केकड़ी (अजमेर). वर्तमान में भले ही प्यार के लिए कोई चिरस्थायी याद नहीं हो लेकिन पुराने समय में प्यार अमर था. जिसकी एक उदहारण ढोला मारू की गाथा भी एक अनोखी गाथा है. राज्य सरकार ने भले ही बघेरा ग्राम के ढोला मारू के स्थान पर नीले रंग का बोर्ड लगाकर संरक्षित कर दिया हो, लेकिन प्यार के इस चिरस्थायी स्तम्भ से सरकार ने नीले रंग का बोर्ड गाडकर अपनी आंखे फेर ली है.
कहते हैं, कि आज से 100 साल पहले चौहान काल में इस कलाकृति का निर्माण हुआ था, जो शिव मन्दिर का मुख्य द्वार जैसा प्रतीत होता है. इसी भव्य द्वार के सामने संवत 918 ई. में ढोला मारू का विवाह हुआ था. इसी याद में इस तोरण द्वार का निर्माण किया गया था. इसी द्वार के सामने चार चकरियां यानि की चुरियां ( विवाह के समय बनाने जाने वाला यज्ञ स्थल ) और स्तम्भ बने हुए हैं.
कौन थे ढोला-मारू
ढोला नरवर गढ़ मध्यप्रदेश के राजा नल का पुत्र था और मारू मारवणी पुंगज देश के राजा की पुत्री थी. ढोला-मारू के प्रसिद्ध कथा में उनके विवाह पश्चात् न मिलने के विरह की कथा है और तत्काल समय में मारवणी द्वारा भेजे गए संदेशो के द्वारा मिलने का वर्णन हैं. आज भी ढ़ोला मारू की अगर गाथा के संदर्भ मे बघेरा सहित आस-पास के गांवों मे ढोला मारू के दोहे गाते देखे जा सकते हैं.
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ढोला-मारू स्मारक पर सरकार की ओर से नजरें फेर लेने के चलते आज स्मारक के पास ही गोबर सहित गंदगी डाली जा रही है. वहीं उनके पास में बनी चूरियां को लोगों ने अपने पक्के अतिक्रमण में दबा कर रख दिया है. जिससे धीरे-धीरे यह स्मारक अपनी वैभव खोता जा रहा है. सरकार की पहल से इस प्यार की निशानी को बचाया जा सकता है. नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब ढोला मारू का स्मारक इतिहास के पन्नों से गायब हो जाएगा.