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Health Tips: खिलौना दिखाने और बोलने पर भी अगर बच्चा न दे प्रतिक्रिया तो हो सकता है इस बीमारी का खतरा...

खिलौना दिखाने पर भी बच्चा अगर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे या उसे बोलने में परेशानी है तो ये ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर हो सकता है. जानिए क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट व काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ से इसके उपचार पद्धति के (Treatment Method for Autism Spectrum Disorder) बारे में.

Autism Spectrum Disorder
Autism Spectrum Disorder
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Published : Apr 11, 2023, 5:38 PM IST

क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट व काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़

अजमेर. बाल मनोरोग कई तरह के होते हैं. इनमें ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर भी एक प्रकार का बाल मनोरोग है. ऑटिज्म बच्चों के मानसिक विकास पर असर डालता है. मसलन बच्चों के बोलने और लोगों से जुड़ने की क्षमता उनमें कम होती है. हालांकि, इसका उपचार संभव है, लेकिन सही समय पर पहल की जरूरत होती है. क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट व काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ बताती हैं कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक प्रकार का मानसिक रोग है. हर व्यक्ति में इसके लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं. समय रहते ऑटिज्म का इलाज मिलने पर रोगी का भविष्य सुधर सकता है.

हालांकि, इसके लक्षण शुरुआती बाल्यकाल से ही दिखने लगते हैं. ऑटिज्म के कारण बच्चों का मानसिक विकास रुकने लगता है. डॉ. मनीषा बताती हैं कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर अलग-अलग स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर को मिलकर बना है. ये पांच प्रकार के होते हैं. एस्पेगर ( Asperger) सिंड्रोम रेट ( rett ) सिंड्रोम, चाइल्डहुड डिसइंटीग्रेटेड सिंड्रोम, केंनर्स ( kenner) सिंड्रोम, परवेसिव (pervasive) डेवलपमेंटल डिसऑर्डर है.

ये सभी पांचों स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर समान प्रतीत होते हैं. लिहाजा इनको ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर कहते हैं. डॉ. गौड़ बताती हैं कि ऑटिज्म दो वर्ष की आयु के बाद बच्चों में देखा और पहचाना जा सकता है. ये अनुवांशिक और न्यूरोलॉजिकल समस्या भी हो सकता है. साथ ही उन्होंने कहा कि ऑटिज्म एक प्रकार का ऐसा मनोरोग है, जो ताउम्र रहता है, लेकिन इसको उपचार व थेरेपी से कम किया जा सकता है.

इसे भी पढ़ें - Health Tips : अगर आपके शरीर में कहीं है गुच्छे नुमा पानी के छाले तो तुरंत करें इलाज, जानिए चर्म रोग विशेषज्ञ से हेल्थ टिप्स

ऑटिज्म के लक्षण - डॉ. गौड़ ने बताया कि 0 से 2 साल तक के सामान्य बच्चों की तरह ही ऑटिज्म पीड़ित बच्चों का भी विकास होता है. लेकिन एक समय के बाद उनमें कुछ बदलाव आने लगते हैं. मसलन बच्चे में बोलने की क्षमता कम होने लगती है, बच्चा आई कांटेक्ट नहीं बना पाता, इमोशन एक्सप्रेस नहीं कर पाता है. वहीं, ऑटिज्म पीड़ित बच्चे अपनी बातों को बार-बार दोहराते हैं. प्रश्न किए जाने पर ठीक से जवाब भी नहीं दे पाते हैं. इसके अलावा भीड़ में वो खुद को असहज महसूस करते हैं. लेकिन परिवार के सदस्यों के बीच वो ठीक रहते हैं. इसके इतर ऑटिज्म पीड़ित बच्चे बार-बार एक ही खेल को खेलते रहते हैं.

आप जान सकते हैं ऑटिज्म का स्तर - क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट व काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ बताती हैं कि हर माता-पिता को अपने बच्चे के शुरुआती जीवन और उसकी गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए. बच्चे में कुछ भी असामान्य सा प्रतीत होने पर उसके लिए चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए. यदि बच्चे में बताए गए लक्षण प्रतीत होते हैं तो मनोवैज्ञानिक से परामर्श लेना चाहिए. उन्होंने बताया कि ऑटिज्म का असर बच्चे पर कितना है, इसके लिए जांच की जाती है. डॉ. गौड़ बताती हैं कि सामान्य तौर पर 9 माह के बच्चे को नाम से पुकारने पर वो प्रतिक्रिया देता है, लेकिन ऑटिज्म पीड़ित बच्चा ऐसा नही कर पाता है. ऐसे बच्चों में बोलने की समस्या होती है. घर में अनजान व्यक्ति के आने पर भी वो परेशान होने लगता है.

ऑटिज्म के साथ ये भी रोग होने की रहती है संभावना - डॉ. गौड़ बताती हैं कि ऑटिज्म के साथ बच्चों को अन्य परेशानियां भी हो सकती है. मसलन एडीएचडी, अवसाद भी ऑटिज्म बच्चों को हो सकता है. ऐसे में बच्चों को सही समय पर उपचार और थेरेपी मिले तो वो भी सामान्य जीवन जी सकते हैं. उन्होंने बताया कि ऑक्यूपेशनल स्पीच और लैंग्वेज थेरेपी के अलावा अभिभावकों को भी इसके लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है.

क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट व काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़

अजमेर. बाल मनोरोग कई तरह के होते हैं. इनमें ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर भी एक प्रकार का बाल मनोरोग है. ऑटिज्म बच्चों के मानसिक विकास पर असर डालता है. मसलन बच्चों के बोलने और लोगों से जुड़ने की क्षमता उनमें कम होती है. हालांकि, इसका उपचार संभव है, लेकिन सही समय पर पहल की जरूरत होती है. क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट व काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ बताती हैं कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक प्रकार का मानसिक रोग है. हर व्यक्ति में इसके लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं. समय रहते ऑटिज्म का इलाज मिलने पर रोगी का भविष्य सुधर सकता है.

हालांकि, इसके लक्षण शुरुआती बाल्यकाल से ही दिखने लगते हैं. ऑटिज्म के कारण बच्चों का मानसिक विकास रुकने लगता है. डॉ. मनीषा बताती हैं कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर अलग-अलग स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर को मिलकर बना है. ये पांच प्रकार के होते हैं. एस्पेगर ( Asperger) सिंड्रोम रेट ( rett ) सिंड्रोम, चाइल्डहुड डिसइंटीग्रेटेड सिंड्रोम, केंनर्स ( kenner) सिंड्रोम, परवेसिव (pervasive) डेवलपमेंटल डिसऑर्डर है.

ये सभी पांचों स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर समान प्रतीत होते हैं. लिहाजा इनको ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर कहते हैं. डॉ. गौड़ बताती हैं कि ऑटिज्म दो वर्ष की आयु के बाद बच्चों में देखा और पहचाना जा सकता है. ये अनुवांशिक और न्यूरोलॉजिकल समस्या भी हो सकता है. साथ ही उन्होंने कहा कि ऑटिज्म एक प्रकार का ऐसा मनोरोग है, जो ताउम्र रहता है, लेकिन इसको उपचार व थेरेपी से कम किया जा सकता है.

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ऑटिज्म के लक्षण - डॉ. गौड़ ने बताया कि 0 से 2 साल तक के सामान्य बच्चों की तरह ही ऑटिज्म पीड़ित बच्चों का भी विकास होता है. लेकिन एक समय के बाद उनमें कुछ बदलाव आने लगते हैं. मसलन बच्चे में बोलने की क्षमता कम होने लगती है, बच्चा आई कांटेक्ट नहीं बना पाता, इमोशन एक्सप्रेस नहीं कर पाता है. वहीं, ऑटिज्म पीड़ित बच्चे अपनी बातों को बार-बार दोहराते हैं. प्रश्न किए जाने पर ठीक से जवाब भी नहीं दे पाते हैं. इसके अलावा भीड़ में वो खुद को असहज महसूस करते हैं. लेकिन परिवार के सदस्यों के बीच वो ठीक रहते हैं. इसके इतर ऑटिज्म पीड़ित बच्चे बार-बार एक ही खेल को खेलते रहते हैं.

आप जान सकते हैं ऑटिज्म का स्तर - क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट व काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ बताती हैं कि हर माता-पिता को अपने बच्चे के शुरुआती जीवन और उसकी गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए. बच्चे में कुछ भी असामान्य सा प्रतीत होने पर उसके लिए चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए. यदि बच्चे में बताए गए लक्षण प्रतीत होते हैं तो मनोवैज्ञानिक से परामर्श लेना चाहिए. उन्होंने बताया कि ऑटिज्म का असर बच्चे पर कितना है, इसके लिए जांच की जाती है. डॉ. गौड़ बताती हैं कि सामान्य तौर पर 9 माह के बच्चे को नाम से पुकारने पर वो प्रतिक्रिया देता है, लेकिन ऑटिज्म पीड़ित बच्चा ऐसा नही कर पाता है. ऐसे बच्चों में बोलने की समस्या होती है. घर में अनजान व्यक्ति के आने पर भी वो परेशान होने लगता है.

ऑटिज्म के साथ ये भी रोग होने की रहती है संभावना - डॉ. गौड़ बताती हैं कि ऑटिज्म के साथ बच्चों को अन्य परेशानियां भी हो सकती है. मसलन एडीएचडी, अवसाद भी ऑटिज्म बच्चों को हो सकता है. ऐसे में बच्चों को सही समय पर उपचार और थेरेपी मिले तो वो भी सामान्य जीवन जी सकते हैं. उन्होंने बताया कि ऑक्यूपेशनल स्पीच और लैंग्वेज थेरेपी के अलावा अभिभावकों को भी इसके लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है.

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