अजमेर. टॉन्सिल संक्रमित होने की समस्या अक्सर बच्चों में देखी जाती है, लेकिन जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है. उनमें भी टॉन्सिल संक्रमित होने की समस्या बनी रहती है. क्रोनिक टॉन्सिल ऑपरेशन के जरिए टॉन्सिल को हटा दिया जाता है. जबकि होम्योपैथिक पद्धति में क्रोनिक स्थिति में टॉन्सिल होने पर भी कारगर इलाज संभव है. चलिए होम्योपैथी के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. एसएस तड़ागी से टॉन्सिल के संक्रमण के कारण, लक्षण व बचाव के बारे में जानते हैं.
गले के अंदर दोनों ओर टॉन्सिल एक तरह का शारीरिक अंग है, जो बाहरी संक्रमण को शरीर के भीतर जाने से रोकता है. टॉन्सिल को गले की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. होम्योपैथी के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. एसएस तड़ागी बताते हैं कि टॉन्सिल संक्रमण होने की सबसे ज्यादा मामले बच्चों में देखे जाते हैं. 4 से 15 वर्ष तक की आयु के बच्चे टॉन्सिल संक्रमण से ज्यादा ग्रसित होते हैं. टॉन्सिल के संक्रमण होने की समस्या उन लोगों को भी रहती है जिन की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है. टॉन्सिल संक्रमण होने से कई तरह की शारीरिक समस्याएं होने लगती हैं.
टॉन्सिल के लक्षण - टॉन्सिल के संक्रमित होने पर गले में दर्द के साथ ही सूजन होने लगती है. टॉन्सिल संक्रमण की वजह से गला लाल पड़ जाता है. इससे सिर दर्द, तेज बुखार और खांसी भी होती है. चिकित्सक डॉ. एसएस तड़ागी बताते हैं कि समय पर इलाज होने से यह जल्द ठीक हो जाता है. 4 से 5 दिन रोगी को ठीक होने में लगते हैं. लेकिन जब यह समस्या बार-बार होती रहती है तो यह क्रॉनिक टॉन्सिल में बदल जाती है. एलोपैथिक पद्धति में क्रॉनिक टॉन्सिल को ऑपरेशन डिजीज माना जाता है. जबकि होम्योपैथिक पद्धति में क्रॉनिक टॉन्सिल का भी कारगर इलाज संभव है.
इसे भी पढ़ें - Health Tips : पुरूषों में होने वाली बीमारी 'प्रोस्टेट' का होम्योपैथी में इलाज, जानिए डॉ एसएस तड़ागी के हेल्थ टिप्स
नियमित दवाओं के सेवन से 6 से 12 महीने के अंदर रोगी को क्रॉनिक टॉन्सिल से छुटकारा मिल जाता है. इसके लिए रोगी को थोड़ा धैर्य रखना होता है. वहीं, कुछ परहेज भी रखने होते हैं. क्रॉनिक टॉन्सिल्स ठीक होने पर गले में सुरक्षा द्वार टॉन्सिल संक्रमण से रक्षा करता है. जबकि ऑपरेशन करने पर गले से टोंसिल को हटा दिया जाता है. जिससे आगे चलकर कई तरह की दिक्कतें पेश आती हैं.
टॉन्सिल संक्रमित होने पर क्या करें - टॉन्सिल संक्रमित होने पर गुनगुना पानी में नमक डालकर गरारे करने से भी लाभ मिलता है. संक्रमित होने पर रोगी को शीतल पेय पदार्थ और ठंडी खाद्य सामग्री का सेवन नहीं करना चाहिए. इसके अलावा आचार, खट्टी खाद्य वस्तुएं नहीं खानी चाहिए. इनके उपयोग से समस्या और भी बढ़ने लगती है. डॉ. तड़ागी बताते हैं कि एंटी एलर्जी जैसे धूल, तेज गंध से भी रोगी को बचना चाहिए. सर्दी के मौसम में रोगी को विशेष खयाल रखना चाहिए. उन्होंने बताया कि सर्दी के मौसम में टॉन्सिल संक्रमण होने की समस्या अधिक होती है.