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Special: मां के इस 27वें शक्तिपीठ के दर्शन मात्र से बनेंगे बिगड़े काम, महिमा और कथा के श्रवण होगा कल्याण - Navratri 2023

आज हम आपको मां जगदंबा के 27वें शक्तिपीठ के दर्शन कराएंगे. साथ ही इस शक्तिपीठ की महिमा और कथा के बारे में भी (Rajarajeshwari Puruhuta Manivedic Shaktipeeth) बताएंगे.

Rajarajeshwari Puruhuta Manivedic Shaktipeeth
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Published : Mar 28, 2023, 6:44 AM IST

मां जगदंबा का 27वां शक्तिपीठ

अजमेर. देश में शक्ति स्वरूपा मां जगदंबा के अनगिनत मंदिर हैं. माना जाता है कि इनमें 52 मंदिर ऐसे हैं, जिनका सीधा संबंध आदि शक्ति माता सती से जुड़ा है. भगवान शिव की अर्धांगिनी सती ही शक्ति के रूप में पूजी जाती हैं. जिनकी आराधना नवरात्रि में नवदुर्गा के रूप में की जाती है. माता के 52 शक्तिपीठों में से तीर्थ नगरी पुष्कर में मां का 27वां शक्तिपीठ स्थित है. चलिए आपको श्री राजराजेश्वरी पुरुहुता मणिवैदिक शक्तिपीठ की महिला और कथा के बारे में बताते हैं.

भगवती पुराण के अनुसार बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान और भारत में आदि शक्ति मां जगदंबा के 52 शक्तिपीठ हैं. इन सभी शक्तिपीठों की सुरक्षा के लिए उतने ही भैरव भी हैं. यानी हर शक्तिपीठ के साथ एक भैरव वहां मौजूद हैं. जगतपिता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर में शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा का 27वां शक्तिपीठ है. यहां माता शक्ति और गायत्री के रूप में विराजमान हैं. जगतपिता ब्रह्मा मंदिर से तीन किलोमीटर की दूरी पर नाला गांव में पुरुहुता पहाड़ी की तलहटी पर माता का ये पवित्र धाम है.

स्कंद पुराण में भी माता के इस 27वें शक्तिपीठ का उल्लेख मिलता है. जिसका नाम राजराजेश्वरी पुरुहुता मणिवैदिका है. स्थानीय निवासी माता को चामुंडा के रूप में पूजते हैं. शक्तिपीठ की सुरक्षा सर्वानंद भैरव करते हैं. स्कंद पुराण के अनुसार पुष्कर स्थित पुरुहुता पर्वत पर माता सती की दोनों कलाइयां गिरी थी. इससे पहाड़ी धस गई थी. यह स्थान आज भी पुरुहुता पर्वत पर मौजूद है, लेकिन वहां तक पहुंचना काफी मुश्किल है.

बताया जाता है कि एक बुजुर्ग भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर माता पहाड़ी से तलहटी में विराजमान हो गई. माता का यह स्थान सदियों तक गुप्त रहा है. आज भी जगतपिता ब्रह्मा के दर्शनों के लिए देश के कोने-कोने से आने वाले तीर्थ यात्रियों को पुष्कर में माता के 27 वे शक्ति पीठ होने के बारे में जानकारी नहीं है. ऐसे में यहां तक बाहर से आने वाले तीर्थयात्री कम ही पहुंच पाते हैं. ज्यादातर माता के इस पवित्र धाम में दर्शन के लिए स्थानीय लोग ही आते हैं. लेकिन अब माता के शक्तिपीठ का सड़क मार्ग से संपर्क स्थापित होने से अब तीर्थ यात्रियों का यहां आना शुरू हो गया है.

दरअसल, तीर्थयात्रियों के यहां कम आने की वजह से यहां का विकास भी नहीं हो पाया है. माता के भक्तों के प्रयास से 16 वर्ष में विकास का यह ढांचा अब नजर आ रहा है. लेकिन मंदिर को कब भव्यता मिलेगी, यह माता के भक्तों की श्रद्धा पर निर्भर करता है. मंदिर के महंत ओमेंद्र पुरी बताते हैं कि भक्तों से जितना आर्थिक सहयोग मिल पाता है, उतना ही मंदिर के विकास और मंदिर की देखरेख पर खर्च होता है.

इसे भी पढे़ं - करणी माता के दर्शन से पूरी होती है मनोकामना, नवरात्रि पर उमड़ रहे श्रद्धालु...क्षेत्र में बाघों की मूवमेंट से पाबंदी भी

यूं बने शक्तिपीठ: महादेव की अर्धांगिनी माता सती राजा दक्ष की पुत्री थी. राजा दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ किया. जिसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया. लेकिन महादेव को आमंत्रित नहीं किया. महादेव के अपमान से नाराज माता सती ने उस यज्ञ की वेदी में ही अपना शरीर त्याग दिया. महादेव को जब इस बात का पता चला तो वो माता के पार्थिव शरीर को हाथों में लेकर ब्रह्मांड में घूमने लगे. महादेव के रौद्र रूप संसार का अनिष्ठ होने से बचाने और शिव को शौक से निकलने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता के शरीर के टुकड़े कर दिए. माता के शरीर अंग धरती पर जहां भी गिरे, वह स्थान शक्तिपीठ बना. पुष्कर में पुरुहुता पर्वत पर माता के हाथों की दोनों कलाइयां गिरने के कारण यह स्थान माता का शक्तिपीठ बन गया.

शक्ति और गायत्री यहां एक साथ विराजमान: महंत दिगंबर ओमेंद्र पुरी बताते हैं कि सदियों तक माता का 27वां शक्तिपीठ अज्ञातवास में रहा है. यहां जगतपिता ब्रह्मा ने पुष्कर में सृष्टि यज्ञ किया था. जगत पिता ब्रह्मा ने यज्ञ के लिए महादेव को भी आमंत्रित किया. यज्ञ का विधान है कि बिना जोड़े के यज्ञ पूर्ण नहीं होता है. ऐसे में महादेव ने 27वें शक्ति पीठ से माता को स्वरूप दिया, तब महादेव यज्ञ में सम्मिलित हो पाए. दूसरी ओर यज्ञ में विलंब होने और मुहूर्त टालने की स्थिति में जगतपिता ब्रह्मा ने अपनी अर्धांगिनी सावित्री माता के स्थान पर माता गायत्री को बैठाया.

मंदिर के महंत दिगंबर ओमेंद्र पुरी बताते हैं कि जगतपिता ब्रम्हा ने ही गायत्री माता का उद्भव किया था. सृष्टि यज्ञ संपन्न होने के बाद आदिशक्ति और गायत्री ने सभी देवी-देवताओं से अपने लिए अनुकूल स्थान बताने के लिए कहा, तब माता शक्ति के साथ गायत्री माता भी पुरुहुता पर्वत की तलहटी पर विराजमान हुई. इसलिए यह माता का 27वां शक्तिपीठ होने के साथ ही मां गायत्री का भी स्थान है. मंदिर में भगवान गणेश, शारदीय और चेत्र नवरात्रा के अलावा गुप्त नवरात्रों में भी माता के मंदिर में शक्ति आराधना और दर्शन के लिए भक्तों का आना जाना लगा रहता है. अब आम दिनों में भी लोगों की आवक पहले की तुलना में बढ़ी है.

स्थानीय श्रद्धालु दिनेश पाराशर बताते हैं कि जब से होश संभाला है, तभी से वो नवरात्र में माता के दर्शनों के लिए आते रहे हैं. पहले मंदिर का स्वरूप बहुत ही छोटा सा था. लेकिन अब धीरे-धीरे मंदिर का विकास हो रहा है और यह मंदिर बड़ा स्वरूप लेने की ओर अग्रसर है. पुष्कर नगर और उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में माता के मंदिर की काफी मान्यता है. पहले यहां तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं थी, लेकिन अब सड़क बनने से कई लोग रोज माता के दर्शनों के लिए आते हैं.

पाराशर ने बताया कि स्थानीय लोगों में माता चामुंडा के नाम से विख्यात है. उन्होंने बताया कि पुष्कर आने वाले तीर्थ यात्रियों को अब मोबाइल के जरिए भी मंदिर के बारे में पता चलता है. कई लोगों को यहां पर आने के बाद पता चलता है कि यह माता का 27 वां शक्तिपीठ है. श्रद्धालु दिनेश पाराशर बताते हैं कि यहां आने वाले सभी श्रद्धालुओं के मनोरथ माता सिद्ध करती है.

हरियाणा के कैथल से आए श्रद्धालु गौरव मित्तल ने बताया कि यहां दर्शन के लिए वो अपने परिवार के साथ आए थे. यहां पर एक गाइड के जरिए उन्हें माता के मंदिर के बारे में पता चला. यहां आने के बाद इस बारे में जानकारी मिली कि यह पवित्र स्थान माता का 27वां शक्तिपीठ है. उन्होंने बताया कि यहां पहुंचकर मन को शांति मिली और मन श्रद्धा से अभिभूत हो गया. मित्तल ने आगे बताया कि ये उनका और उनके परिवार का सौभाग्य है कि तीर्थ दर्शन के साथ-साथ नवरात्रि में माता के शक्तिपीठ के दर्शन का उन्हें अवसर प्राप्त हुआ.

मां जगदंबा का 27वां शक्तिपीठ

अजमेर. देश में शक्ति स्वरूपा मां जगदंबा के अनगिनत मंदिर हैं. माना जाता है कि इनमें 52 मंदिर ऐसे हैं, जिनका सीधा संबंध आदि शक्ति माता सती से जुड़ा है. भगवान शिव की अर्धांगिनी सती ही शक्ति के रूप में पूजी जाती हैं. जिनकी आराधना नवरात्रि में नवदुर्गा के रूप में की जाती है. माता के 52 शक्तिपीठों में से तीर्थ नगरी पुष्कर में मां का 27वां शक्तिपीठ स्थित है. चलिए आपको श्री राजराजेश्वरी पुरुहुता मणिवैदिक शक्तिपीठ की महिला और कथा के बारे में बताते हैं.

भगवती पुराण के अनुसार बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान और भारत में आदि शक्ति मां जगदंबा के 52 शक्तिपीठ हैं. इन सभी शक्तिपीठों की सुरक्षा के लिए उतने ही भैरव भी हैं. यानी हर शक्तिपीठ के साथ एक भैरव वहां मौजूद हैं. जगतपिता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर में शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा का 27वां शक्तिपीठ है. यहां माता शक्ति और गायत्री के रूप में विराजमान हैं. जगतपिता ब्रह्मा मंदिर से तीन किलोमीटर की दूरी पर नाला गांव में पुरुहुता पहाड़ी की तलहटी पर माता का ये पवित्र धाम है.

स्कंद पुराण में भी माता के इस 27वें शक्तिपीठ का उल्लेख मिलता है. जिसका नाम राजराजेश्वरी पुरुहुता मणिवैदिका है. स्थानीय निवासी माता को चामुंडा के रूप में पूजते हैं. शक्तिपीठ की सुरक्षा सर्वानंद भैरव करते हैं. स्कंद पुराण के अनुसार पुष्कर स्थित पुरुहुता पर्वत पर माता सती की दोनों कलाइयां गिरी थी. इससे पहाड़ी धस गई थी. यह स्थान आज भी पुरुहुता पर्वत पर मौजूद है, लेकिन वहां तक पहुंचना काफी मुश्किल है.

बताया जाता है कि एक बुजुर्ग भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर माता पहाड़ी से तलहटी में विराजमान हो गई. माता का यह स्थान सदियों तक गुप्त रहा है. आज भी जगतपिता ब्रह्मा के दर्शनों के लिए देश के कोने-कोने से आने वाले तीर्थ यात्रियों को पुष्कर में माता के 27 वे शक्ति पीठ होने के बारे में जानकारी नहीं है. ऐसे में यहां तक बाहर से आने वाले तीर्थयात्री कम ही पहुंच पाते हैं. ज्यादातर माता के इस पवित्र धाम में दर्शन के लिए स्थानीय लोग ही आते हैं. लेकिन अब माता के शक्तिपीठ का सड़क मार्ग से संपर्क स्थापित होने से अब तीर्थ यात्रियों का यहां आना शुरू हो गया है.

दरअसल, तीर्थयात्रियों के यहां कम आने की वजह से यहां का विकास भी नहीं हो पाया है. माता के भक्तों के प्रयास से 16 वर्ष में विकास का यह ढांचा अब नजर आ रहा है. लेकिन मंदिर को कब भव्यता मिलेगी, यह माता के भक्तों की श्रद्धा पर निर्भर करता है. मंदिर के महंत ओमेंद्र पुरी बताते हैं कि भक्तों से जितना आर्थिक सहयोग मिल पाता है, उतना ही मंदिर के विकास और मंदिर की देखरेख पर खर्च होता है.

इसे भी पढे़ं - करणी माता के दर्शन से पूरी होती है मनोकामना, नवरात्रि पर उमड़ रहे श्रद्धालु...क्षेत्र में बाघों की मूवमेंट से पाबंदी भी

यूं बने शक्तिपीठ: महादेव की अर्धांगिनी माता सती राजा दक्ष की पुत्री थी. राजा दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ किया. जिसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया. लेकिन महादेव को आमंत्रित नहीं किया. महादेव के अपमान से नाराज माता सती ने उस यज्ञ की वेदी में ही अपना शरीर त्याग दिया. महादेव को जब इस बात का पता चला तो वो माता के पार्थिव शरीर को हाथों में लेकर ब्रह्मांड में घूमने लगे. महादेव के रौद्र रूप संसार का अनिष्ठ होने से बचाने और शिव को शौक से निकलने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता के शरीर के टुकड़े कर दिए. माता के शरीर अंग धरती पर जहां भी गिरे, वह स्थान शक्तिपीठ बना. पुष्कर में पुरुहुता पर्वत पर माता के हाथों की दोनों कलाइयां गिरने के कारण यह स्थान माता का शक्तिपीठ बन गया.

शक्ति और गायत्री यहां एक साथ विराजमान: महंत दिगंबर ओमेंद्र पुरी बताते हैं कि सदियों तक माता का 27वां शक्तिपीठ अज्ञातवास में रहा है. यहां जगतपिता ब्रह्मा ने पुष्कर में सृष्टि यज्ञ किया था. जगत पिता ब्रह्मा ने यज्ञ के लिए महादेव को भी आमंत्रित किया. यज्ञ का विधान है कि बिना जोड़े के यज्ञ पूर्ण नहीं होता है. ऐसे में महादेव ने 27वें शक्ति पीठ से माता को स्वरूप दिया, तब महादेव यज्ञ में सम्मिलित हो पाए. दूसरी ओर यज्ञ में विलंब होने और मुहूर्त टालने की स्थिति में जगतपिता ब्रह्मा ने अपनी अर्धांगिनी सावित्री माता के स्थान पर माता गायत्री को बैठाया.

मंदिर के महंत दिगंबर ओमेंद्र पुरी बताते हैं कि जगतपिता ब्रम्हा ने ही गायत्री माता का उद्भव किया था. सृष्टि यज्ञ संपन्न होने के बाद आदिशक्ति और गायत्री ने सभी देवी-देवताओं से अपने लिए अनुकूल स्थान बताने के लिए कहा, तब माता शक्ति के साथ गायत्री माता भी पुरुहुता पर्वत की तलहटी पर विराजमान हुई. इसलिए यह माता का 27वां शक्तिपीठ होने के साथ ही मां गायत्री का भी स्थान है. मंदिर में भगवान गणेश, शारदीय और चेत्र नवरात्रा के अलावा गुप्त नवरात्रों में भी माता के मंदिर में शक्ति आराधना और दर्शन के लिए भक्तों का आना जाना लगा रहता है. अब आम दिनों में भी लोगों की आवक पहले की तुलना में बढ़ी है.

स्थानीय श्रद्धालु दिनेश पाराशर बताते हैं कि जब से होश संभाला है, तभी से वो नवरात्र में माता के दर्शनों के लिए आते रहे हैं. पहले मंदिर का स्वरूप बहुत ही छोटा सा था. लेकिन अब धीरे-धीरे मंदिर का विकास हो रहा है और यह मंदिर बड़ा स्वरूप लेने की ओर अग्रसर है. पुष्कर नगर और उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में माता के मंदिर की काफी मान्यता है. पहले यहां तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं थी, लेकिन अब सड़क बनने से कई लोग रोज माता के दर्शनों के लिए आते हैं.

पाराशर ने बताया कि स्थानीय लोगों में माता चामुंडा के नाम से विख्यात है. उन्होंने बताया कि पुष्कर आने वाले तीर्थ यात्रियों को अब मोबाइल के जरिए भी मंदिर के बारे में पता चलता है. कई लोगों को यहां पर आने के बाद पता चलता है कि यह माता का 27 वां शक्तिपीठ है. श्रद्धालु दिनेश पाराशर बताते हैं कि यहां आने वाले सभी श्रद्धालुओं के मनोरथ माता सिद्ध करती है.

हरियाणा के कैथल से आए श्रद्धालु गौरव मित्तल ने बताया कि यहां दर्शन के लिए वो अपने परिवार के साथ आए थे. यहां पर एक गाइड के जरिए उन्हें माता के मंदिर के बारे में पता चला. यहां आने के बाद इस बारे में जानकारी मिली कि यह पवित्र स्थान माता का 27वां शक्तिपीठ है. उन्होंने बताया कि यहां पहुंचकर मन को शांति मिली और मन श्रद्धा से अभिभूत हो गया. मित्तल ने आगे बताया कि ये उनका और उनके परिवार का सौभाग्य है कि तीर्थ दर्शन के साथ-साथ नवरात्रि में माता के शक्तिपीठ के दर्शन का उन्हें अवसर प्राप्त हुआ.

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