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'समाज में कला को बढ़ावा देना ही सही मायने में कला को सम्मान देना है' : नृत्यांगना दृष्टि रॉय

राजस्थान में कथक नृत्य कला की बात होती है तो दृष्टि रॉय का नाम जुबान पर आ जाता है. मां की संस्था के अलावा अजमेर कथक कला केंद्र के माध्यम से दृष्टि कथक नृत्य कला को लोगों तक पहुंचाने का काम ढाई दशक से कर रहीं हैं. संस्था के 25 वर्ष पूरे होने, डॉ. नूपुर रॉय के 81 वें जयंती और अजमेर कत्थक कला केंद्र के 15 वर्ष पूरे होने पर मंगलवार को कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

नृत्यांगना दृष्टि रॉय
नृत्यांगना दृष्टि रॉय
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 26, 2023, 10:05 PM IST

नृत्यांगना दृष्टि रॉय

अजमेर. भारतीय नृत्य कला में कथक काफी लोकप्रिय विधा है. कला की साधना करने वाले इस विधा के महत्व को जानते और समझते हैं. मगर आमजन में कथक के बारे में जानकारी कम है. इसका कारण पाश्चात्य संस्कृति की ओर लोगों का आकर्षण ज्यादा होना है. यही कारण है कि राजस्थान में ही जन्मी कथक सरीखे की विधा पीछे छूट रही है, लेकिन इस विकट स्थिति में भी मशहूर कथक नृत्यांगना दृष्टि रॉय अपनी साधना के साथ कथक की विधा को जन मानस तक पहुंचाने का काम कर रहीं हैं. उनसे पहले उनकी मां डॉ. नूपुर रॉय कथक नृत्य को बढ़ावा देने का काम कर चुकी हैं.

25 बरस पहले रखी थी नींव : कथक नृत्य विधा में राजस्थान में दृष्टि रॉय एक जाना पहचाना नाम है. मूलतः अजमेर में शास्त्री नगर निवासी दृष्टि रॉय को कथक की सीख अपनी माता से मिली. दृष्टि रॉय की मां पेशे से डॉक्टर (सर्जन) थीं, लेकिन उनका झुकाव कथक नृत्य की ओर था. डॉ. नूपुर रॉय एक अच्छी कथक नृत्यांगना थीं, उन्होंने ही आर्ट एंड कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन संस्था की नींव 25 बरस पहले रखी थी. इस संस्था के माध्यम से भारतीय संस्कृति से जुड़ी नृत्य और गायन विधा को आगे बढ़ाया. साथ ही लोगों को भी कला से जोड़ने का काम किया. डॉ. नूपुर रॉय के बाद उनकी पुत्री दृष्टि रॉय अपनी मां से मिली कला रूपी विरासत को सहेज रहीं हैं, साथ ही मां को सम्मान देते हुए उनके सपनों को पूरा करने में जुटीं हैं.

पढ़ें. Shilpgram Festival : भगवान जगन्नाथ को समर्पित है ओडिशा का गोटीपुआ नृत्य, महोत्सव में दर्शक होंगे मंत्रमुग्ध

राजस्थान में कथक नृत्य कला की बात होती है तो दृष्टि रॉय का नाम जुबान पर आ जाता है. मां की संस्था के अलावा अजमेर कथक कला केंद्र के माध्यम से दृष्टि कथक नृत्य कला को लोगों तक पहुंचाने का काम ढाई दशक से कर रहीं हैं. संस्था के 25 वर्ष पूरे होने और डॉ. नूपुर रॉय के 81 वें जयंती और अजमेर कत्थक कला केंद्र के 15 वर्ष पूरे होने पर दृष्टि रॉय ने कथक नृत्य कला से जुड़े अनुभवों और कथक से जुड़े कार्यक्रमों से जुड़ी यादों को सहेजकर एक पुस्तिका का विमोचन अतिथियों की उपस्थिति में किया. जयपुर रोड स्थित एक होटल में आयोजित विविधा कार्यक्रम आयोजित किया. कार्यक्रम में अजमेर संभाग की आयुक्त सीआर मीना, राजस्थान की महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष लाड कुमारी जैन, आरपीएससी के पूर्व अध्यक्ष शिव सिंह राठौड़, पुष्कर चित्रकूट धाम के महंत गिरीश पाठक समेत कई गणमान्य लोग मौजूद रहे. सभी ने दृष्टि रॉय के प्रयासों को सराहा.

विदेशों में भी है शिष्य : दृष्टि रॉय अजमेर कत्थक कला केंद्र के माध्यम से 2 हजार से भी अधिक लोगों को कथक नृत्य सीखा चुकीं हैं. उनके कई शिष्य यूरोप, अमेरिका, कनाडा समेत कई देशों में हैं, जो वहां कथक नृत्य सीख रहे हैं. दृष्टि रॉय देश में कई बड़े मंच पर कथक नृत्य का प्रदर्शन कर चुकीं हैं. दृष्टि रॉय का मानना है कि वर्षों की साधना के बाद ही कोई कलाकार बन पाता है. केवल नृत्य के बारे में जानकारी रखना अच्छी बात है, मगर उसे कलाकार नहीं कहा जा सकता. समाज में सही मायने में कला को सम्मान देना ही कला को बढ़ावा देना है. बातचीत में उन्होंने बताया कि मेरी मां मेरी पहली गुरु हैं. उनके बाद आचार्य अनुपम रॉय हैं, जिनको संगीत नाटक अकादमी से सम्मानित भी किया गया था. यह दोनों ही दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनसे मिली शिक्षा और संस्कार को मैं आगे बढ़ाने का काम कर रही हूं. मुझे कला क्षेत्र में पद्मश्री प्राप्त कलाकारों का सानिध्य प्राप्त हुआ. यह मेरा सौभाग्य है कि मैं भारतीय संगीत नाटक अकादमी के निर्णायक पैनल में भी शामिल हूं. उन्होंने कहा कि जब तक सांस है तब तक भारतीय नृत्य कला की इस विधा को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का काम करती रहूंगी.

नृत्यांगना दृष्टि रॉय

अजमेर. भारतीय नृत्य कला में कथक काफी लोकप्रिय विधा है. कला की साधना करने वाले इस विधा के महत्व को जानते और समझते हैं. मगर आमजन में कथक के बारे में जानकारी कम है. इसका कारण पाश्चात्य संस्कृति की ओर लोगों का आकर्षण ज्यादा होना है. यही कारण है कि राजस्थान में ही जन्मी कथक सरीखे की विधा पीछे छूट रही है, लेकिन इस विकट स्थिति में भी मशहूर कथक नृत्यांगना दृष्टि रॉय अपनी साधना के साथ कथक की विधा को जन मानस तक पहुंचाने का काम कर रहीं हैं. उनसे पहले उनकी मां डॉ. नूपुर रॉय कथक नृत्य को बढ़ावा देने का काम कर चुकी हैं.

25 बरस पहले रखी थी नींव : कथक नृत्य विधा में राजस्थान में दृष्टि रॉय एक जाना पहचाना नाम है. मूलतः अजमेर में शास्त्री नगर निवासी दृष्टि रॉय को कथक की सीख अपनी माता से मिली. दृष्टि रॉय की मां पेशे से डॉक्टर (सर्जन) थीं, लेकिन उनका झुकाव कथक नृत्य की ओर था. डॉ. नूपुर रॉय एक अच्छी कथक नृत्यांगना थीं, उन्होंने ही आर्ट एंड कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन संस्था की नींव 25 बरस पहले रखी थी. इस संस्था के माध्यम से भारतीय संस्कृति से जुड़ी नृत्य और गायन विधा को आगे बढ़ाया. साथ ही लोगों को भी कला से जोड़ने का काम किया. डॉ. नूपुर रॉय के बाद उनकी पुत्री दृष्टि रॉय अपनी मां से मिली कला रूपी विरासत को सहेज रहीं हैं, साथ ही मां को सम्मान देते हुए उनके सपनों को पूरा करने में जुटीं हैं.

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राजस्थान में कथक नृत्य कला की बात होती है तो दृष्टि रॉय का नाम जुबान पर आ जाता है. मां की संस्था के अलावा अजमेर कथक कला केंद्र के माध्यम से दृष्टि कथक नृत्य कला को लोगों तक पहुंचाने का काम ढाई दशक से कर रहीं हैं. संस्था के 25 वर्ष पूरे होने और डॉ. नूपुर रॉय के 81 वें जयंती और अजमेर कत्थक कला केंद्र के 15 वर्ष पूरे होने पर दृष्टि रॉय ने कथक नृत्य कला से जुड़े अनुभवों और कथक से जुड़े कार्यक्रमों से जुड़ी यादों को सहेजकर एक पुस्तिका का विमोचन अतिथियों की उपस्थिति में किया. जयपुर रोड स्थित एक होटल में आयोजित विविधा कार्यक्रम आयोजित किया. कार्यक्रम में अजमेर संभाग की आयुक्त सीआर मीना, राजस्थान की महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष लाड कुमारी जैन, आरपीएससी के पूर्व अध्यक्ष शिव सिंह राठौड़, पुष्कर चित्रकूट धाम के महंत गिरीश पाठक समेत कई गणमान्य लोग मौजूद रहे. सभी ने दृष्टि रॉय के प्रयासों को सराहा.

विदेशों में भी है शिष्य : दृष्टि रॉय अजमेर कत्थक कला केंद्र के माध्यम से 2 हजार से भी अधिक लोगों को कथक नृत्य सीखा चुकीं हैं. उनके कई शिष्य यूरोप, अमेरिका, कनाडा समेत कई देशों में हैं, जो वहां कथक नृत्य सीख रहे हैं. दृष्टि रॉय देश में कई बड़े मंच पर कथक नृत्य का प्रदर्शन कर चुकीं हैं. दृष्टि रॉय का मानना है कि वर्षों की साधना के बाद ही कोई कलाकार बन पाता है. केवल नृत्य के बारे में जानकारी रखना अच्छी बात है, मगर उसे कलाकार नहीं कहा जा सकता. समाज में सही मायने में कला को सम्मान देना ही कला को बढ़ावा देना है. बातचीत में उन्होंने बताया कि मेरी मां मेरी पहली गुरु हैं. उनके बाद आचार्य अनुपम रॉय हैं, जिनको संगीत नाटक अकादमी से सम्मानित भी किया गया था. यह दोनों ही दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनसे मिली शिक्षा और संस्कार को मैं आगे बढ़ाने का काम कर रही हूं. मुझे कला क्षेत्र में पद्मश्री प्राप्त कलाकारों का सानिध्य प्राप्त हुआ. यह मेरा सौभाग्य है कि मैं भारतीय संगीत नाटक अकादमी के निर्णायक पैनल में भी शामिल हूं. उन्होंने कहा कि जब तक सांस है तब तक भारतीय नृत्य कला की इस विधा को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का काम करती रहूंगी.

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