले में शीतला माता का यह पहला मंदिर था, जहां जिले भर से लोग माता के दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते थे। उस दौर में माता की पूजा-अर्चना के लिए आने वाले श्रद्धालुओं और उनके परिजनों को बीमारी से मुक्ति मिली तो मंदिर की ख्याति भी बढ़ती गई. यही वजह कि शीतला अष्टमी पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता की पूजा-अर्चना के लिए आते हैं.

पहले सेठ कानमल लोढ़ा के वंशज करते हैं पूजा : लोढ़ा बताते हैं कि जिस दिन घरों में ठंडा भोजन बनाया जाता है, उसी रात 12 बजे लोढ़ा परिवार की ओर से पहले पूजा की जाती है. इसके बाद श्रद्धालुओं के मंदिर में पूजा-अर्चना करने का सिलसिला जारी रहता है. रातभर मंदिर में श्रद्धालुओं की कतार लगी रहती है. श्रद्धालु घरों से शीतला माता पर अर्पित करने के लिए शीतल जल और शीतल भोजन, दूध, दही अर्पित करने के लिए लेकर आते हैं. उन्होंने बताया कि मान्यता के अनुसार मंदिर में माली और कुम्हार समाज का व्यक्ति ही पुजारी होता है.

लंपी बीमारी में गायों को पिलाया गया था पानी : सेठ कानमल लोढ़ा के वंशज रणजीत मल लोढ़ा बताते हैं कि शारारिक रोग से मुक्ति के लिए श्रद्धालु शीतला माता की प्रतिमा पर चढ़ाया गया. शीतल जल भरकर अपने साथ ले जाते हैं. लोगों की आस्था और विश्वास है कि इस जल के सेवन से रोग से मुक्ति मिलती है. गायों में आई लंपी बीमारी के वक़्त भी कई श्रद्धालु मंदिर से जल लेकर गए और उस जल को गायों को पिलाने से उन्हें लाभ मिला है.

महिलाएं कहती हैं कहानियां : शीतला अष्टमी से जुड़ी कई रोचक किंवदंतियां हैं. इनमें शीतला माता की कथा और कहानियां भी शामिल है. शीतलाष्टमी पर महिलाएं विधिवत रूप से शीतला माता की पूजा-अर्चना करने के बाद एक जगह पर सामूहिक रूप से बैठती हैं. इनमें से आयु में वरिष्ठ महिला अन्य महिलाओं को शीतला माता की कहानी सुनाती हैं. माना जाता है कि शीतला माता की कथा सुनने से उनकी कृपा मिलती है और परिवार में रोग, दोष से मुक्ति मिलती है. परिवार में प्रेम, सुख और शांति का वास होता है.

15 मार्च को मनाई जाएगी शीतला अष्टमी : लोढ़ा बताते हैं कि शीतला माता मंदिर में शीतला अष्टमी 15 मार्च को मनाई जाएगी. अधिकृत पंचांग के अनुसार ही शीतलाष्टमी मनाने का 15 मार्च को निर्णय लिया गया है. 14 मार्च की रात्रि 12 बजे के बाद मंदिर में पूजा-अर्चना का दौर शुरू होगा जो अगले दिन तक चलेगा. उन्होंने बताया कि इस बार शीतलाष्टमी की तिथि को लेकर विरोधाभास होने के कारण संभवत: 2 दिन मेला रहेगा.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.