अजमेर. आपने कई लोगों को दोहरे व्यक्तित्व के साथ देखा होगा. मसलन किसी के शरीर में देवी-देवता, पितर या भूत-प्रेत आना. यह समाज में व्याप्त अंधविश्वास है. जबकि मेडिकल साइंस में यह एक प्रकार का मनोरोग है, जिसे डिसोसिएटिव डिसऑर्डर कहते हैं. चलिए जानते हैं क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एंड काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ से इस रोग के लक्षण और उपचार के बारे में.
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एंड काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ ने बताया कि डिसोसिएटिव डिसऑर्डर एक प्रकार का मनोरोग है. इसके कई कारण हो सकते हैं. इसमें मन की भावनात्मक स्थिति जिससे अपने वास्तविक भावनात्मक परिस्थितियों से व्यक्ति जुड़ाव नहीं रख पाता है. यह मनोरोग उन लोगों को होता है, जिन्हें किसी घटना, दुर्घटना या हादसे से मन और मस्तिष्क पर गहरा धक्का लगा हो. मसलन घरेलू हिंसा, दैहिक शोषण, दुर्घटना, विभत्स हादसे या मन को विचलित करने वाली घटनाएं भी इसका कारण हो सकती है.
इसके अतिरिक्त शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना भी डिसोसिएटिव डिसऑर्डर का कारण बन सकती है. डॉ. गौड़ बताती हैं कि महिलाओं में यह समस्या ज्यादा देखने को मिलती है. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में इस मनोरोग को अंधविश्वास से जोड़कर देखा जाता है.
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डिसोसिएटिव डिसऑर्डर के लक्षण - डॉ. गौड़ ने बताया कि डिसोसिएटिव डिसऑर्डर के लक्षणों की बात करें तो रोगी कुछ समय के लिए अपनी याददाश्त भूल जाता है. इसके कारण वह खुद को और अपने आसपास के लोगों को भी नहीं पहचान पाता. याददाश्त गुम होने की स्थिति कुछ मिनटों या फिर कुछ घंटों तक भी रह सकती है. याददाश्त लौटाने पर उसके साथ हुई घटनाओं को रोगी भूल जाता है. ऐसे रोगी का मन विचलित रहता है. आसपास की होने वाली प्रत्येक गतिविधि उसे वास्तविक नहीं लगती है. रोगी को खुद की पहचान में भी संशय होता है. उन्होंने बताया कि रोगी में तनाव सहने की क्षमता काफी कम होती है. रोगी भावनात्मक और व्यावसायिक तनाव को ठीक से नियंत्रित नहीं कर पाता है. रोगी अपने व्यक्तिगत जीवन को संभाल नहीं पाता है. कई रोगी तनाव, एंजायटी होने पर खुदकुशी की बातें भी करने लगते हैं. कई बार तो वह खुद को नुकसान भी पहुंचा देते हैं.
डिसोसिएटिव डिसऑर्डर के प्रकार - क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एंड काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ बताती हैं कि डिसोसिएटिव डिसऑर्डर तीन प्रकार के होते हैं.
1. डिसोसिएटिव एमनिजिया - इस मनोरोग से ग्रसित रोगी खुद को ही भूल जाता है यानी रोगी की याददाश्त चली जाती है.
2. डिसोसिएटिव आइडेंटिटी - इस मनोरोग को पर्सनैलिटी डिसऑर्डर के नाम से भी जाना जाता है. इसमें रोगी अलग-अलग तरीके से बर्ताव और बातें करता है. रोगी को देखने वालों को लगता है कि उसके शरीर में कोई और है. जिसको लोग अंधविश्वास से जोड़ने लगते हैं.
3. डिसोसिएटिव पर्सनल - इस मनोरोग से ग्रसित रोगी आस पास होने वाले घटनाक्रम फतवा गतिविधियों को खुद के जीवन से जोड़ने लगता है.
थेरेपी और उपचार में कारगर - डॉ. गौड़ बताती हैं कि टॉक थेरेपी, साइकोथेरेपी और साइकेट्रिक ट्रीटमेंट के जरिए रोगी का इलाज संभव है. उन्होंने बताया कि इस प्रकार की मनोरोग में रोगी जो भी हरकत करता है, वो उसे याद नहीं रहता. रोगी में दिखने वाले लक्षण वो जानबूझकर नहीं करता. ऐसे मनोरोगी की हरकतों को अंधविश्वास से जोड़ने की बजाय उसे मनो विशेषज्ञ के पास ले जाकर उपचार करवाना चाहिए.