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वराह जयंती स्पेशल: केकड़ी में है विश्व का एक मात्र श्री महावराह मंदिर... विशाल प्रतिमा की अद्वितीय बनावट है खास

आज यानी 1 सितंबर को वराह जयंती मनाई जा रही है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन श्री हरि ने एक राक्षस का वध करने के लिए वराह अवतार में जन्म लिया था. वहीं अजमेर के केकड़ी में शूर महावराह भगवान के मंदिर पर हरितालिका तीज वराह जयंती पर रविवार को विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया गया.

Mahavarah Temple Kekri, श्री महावराह मंदिर केकड़ी
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Published : Sep 1, 2019, 10:45 PM IST

केकड़ी (अजमेर). वराह भगवान की धार्मिक नगरी व जन-जन की आस्था का धाम श्री शूर महावराह भगवान के मंदिर, बघेरा पर हरि तालिका तीज वराह जयंती पर रविवार को विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया गया. इस मौके पर भगवान वराह का महा मस्तकाभिषेक, महाआरती, प्रसादी वितरण सहित अन्य धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए गए. इस दौरान दिनभर लोक मेला चला.

केकड़ी में है विश्व का एक मात्र श्री महावराह मंदिर

अजमेर जिले के पूर्व दिशा में करीब 100 किमी दूरी पर बसा ग्राम बघेरा जो कि टैम्पल विलेज के नाम से देशभर में अपनी पहचान बना चुका है. विश्व में एक मात्र श्री महावराह मंदिर बघेरा में ही है. यहां मंदिर में विराजित भगवान वराह की विशाल प्रतिमा जो कि अपनी अद्वितीय बनावट के कारण श्रद्वालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है. इस प्रतिमा की अनुमानित लंबाई 6 फीट, ऊंचाई 4 फीट और चौड़ाइ 2 फिट है. इस प्रतिमा पर वैष्णव धर्म के सभी देवी देवताओं के अवतारों की पांच सौ पच्चीस प्रतिमाएं उकेरी गई है.

पढ़ें- हरियाणा में है देश की दूसरी सबसे बड़ी गणेश प्रतिमा, मूर्तिकारों ने 10 साल मेहनत कर बनाई 72 फुट ऊंची प्रतिमा

धार्मिक ग्रन्थों के कथानुसार हिरण्याक्ष राक्षस ने पृथ्वी का अपहरण कर रसातल में छुपाकर उसके चारों और गन्दगी का परकोटा लगा दिया था. पृथ्वी के अपहरण होने जाने से ब्रहमाण्ड का संतुलन डामाडोल हो गया. इससे घबराकर सभी ऋषि मुनियों ने विष्णु भगवान से पृथ्वी को छुड़ाकर वापस अपनी कक्ष में स्थापित करने की पुकार की. तब उनकी पुकार सुन भगवान विष्णु ने महावराह का विशाल रूप धारण कर हिरण्याक्ष राक्षस का वध कर पृथ्वी को रसातल से बाहर निकाल कर पुन: अपनी कक्षा में स्थापित किया. इसी को महावराह अवतार कहते है. जिसका पुराणों में भी उल्लेख है.

पढ़ें- राजसमंद के मंशापूर्ण महागणपति मंदिर में होती है मनोकामना पूरी...पूरे देश में ऐसी प्रतिमा कही नहीं

वहीं रूप प्रतिमा के रूप में बघेरा के इस श्री महावराह मंदिर में स्थित है. इस प्रतिमा की बनावट भी आज के प्राणी की जीवन तंत्र के समान है. श्री महावराह के मंदिर में स्थित यह प्रतिमा चिकने नीले श्याम वर्ण की विश्व में अद्वितीय श्री महावराह का विग्रह है. जिसका निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया लगता है. इस प्रतिमा पर संपूर्ण ब्रह्मांड, चराचर जगत ,चौदह लोक, सात समुद्र , पृथ्वी पुकार , ब्रह्म प्राकट्य , शेषावतार, कृष्णावतार की रास लीला के मनोरम दृश्य सहित श्रीविष्णु के इस अवतार के बारे में जितना पुराणों में वर्णित है. इस श्रीविग्रह में समाहित है.

पढ़ें- 250 साल पहले अमरावती से आया था परिवार, 91 साल से बनारस में मना रहे गणपति महोत्सव​​​​​​​

इस रूप में भी भगवान विष्णु के समस्त आयुध ,शंख,चक्र,गदा,पद्म चारों पैरों में धारण किए हुए है. शेष शय्या पर क्षीर सागर में शयन शेषनाग को शैया पर और फनों के अंदर दोनों नाग कन्याएं इंगला, पिंगला, ईणा, पीणा भगवान श्री महावराह की स्तुति करती दिखाई गई है. वहीं मस्तिष्क पर रासलीला चक्र ,पीठ पर सात समुद्र, सात लोक,चराचर विश्व के जीव मात्र की क्रीड़ाएं , आठों वसु, पांच पाण्डव एवं अनेक मूर्तियां इस श्रीविग्रह पर उत्कीर्ण है. भविष्य में होने वाले भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की प्रतिमा भी इस श्रीविग्रह पर उत्कीर्ण है.

पढ़ें- गणेश चतुर्थी स्पेशल : विघ्नहर्ता की प्रतिमाओं में अंकुरित बीज, विसर्जन के बाद उग आएगा पौधा...

श्री महावराह के इस अलौकिक स्वरूप के कारण ही यह अपनी एक अलग ही पहचान रखता है. ग्राम के इतिहासकार रमेश झंवर बताते है कि इस प्रतिमा के अलौकिक स्वरूप के कारण यह प्रतिमा कितनी पुरानी है. इसका कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है. इस प्रतिमा का प्राकट्य स्थल वराह सागर झील है. जहां से संवत 1604 में बेगू के महाराणा ठाकुर काली मेघ सिंह ने अपने स्वप्न के आधार पर इस प्रतिमा को निकलवाकर यहां स्थापित करवाया.

केकड़ी (अजमेर). वराह भगवान की धार्मिक नगरी व जन-जन की आस्था का धाम श्री शूर महावराह भगवान के मंदिर, बघेरा पर हरि तालिका तीज वराह जयंती पर रविवार को विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया गया. इस मौके पर भगवान वराह का महा मस्तकाभिषेक, महाआरती, प्रसादी वितरण सहित अन्य धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए गए. इस दौरान दिनभर लोक मेला चला.

केकड़ी में है विश्व का एक मात्र श्री महावराह मंदिर

अजमेर जिले के पूर्व दिशा में करीब 100 किमी दूरी पर बसा ग्राम बघेरा जो कि टैम्पल विलेज के नाम से देशभर में अपनी पहचान बना चुका है. विश्व में एक मात्र श्री महावराह मंदिर बघेरा में ही है. यहां मंदिर में विराजित भगवान वराह की विशाल प्रतिमा जो कि अपनी अद्वितीय बनावट के कारण श्रद्वालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है. इस प्रतिमा की अनुमानित लंबाई 6 फीट, ऊंचाई 4 फीट और चौड़ाइ 2 फिट है. इस प्रतिमा पर वैष्णव धर्म के सभी देवी देवताओं के अवतारों की पांच सौ पच्चीस प्रतिमाएं उकेरी गई है.

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धार्मिक ग्रन्थों के कथानुसार हिरण्याक्ष राक्षस ने पृथ्वी का अपहरण कर रसातल में छुपाकर उसके चारों और गन्दगी का परकोटा लगा दिया था. पृथ्वी के अपहरण होने जाने से ब्रहमाण्ड का संतुलन डामाडोल हो गया. इससे घबराकर सभी ऋषि मुनियों ने विष्णु भगवान से पृथ्वी को छुड़ाकर वापस अपनी कक्ष में स्थापित करने की पुकार की. तब उनकी पुकार सुन भगवान विष्णु ने महावराह का विशाल रूप धारण कर हिरण्याक्ष राक्षस का वध कर पृथ्वी को रसातल से बाहर निकाल कर पुन: अपनी कक्षा में स्थापित किया. इसी को महावराह अवतार कहते है. जिसका पुराणों में भी उल्लेख है.

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वहीं रूप प्रतिमा के रूप में बघेरा के इस श्री महावराह मंदिर में स्थित है. इस प्रतिमा की बनावट भी आज के प्राणी की जीवन तंत्र के समान है. श्री महावराह के मंदिर में स्थित यह प्रतिमा चिकने नीले श्याम वर्ण की विश्व में अद्वितीय श्री महावराह का विग्रह है. जिसका निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया लगता है. इस प्रतिमा पर संपूर्ण ब्रह्मांड, चराचर जगत ,चौदह लोक, सात समुद्र , पृथ्वी पुकार , ब्रह्म प्राकट्य , शेषावतार, कृष्णावतार की रास लीला के मनोरम दृश्य सहित श्रीविष्णु के इस अवतार के बारे में जितना पुराणों में वर्णित है. इस श्रीविग्रह में समाहित है.

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इस रूप में भी भगवान विष्णु के समस्त आयुध ,शंख,चक्र,गदा,पद्म चारों पैरों में धारण किए हुए है. शेष शय्या पर क्षीर सागर में शयन शेषनाग को शैया पर और फनों के अंदर दोनों नाग कन्याएं इंगला, पिंगला, ईणा, पीणा भगवान श्री महावराह की स्तुति करती दिखाई गई है. वहीं मस्तिष्क पर रासलीला चक्र ,पीठ पर सात समुद्र, सात लोक,चराचर विश्व के जीव मात्र की क्रीड़ाएं , आठों वसु, पांच पाण्डव एवं अनेक मूर्तियां इस श्रीविग्रह पर उत्कीर्ण है. भविष्य में होने वाले भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की प्रतिमा भी इस श्रीविग्रह पर उत्कीर्ण है.

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श्री महावराह के इस अलौकिक स्वरूप के कारण ही यह अपनी एक अलग ही पहचान रखता है. ग्राम के इतिहासकार रमेश झंवर बताते है कि इस प्रतिमा के अलौकिक स्वरूप के कारण यह प्रतिमा कितनी पुरानी है. इसका कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है. इस प्रतिमा का प्राकट्य स्थल वराह सागर झील है. जहां से संवत 1604 में बेगू के महाराणा ठाकुर काली मेघ सिंह ने अपने स्वप्न के आधार पर इस प्रतिमा को निकलवाकर यहां स्थापित करवाया.

Intro:Body:केकड़ी-वराह प्राक्टय दिवस पर बघेरा में जन - जन की आस्था का धाम श्री शूर महावराह भगवान के मंदिर पर हरितालिका तीज वराह जंयति पर रविवार को विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया गया। इस मौके पर भगवान वराह का महामस्तकाभिषेक,महाआरती,प्रसादी वितरण सहित अन्य धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किये गए एंव दिनभर लोक मेला चला । अजमेर जिलें के पूर्व दिशा में करीब 100 किमी दूरी पर बसा ग्राम बघेरा जो कि टैम्पल विलेज के नाम से देशभर में अपनी पहचान बना चुका है। विश्व में एक मात्र श्री महावराह मंदिर बघेरा में ही है। यहां मंदिर में विराजित भगवान वराह की विशाल प्रतिमा जो कि अपनी अद्वितीय बनावट के कारण श्रंद्वालुओं को अपनी और आकर्षित करती है। इस प्रतिमा की अनुमानित लंबाई 6 फिट, ऊंचाई 4 फीट व चौड़ाइ 2 फिट है। इस प्रतिमा पर वैष्णव धर्म के सभी देवी देवताओं के अवतारों की पांच सौ पच्चीस प्रतिमाएं उकेरी गई है। धार्मिक ग्रन्थों के कथानुसार हिरण्याक्ष राक्षस ने पृथ्वी का अपहरण कर रसातल में छुपाकर उसके चारों और गन्दगी का परकोटा लगा दिया था । पृथ्वी के अपहरण होने जाने से ब्रहमाण्ड का संतुलन डांवाडोल हो गया इससे घबराकर सभी ऋषि मुनियों व पृथ्वी ने विष्णु भगवान से पृथ्वी को छुडाकर वापस अपनी कक्ष में स्थापित करने की पुकार की तब उनकी पुकार सुन भगवान विष्णु ने महावराह यानि सूअर का विशाल रूप धारण कर हिरण्याक्ष राक्षस का वध कर पृथ्वी को रसातल से बाहर निकाल कर पुन: अपनी कक्षा में स्थापित किया। इसी को महावराह अवतार कहते है जिसका पुराणों में भी उल्लेख है । वही रूप प्रतिमा के रूप में बघेरा के इस श्री महावराह मंदिर में स्थित है। इस प्रतिमा की बनावट भी आज के प्राणी की जीवन तंत्र के समान है। श्री महावराह के मंदिर में स्थित यह प्रतिमा चिकने नीले श्याम वर्ण की विश्व में अद्वितीय श्री महावराह का विग्रह है जिसका निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया लगता है। इस प्रतिमा पर संपूर्ण ब्रह्मांड,चराचर जगत ,चौदह लोक, सात समुद्र , पृथ्वी पुकार , ब्रह्म प्राकट्य , शेषावतार, कृष्णावतार की रास लीला के मनोरम दृश्य सहित श्रीविष्णु के इस अवतार के बारे में जितना पुराणों में वर्णित है इस श्रीविग्रह में समाहित है। इस रूप में भी भगवान विष्णु के समस्त आयुध ,शंख,चक्र,गदा,पद्म चारों पैरों में धारण किए हुए है। शेष शय्या पर क्षीर सागर में शयन शेषनाग को शैया पर व फनों के अंदर दोनों नाग कन्याएं इंगला,पिंगला, ईणा,पीणा भगवान श्री महावराह की स्तुति करती दिखाई गई है। मस्तिष्क पर रासलीला चक्र ,पीठ पर सात समुद्र, सात लोक,चराचर विश्व के जीव मात्र की क्रीड़ाएं ,आठों वसु, पांच पाण्डव एंव अनेक मूर्तियां इस श्रीविग्रह पर उत्कीर्ण है । भविष्य में होने वाले भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की प्रतिमा भी इस श्रीविग्रह पर उतकीर्ण है। श्री महावराह के इस अलौकिक स्वरूप के कारण ही यह अपनी एक अलग ही पहचान रखता है। ग्राम के इतिहासकार रमेश झंवर बताते है कि इस प्रतिमा के अलौकिक स्वरूप के कारण यह प्रतिमा कितनी पुरानी है इसका कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। इस प्रतिमा का प्राकट्य स्थल वराह सागर झील है। जहां से संवत 1604 में बेगू के महाराणा ठाकुर काली मेघ सिंह ने अपने स्वप्न के आधार पर इस प्रतिमा को निकलवाकर यहां स्थापित करवाया।
बाईट-सत्यनारायण पाठक,पुजारीConclusion:
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