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Diwali 2023 : मराठाकालीन लक्ष्मी माता का मंदिर जहां सदियों से दीपोत्सव की परंपरा, लगता है खीर का भोग - diwali special story in rajasthan

अजमेर में मराठाकालीन प्राचीन वैभव लक्ष्मी का मंदिर है, जहां धनतेरस से भाई दूज तक सदियों से दीपोत्सव मनाने की परंपरा है. साथ ही घर पर बनाई हुई खीर का भोग भी माता को लगाया जाता है. जानिए हमारी इस स्पेशल रिपोर्ट में माता वैभव लक्ष्मी मंदिर का महत्व और यहां की खास बातें...

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 12, 2023, 2:15 PM IST

वैभव लक्ष्मी माता मंदिर में सदियों से दीपोत्सव की परंपरा

अजमेर. दीपावली पर धन समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूजा-अर्चना की जाती है. अजमेर में मराठा कालीन प्राचीन वैभव लक्ष्मी का मंदिर है, जहां धनतेरस से भाई दूज तक सदियों से दीपोत्सव मनाने की परंपरा है. इन 5 दिनों तक माता वैभव लक्ष्मी के मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. खासकर दीपावली पर सुबह सूर्योदय के पहले से ही श्रद्धालु मंदिर में दीपक जलाने आते है. साथ ही घर पर बनाई हुई खीर का भोग भी माता वैभव लक्ष्मी को लगाने के मंदिर में भीड़ उमड़ती है. लाल पाषाण पर उभरी हुई माता की प्रतिमा काफी बड़ी है.

शहर के आगरा गेट पर स्थित प्राचीन वैभव लक्ष्मी माता का मंदिर 300 सालों से लोगों की आस्था का केंद्र रहा है. यूं तो हर दिन यहां भक्त अपनी मनोकामना के लिए आते हैं, लेकिन हर शुक्रवार को माता के इस मंदिर में भक्तों का हुजूम उमड़ता है. महिलाएं शुक्रवार का व्रत भी रखती है, इसके लिए यहां खासी तादाद में महिला श्रध्दालुओं का भी आगमन होता है. धनतेरस से भाई दूज तक मंदिर में दीपोत्सव मनाने की परंपरा रही है. धनतेरस पर सुबह से ही मंदिर में श्रद्धालुओं दर्शन के लिए उमड़ते हैं. माता को सफेद मिष्ठान का भोग लगाकर परिवार में समृद्धि और खुशहाली की कामना की जाती है.

Lakshmi temple of Maratha era in Ajmer
माता के मंदिर के बारे में कुछ विशेष जानकारी

खास बात यह है कि श्रद्धालु अपने साथ झाड़ू भी लेकर आते हैं. कहा जाता है कि झाड़ू घर से गंदगी को साफ करता है. इससे दरिद्रता दूर होती है और लक्ष्मी की कृपा बरसती है. यही वजह है कि धनतेरस पर नया झाड़ू खरीदने की परंपरा है. इसलिए ही माता लक्ष्मी के मंदिर में झाड़ू अर्पण किया जाता है. मंदिर में धनतेरस से लेकर भाई दूज तक यानी 5 दिन भक्ति और आस्था की सरिता बहती है.

पढ़ें : Special : दीपावली की मिठाई में भी चुनाव का तड़का, दुकानों पर बिक रहे 'फूल' और 'हाथ'

5 दिन तक मंदिर में दीपोत्सव : मंदिर में वैभव लक्ष्मी माता के साथ धन कुबेर, प्रथम पूज्य भगवान गणेश और माता सरस्वती की प्रतिमाएं भी विराजमान है. वर्षों से मंदिर में धनतेरस से भाई दूज तक 5 दिन दीपोत्सव मनाया जाता है. मान्यता है कि इन 5 दिनों तक मंदिर में दीप जलाकर माता को खीर का भोग लगाने पर मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. यही वजह है कि धनतेरस से भाई दूज तक मंदिर में मेले जैसा माहौल रहता है. खासकर दीपावली के दिन सुबह 5 बजे से ही श्रद्धालुओं का मंदिर में आना शुरू हो जाता है. श्रद्धालु माता के मंदिर में दीप जलाते है और घर से बनाई हुई खीर का भोग लगाते हैं. सुबह से शाम तक मंदिर में दीप जलाने का सिलसिला लगा रहता है. कई लोग माता लक्ष्मी को सफेद मिष्ठान्न का भी भोग लगाते हैं. इसके अलावा नारियल, कमल का पुष्प और कमल के गट्टों की माला भी श्रद्धालु माता को अर्पित करते हैं.

पढ़ें : Diwali 2023: छोटी काशी की रोशनी में भक्ति की बयार, जयपुर की धरा पर उतरा बुर्ज खलीफा से लेकर चंद्रयान

यह है मंदिर का इतिहास : मंदिर के पुजारी पंडित प्रकाश शर्मा ने बताया कि वैभव लक्ष्मी माता के मंदिर में दीप उत्सव मनाने की परंपरा सदियों पुरानी है. मंदिर मराठाकालीन है और तब से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र भी रहा है. वे पांचवी पीढ़ी है जो सेवा पूजा का कार्य कर रही है. मराठाकाल में अजमेर में मराठाओ ने कई मंदिरों की स्थापना की थी. मराठों के स्थापित मंदिर आज अजमेर में प्रमुख धार्मिक स्थल बन चुके हैं. इनमें से वैभव लक्ष्मी माता का मंदिर भी है. कभी मंदिर के बाहरी क्षेत्र में एक बड़ा सा गेट हुआ करता था जो नया बाजार की ओर खुलता था. तब शाम 6 बजे बाद सुरक्षा कारणों से आगरा गेट को बंद कर दिया जाता था. समय पर परकोटे में दाखिल नहीं होने वाले लोग माता वैभव लक्ष्मी के मंदिर में ही ठहरा करते थे. वक्त के साथ आगरा गेट भी नहीं रहा लेकिन वैभव लक्ष्मी माता का मंदिर आज भी श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है.

पढ़ें : स्वर्ण नगरी में आज भी दीपावली के दिन हटड़ी पूजन का है विशेष महत्व

वैभव लक्ष्मी के व्रत का है विशेष महत्व : पंडित प्रकाश शर्मा बताते हैं कि शुक्रवार को वैभव लक्ष्मी माता का महिलाएं व्रत रखती हैं. महिलाएं हर शुक्रवार को माता की पूजा-अर्चना कर खीर का भोग लगाती हैं. साथ ही वैभव लक्ष्मी की पुस्तिका भी व्रत उद्यापन करने वाली महिलाएं अन्य महिलाओं को तिलक कर वितरित करती हैं.

कार्तिक के बाद ही फेंकी जाती है पुरानी झाड़ू : श्रद्धालु अनिल पारीक बताते हैं कि धनतेरस पर माता को झाड़ू अर्पण की जाती है. घर के लिए भी नई झाड़ू खरीदी जाती है. नई झाड़ू आने पर पुरानी झाड़ू को घर में छुपा कर रखा जाता है. कार्तिक मास के बाद ही पुरानी झाड़ू को बाहर डाला जाता है. उन्होंने बताया कि दीपावली पर माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते हैं. श्रद्धालु सुशील गोयल और निकिता बताती है कि सच्चे मन और श्रद्धा के साथ माता का व्रत करने पर मनोकामना जरूर पूर्ण होती है.

वैभव लक्ष्मी माता मंदिर में सदियों से दीपोत्सव की परंपरा

अजमेर. दीपावली पर धन समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूजा-अर्चना की जाती है. अजमेर में मराठा कालीन प्राचीन वैभव लक्ष्मी का मंदिर है, जहां धनतेरस से भाई दूज तक सदियों से दीपोत्सव मनाने की परंपरा है. इन 5 दिनों तक माता वैभव लक्ष्मी के मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. खासकर दीपावली पर सुबह सूर्योदय के पहले से ही श्रद्धालु मंदिर में दीपक जलाने आते है. साथ ही घर पर बनाई हुई खीर का भोग भी माता वैभव लक्ष्मी को लगाने के मंदिर में भीड़ उमड़ती है. लाल पाषाण पर उभरी हुई माता की प्रतिमा काफी बड़ी है.

शहर के आगरा गेट पर स्थित प्राचीन वैभव लक्ष्मी माता का मंदिर 300 सालों से लोगों की आस्था का केंद्र रहा है. यूं तो हर दिन यहां भक्त अपनी मनोकामना के लिए आते हैं, लेकिन हर शुक्रवार को माता के इस मंदिर में भक्तों का हुजूम उमड़ता है. महिलाएं शुक्रवार का व्रत भी रखती है, इसके लिए यहां खासी तादाद में महिला श्रध्दालुओं का भी आगमन होता है. धनतेरस से भाई दूज तक मंदिर में दीपोत्सव मनाने की परंपरा रही है. धनतेरस पर सुबह से ही मंदिर में श्रद्धालुओं दर्शन के लिए उमड़ते हैं. माता को सफेद मिष्ठान का भोग लगाकर परिवार में समृद्धि और खुशहाली की कामना की जाती है.

Lakshmi temple of Maratha era in Ajmer
माता के मंदिर के बारे में कुछ विशेष जानकारी

खास बात यह है कि श्रद्धालु अपने साथ झाड़ू भी लेकर आते हैं. कहा जाता है कि झाड़ू घर से गंदगी को साफ करता है. इससे दरिद्रता दूर होती है और लक्ष्मी की कृपा बरसती है. यही वजह है कि धनतेरस पर नया झाड़ू खरीदने की परंपरा है. इसलिए ही माता लक्ष्मी के मंदिर में झाड़ू अर्पण किया जाता है. मंदिर में धनतेरस से लेकर भाई दूज तक यानी 5 दिन भक्ति और आस्था की सरिता बहती है.

पढ़ें : Special : दीपावली की मिठाई में भी चुनाव का तड़का, दुकानों पर बिक रहे 'फूल' और 'हाथ'

5 दिन तक मंदिर में दीपोत्सव : मंदिर में वैभव लक्ष्मी माता के साथ धन कुबेर, प्रथम पूज्य भगवान गणेश और माता सरस्वती की प्रतिमाएं भी विराजमान है. वर्षों से मंदिर में धनतेरस से भाई दूज तक 5 दिन दीपोत्सव मनाया जाता है. मान्यता है कि इन 5 दिनों तक मंदिर में दीप जलाकर माता को खीर का भोग लगाने पर मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. यही वजह है कि धनतेरस से भाई दूज तक मंदिर में मेले जैसा माहौल रहता है. खासकर दीपावली के दिन सुबह 5 बजे से ही श्रद्धालुओं का मंदिर में आना शुरू हो जाता है. श्रद्धालु माता के मंदिर में दीप जलाते है और घर से बनाई हुई खीर का भोग लगाते हैं. सुबह से शाम तक मंदिर में दीप जलाने का सिलसिला लगा रहता है. कई लोग माता लक्ष्मी को सफेद मिष्ठान्न का भी भोग लगाते हैं. इसके अलावा नारियल, कमल का पुष्प और कमल के गट्टों की माला भी श्रद्धालु माता को अर्पित करते हैं.

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यह है मंदिर का इतिहास : मंदिर के पुजारी पंडित प्रकाश शर्मा ने बताया कि वैभव लक्ष्मी माता के मंदिर में दीप उत्सव मनाने की परंपरा सदियों पुरानी है. मंदिर मराठाकालीन है और तब से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र भी रहा है. वे पांचवी पीढ़ी है जो सेवा पूजा का कार्य कर रही है. मराठाकाल में अजमेर में मराठाओ ने कई मंदिरों की स्थापना की थी. मराठों के स्थापित मंदिर आज अजमेर में प्रमुख धार्मिक स्थल बन चुके हैं. इनमें से वैभव लक्ष्मी माता का मंदिर भी है. कभी मंदिर के बाहरी क्षेत्र में एक बड़ा सा गेट हुआ करता था जो नया बाजार की ओर खुलता था. तब शाम 6 बजे बाद सुरक्षा कारणों से आगरा गेट को बंद कर दिया जाता था. समय पर परकोटे में दाखिल नहीं होने वाले लोग माता वैभव लक्ष्मी के मंदिर में ही ठहरा करते थे. वक्त के साथ आगरा गेट भी नहीं रहा लेकिन वैभव लक्ष्मी माता का मंदिर आज भी श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है.

पढ़ें : स्वर्ण नगरी में आज भी दीपावली के दिन हटड़ी पूजन का है विशेष महत्व

वैभव लक्ष्मी के व्रत का है विशेष महत्व : पंडित प्रकाश शर्मा बताते हैं कि शुक्रवार को वैभव लक्ष्मी माता का महिलाएं व्रत रखती हैं. महिलाएं हर शुक्रवार को माता की पूजा-अर्चना कर खीर का भोग लगाती हैं. साथ ही वैभव लक्ष्मी की पुस्तिका भी व्रत उद्यापन करने वाली महिलाएं अन्य महिलाओं को तिलक कर वितरित करती हैं.

कार्तिक के बाद ही फेंकी जाती है पुरानी झाड़ू : श्रद्धालु अनिल पारीक बताते हैं कि धनतेरस पर माता को झाड़ू अर्पण की जाती है. घर के लिए भी नई झाड़ू खरीदी जाती है. नई झाड़ू आने पर पुरानी झाड़ू को घर में छुपा कर रखा जाता है. कार्तिक मास के बाद ही पुरानी झाड़ू को बाहर डाला जाता है. उन्होंने बताया कि दीपावली पर माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते हैं. श्रद्धालु सुशील गोयल और निकिता बताती है कि सच्चे मन और श्रद्धा के साथ माता का व्रत करने पर मनोकामना जरूर पूर्ण होती है.

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