अजमेर. प्रदेश में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल का यह अंतिम वर्ष है, लेकिन कांग्रेस अपनी संगठनात्मक कमजोरी को दूर नहीं कर पा रही है. संगठन का आलम यह है कि चार वर्षों से अजमेर में शहर और देहात अध्यक्ष की नियुक्ति तक नहीं हो पाई. इतना ही नहीं अजमेर विकास प्राधिकरण (एडीए) में अध्यक्ष जैसा महत्वपूर्ण पद भी खाली ही पड़ा है. बावजूद इसके इन तीन महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति देने को लेकर कांग्रेस गंभीर नहीं है.
अजमेर शहर की उत्तर और दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के अलावा पुष्कर और किशनगढ़ विधानसभा तक एडीए क्षेत्र है. इन चारों विधानसभा सीटों में से 3 पर बीजेपी और एक सीट पर निर्दलीय विधायक हैं. ऐसे में कांग्रेस का दबदबा इन क्षेत्रों के अलावा प्रशासन पर रखने के लिए अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति होना जरूरी था, लेकिन कांग्रेस ने गंभीरता से नहीं लिया. कांग्रेस की लचर व्यवस्था का असर कार्यकर्ताओं पर भी पड़ रहा है. सत्ताधारी पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा होना चाहिए, लेकिन यहां इसके विपरीत हो रहा है.
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सियासी दृष्टि से पिछड़ी कांग्रेस : सियासी दृष्टि से धार्मिक पर्यटन नगरी अजमेर को भाजपा का गढ़ माना जाता है. शहर की दोनों विधानसभा सीट पर 20 वर्षों से भाजपा का कब्जा है. जिला परिषद में निर्दलीय और नगर निगम में भी भाजपा का बोर्ड है. जिले में 8 में से 5 सीटों पर भाजपा काबिज है. किशनगढ़ सीट निर्दलीय और दो सीट केकड़ी और मसूदा कांग्रेस के खाते में है. ऐसे में कहा जा सकता है कि कांग्रेस के अजमेर में हालत ठीक नहीं है. बावजूद इसके अजमेर में कांग्रेस को मजबूत करने की कोशिश भी नहीं की गई. शहर और देहात अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए कार्यकर्त्ताओं को अभी और इंतजार करना पड़ सकता है.
गुटबाजी भी बड़ा कारण : अजमेर में कांग्रेस की गुटबाजी किसी से छिपी हुई नहीं है. गहलोत और पायलट गुट में कांग्रेस बंटी हुई है. इसके अलावा स्थानीय कांग्रेस नेताओं के अपने-अपने गुट भी हैं, जो एक दूसरे को जमीन दिखाने के लिए एक पैर पर ही खड़े रहते हैं. कांग्रेस में गुटबाजी नई नहीं है. यहां व्याप्त गुटबाजी से सीएम अशोक गहलोत, डोटासरा और सचिन पायलट भी वाकिफ हैं. यही वजह है कि स्थानीय नेताओं की गुटबाजी के कारण भी नियुक्ति में यहां काफी देरी हो रही है. पार्टी सूत्रों की मानें तो अजमेर शहर और देहात अध्यक्ष की नियुक्ति 25 मार्च से पहले हो सकती है.