अजमेर. बाल मनोरोग में एडीएचडी रोग एक विकार है जो छोटे बच्चों में होता है. प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले 11 प्रतिशत बच्चे एडीएचडी रोग से ग्रसित पाए जाते हैं. क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ बताती हैं कि समय पर बच्चे में एडीएचडी रोग पर नियंत्रण नहीं पाया जाता है तो किशोरावस्था में उन्हें दिक्कत होती है. ऐसे बच्चों का फ्रेंड सर्किल भी नहीं बन पाता है. उन्होंने बताया कि एडीएचडी की समस्या बचपन में ही उत्पन्न होती है. उन्होंने बताया कि यह रोग अनुवांशिक भी हो सकता है. वहीं सामाजिक एवं व्यावहारिक बदलाव की वजह से भी यह होता है.
डॉ. गौड़ बताती हैं कि एडीएचडी रोग ब्रेन सर्जरी, घर में हिंसा का माहौल होने, अनावश्यक रूप से बच्चों को डांटने और पिटाई करने, गर्भावस्था में माता को गंभीर बीमारी या तान आने पर भी बच्चों में एडीएचडी की समस्या उत्पन्न हो सकती है. ऐसे बच्चो में आत्मविश्वास की कमी होती है. ऐसे बच्चे किशोरावस्था में पहुंचने पर गलत आदतों और गलत संगत के भी शिकार हो जाते हैं. एडीएचडी की समस्या लड़कियों के मुकाबले लड़कों में ज्यादा पाई जाती है.
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एडीएचडी के लक्षण
5 वर्ष तक के बच्चों में एडीएचडी के लक्षण अभिभावक खुद भी देख और महसूस कर सकते हैं. एडीएचडी रोग से ग्रसित बच्चों में सामान्य बच्चों की तुलना में एनर्जी लेवल अधिक होता है. ऐसे बच्चे किसी भी एक कार्य को एकाग्रता से नहीं कर पाते हैं. वे कार्यों को अधूरा छोड़ कर दूसरे कार्य में लग जाते हैं. किसी भी कतार में वह खड़े नहीं हो पाते. ऐसे बच्चे अपनी बारी का इंतजार नहीं कर पाते हैं. साथ ही वह ज्यादा बातूनी होते हैं. एडीएचडी से ग्रसित बच्चों को थकान कम होती है. घर में मेहमान आने पर वह उनके साथ बैठने की बजाय असामान्य गतिविधियां करने लगते हैं.
अभिभावक रखें इन बातों का ख्याल
अभिभावक अपने बच्चों में ऐसे लक्षण देखते हैं तो वह उनके साथ नरमी का व्यवहार करें. ऐसे बच्चों के लिए रोज टाइम टेबल निर्धारित करें. साथ ही बच्चे की गतिविधि पर अभिभावक ध्यान रखें. बच्चों को कम से कम 1 घंटा फिजिकल एक्टिविटी करने दें. मसलन आउटडोर गेम नियमित दिनचर्या में शामिल जरूर करें. उसके बाद भी बच्चों में सामान्य स्थिति नजर नहीं आए तो मनोरोग चिकित्सक से संपर्क करें. उन्होंने बताया कि एडीएचडी टेस्ट से पता चलता है कि बच्चे में हाइपर एक्टिविटी कितनी है. उसके बाद बच्चे के लिए बिहेवियर थेरेपी तैयार की जाती है. रोगी को आवश्यकता पड़ने पर ही दवा दी जाती है जो एडीएचडी को मैनेज करने में सहायक होती है.